
जमशेदपुर: उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके में त्यौहार नेवान का बहुत ही महत्व है. यह तयौहार लोग सरस्वती पूजा के दिन से एक हफ्ते बाद तक मनाते है. मान्यता ये है कि रविवार और मंगलवार को यह त्यौहार नहीं मनाया जा सकता. इसके साथ ही मान यानि जिस दिन परिवार के किसी सदस्य की अकाल मौत हुई हो, उस दिन भी यह त्यौहार नहीं मनाया जाता. यह त्यौहार इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन से खेत में उपजे नये अन्न को खाने की शुरुआत होती है. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के इलाके इस त्यौहार की खासी धूम रहती है. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में इस त्यौहार को लेकर अच्छा खासा उत्साह रहता है. लौहनगरी में पूर्वांचल सहित पूरे उत्तर प्रदेश मूल के लोगों की संख्या लगभग दो लाख है और इन सबके घरों अगले दो दिनों तक यह त्यौहार मनाया जाएगा. बहुत सारे घरों में में तो यह त्यौहार मनाया भी जा चुका है. जिन घरों में यह त्यौहार अभी नहीं मना है, उन परिवारों में उत्साह चरम पर है.
बनते हैं ये पकवान
इस त्यौहार के दिन हर किसी के घर चाहे वो गरीब हो या अमीर, एक समान ही पकवान बनते हैं. इन पकवानों में चावल, कढ़ी-बरी, पकौड़ी आदि शामिल होते हैं. खास बात ये है कि इन्हीं पकवानोें में से किसी एक में अपने खेत से लाई गई गेहूं की बाली को घी में भूना जाता है और उसको पीस कर मिलाया जाता है. ये सभी पकवान शाम को बनते हैं.
घर-घर जाकर लेते हैं बड़ों का आशीर्वाद
घर के सभी लोग शाम को ये सभी पकवान खाने के बाद अपने परिवार के सभी पुरुष सदस्यों के साथ अपने पट्टीदार-गोतिया के घर-घर जाकर बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. चूंकि ये त्यौहार कृषि से सीधे सीधे जुड़ा हुआ है, इसलिए पूर्वांचल के गांवों में इस त्यौहार बड़ों से मिलने वाला आशीर्वाद नया धर पुरान खा यानि आपके घर में अन्न की इतनी बंपर पैदावार हो कि नया अन्न घर में सुरक्षित रख लीजिए और घर रखा पुराना अनाज खाइए.
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