
Ranchi : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने न्यूज विंग में प्रकाशित खबर का संज्ञान लेते हुए रांची के उपायुक्त को पीड़ित परिवार तक मदद पहुंचाने का निर्देश दिया गया है. न्यूज विंग में तीन दिव्यांग बच्चों के साथ संघर्ष कर रहा एक दंपती, मदद के हाथ बढ़ें तो कम होंगी दुश्वारियां… शीर्षक से एक परिवार की दर्द भरी कहानी प्रकाशित हुई है. जिसपर सीएम हेमंत ने संज्ञान लिया है. खास बात यह है कि कहानी प्रकाशित होने के करीब तीन घंटे बाद ही सीएम ने संज्ञान लिया. नीचे पढ़िए वो स्टोरी, जिस पर लिया गया संज्ञान…
तीन दिव्यांग बच्चों के साथ संघर्ष कर रहा एक दंपती, मदद के हाथ बढ़ें तो कम होंगी दुश्वारियां
Ranchi: जो लोग जिंदगी की छोटी परेशानियों से हार जाते हैं, उन्हें बेड़ो के एक दंपती और उनके तीन दिव्यांग बच्चों के संघर्ष से सीखना चाहिए. तमाम परेशानियों और कुदरत की नाइंसाफियों के बावजूद यह दंपती न तो संघर्ष से घबराया और न ही कभी उम्मीदों का दामन छोड़ा. सरकार या समाज के सक्षम तबके की इनायत हो जाये तो इनकी जिंदगी से परेशानियों का कोहरा छंट सकता है.
परिवार का मुखिया लोदो उरांव मजदूरी करता है. पत्नी मंजू उरांव ने अपने तीनों बच्चों की देखभाल देखभाल करते हुए टेट (टीचर


एलिजिब्लिटी टेस्ट) की परीक्षा पास कर ली है, लेकिन चाहकर भी वह नौकरी के लिए वक्त नहीं नहीं निकाल पा रही है. इस दंपती के तीन बच्चों में बड़े पुत्र का नाम सौरव तिर्की है जो 14 वर्ष का है. दूसरे पुत्र का नाम श्रीसा उरांव है जो 8 वर्ष का है. तीसरी संतान बच्ची है, जिसका नाम शिवा उरांव है. लोदो उरांव बताते हैं कि तीनों बच्चों का जन्म सीएससी बेड़ो में हुआ था. तीनों बच्चों की नार्मल डिलीवरी हुई थी. इसके बाद भी तीनों बच्चे दिव्यांग हैं और चल-फिर नहीं सकते. इतना ही नहीं वे बिना सहारे खाना भी नहीं खा पाते हैं. बड़ा बेटा सौरव घसीट कर कुछ दूर चल लेता है, और टूटी-फूटी आवाज में कुछ शब्द बोल लेता है. बाकी दो बच्चे न तो बोल पाते हैं न चल पाते हैं.




पति अनपढ़ लेकिन पत्नी को पढ़ाकर कराया टेट क्वालिफाइड
बच्चों की मां मंजू उरांव दर्द बताती हैं कि उसने करमचंद भगत कॉलेज बेड़ो से बीए अर्थशास्त्र विषय में ऑनर्स किया. 2002 में माता पिता ने अनपढ़ लोदे उरांव से शादी कर दी. उसके हौसले को देखते हुए अनपढ़ पति ने शादी के बाद भी डीएलएड तक की पढ़ाई करवाई. इसके बाद उसने मेहनत कर टेट की परीक्षा भी पास कर ली. शादी के बाद एक-एक कर तीन बच्चे हुए लेकिन तीनों दिव्यांग. मेरे सामने अंधेरा छा गया. लेकिन क्या करूं, मां की ममता है और साथ में एक उम्मीद कि शायद आनेवाले दिनों में हालात सुधरे.
40 हजार का है केसीसी लोन
लोदे उरांव बताते हैं कि वह परिवार के एक मात्र कमाने वाला व्यक्ति हैं. ग्रामीण बैंक बेड़ो से 40 हजार का केसीसी लोन भी है. पुश्तैनी जमीन में थोड़ी खेती-बाड़ी है. मजदूरी भी कर लेते हैं जिससे किसी तरह परिवार का भरण-पोषण हो पाता है. लोदे कहते हैं कि मेरे परिवार का लाल कार्ड बना हुआ है, लेकिन कार्ड में मेरे दो विकलांग बच्चों का नाम जुड़ा हुआ नहीं है. बड़े पुत्र सौरभ को विकलांग पेंशन मिलती है. गत महीने से दूसरे पुत्र श्रीसा को भी विकलांग पेंशन का लाभ मिला है, लेकिन संघर्ष कम नहीं हुआ है.
मदद के लिए सरकार से लगायी गुहार
यह दंपती चाहता है कि उनके बच्चों का समुचित इलाज कराया जाये, जिससे उनके परिवार में छाया हुआ अंधेरा कुछ हद तक कम हो सके. दंपती का कहना है कि जब तक हम हैं तब तक तो हम अपने बच्चों का किसी तरह ख्याल कर ले रहे हैं. लेकिन अगर इन्हें सही इलाज और प्रशिक्षण नहीं मिला तो हमारे बाद इन बच्चों का क्या होगा ये सोचकर मन घबरा जाता है.