
निरंकुश सत्ता का विरोध विश्व की महान साहित्यिक परंपराओं में से एक है. कुछ को हम जाने पाते हैं कुछ को नहीं. क्योंकि उनके अंत तक को सत्ता पक्ष सामने लाने में डरता है. इसी तरह के कवि रहे हैं तुर्की के महाकवि नाजिम हिकमत . जो कुल इकसठ साल सात महीने जिए. उनके देश की सरकार उनसे डरती थी सो इनमे से अठारह साल जेल में कटे और तेरह निर्वासन में. नाजिम हिकमत को इतने लम्बे समय तक जेल में बंद रखने के सरकारी फैसले का दुनिया भर में विरोध हुआ और 1949 में उनकी रिहाई की मांग करते हुए पाब्लो पिकासो, पॉल रोब्सन, ज्यां-पॉल सार्त्र और पाब्लो नेरुदा जैसी हस्तियों ने एक विश्वव्यापी अभियान शुरू किया. इससे सरकार हिल गयी. सरकार ने इस अभियान को ज़रा भी तवज्जो नहीं दी. अगले साल जेल में कैद नाजिम को विश्व शान्ति पुरस्कार देने की घोषणा भी हुई.
- Zeb Akhtar
तुर्की की बुर्सा जेल में रहते हुए उन्हें दस साल बीत चुके थे जब अपनी एक कविता की शुरुआत करते हुए उन्होंने लिखा:
जब से क़ैद किया गया है मुझे
दस फेरे लगा चुकी धरती सूरज के गिर्द
और अगर आप धरती से पूछेंगे तो वो कहेगी:
“वक़्त के इतने ज़रा से टुकड़े का
क्या ज़िक्र.”
और अगर आप मुझसे पूछेंगे तो मैं कहूँगा:
“दस साल मेरी ज़िन्दगी के.”
जिस साल मैं क़ैदख़ाने में आया था
मेरे पास एक पेन्सिल थी.
वह घिस गयी हफ़्ते भर में.
और अगर आप पेन्सिल से पूछेंगे तो वो कहेगी:
“एक पूरी ज़िन्दगी.”
और मुझसे पूछेंगे तो मैं कहूंगा:
“फ़क़त एक हफ़्ता बस.”
1940 की सर्दियों में जब उन्हें पहली बार इस जेल में लाया गया था, एक लेजेंड के तौर पर उनकी ख्याति वहां रह रहे कैदियों तक उनसे पहले पहुंच चुकी थी. इनमें से ज्यादातर कैदी नहीं जानते थे कि नाजिम बीसवीं सदी के सबसे बड़े तुर्की कवि थे अलबत्ता उन्हें इतना मालूम था कि उनके दुश्मन भी उन्हें मोहब्बत करते थे.
नाजिम को ओरहान कमाल नाम के एक अठाईस वर्षीय युवक के साथ कोठरी शेयर करनी थी. ओरहान भी सरकार-विरोधी काम करने के इल्जाम में पांच साल की सजा काट रहा था. एक छात्र के तौर पर ओरहान ने नाजिम हिकमत को न केवल पढ़ा था, एक प्रशंसक के रूप में उन्हें चिठ्ठियां भी लिखी थीं. यह अलग बात है कि ये चिठ्ठियां कभी भेजी ही नहीं जा सकीं क्योंकि नाजिम जेल में थे. पुलिस के छापे के दौरान ओरहान के घर से इन चिठ्ठियों के मिलने को भी उसके खिलाफ सुबूत के तौर पर पेश किया गया.
नाजिम हिकमत ओरहान के लिए रोल मॉडल और हीरो थे और किस्मत ने उसे उनके साथ एक ही कोठरी में बंद कर दिया था. नाजिम की संगत में ओरहान उनका शिष्य बन गया. कैद में भी नाजिम इतना सारा काम करते थे कि उनके श्रम और धैर्य को देख कर ही बहुत कुछ सीखा जा सकता था. नाजिम रोज लिखते थे. ‘ह्यूमन लैंडस्केप्स फ्रॉम माय कन्ट्री’ उन्होंने जेल में ही शुरू कर के पूरा किया. कविताओं और लेखों के अलावा वे लगातार अनुवाद भी किया करते थे. टॉलस्टॉय की ‘वार एंड पीस’ का अनुवाद उन्होंने बुर्सा जेल में ही किया. न जाने कितने कैदियों को उन्होंने लिखना, पढ़ना और कपड़ा बुनना सिखाया.
ओरहान को उनके साथ तीन साल बिताने का मौक़ा मिला. ओरहान को कविता लिखने का शौक तो था लेकिन कवि की प्रतिभा नहीं थी. नाजिम ने उससे गद्य लिखने को कहा और लेखन की बारीकियां सिखाईं. इन तीन सालों में उनके बीच गुरु-शिष्य का एक अनूठा सम्बन्ध बना. इस सम्बन्ध का नतीजा यह निकला कि आगे चल कर ओरहान कमाल एक बड़ा उपन्यासकार बना. उसकी कहानियों पर फ़िल्में भी बनाई गईं. अपने उस्ताद को कृतज्ञता के साथ याद करते हुए कमाल ने ‘इन जेल विद नाजिम हिकमत’ शीर्षक संस्मरण भी लिखा जो एक महान मनुष्य, अध्यापक, क्रांतिकारी और सचेत साहित्यकार के तौर पर नाजिम की छवि को और भी पुख्ता बनाता है.
नाजिम न होते तो ओरहान कमाल लेखक नहीं बन सकता था.
इसी जेल में नाजिम को इब्राहिम बलबन नाम का अठारह साल का एक लड़का मिला. बलबन एक बेहद गरीब परिवार का का बेटा था और अवैध रूप से भांग की खेती करने के झूठे इल्जाम में उसे छः महीने की जेल हुई थी. जुर्माना न भर सकने के कारण उसकी कैद में तीन साल और जुड़े और उसके बाद एक और झूठे मुकदमे में फंसा कर सजा को चार-छः साल आगे खींच दिया गया. उन्हें अपने जीवन के सबसे खूबसूरत दौर के दस साल जेल में बिताने पड़े. भीषण गरीबी के कारण कुल तीसरी कक्षा से आगे न पढ़ सके बलबन को बचपन में चित्रों की नक़ल बनाने में आनंद आता था. जेल में उसने कहीं से एक पेन्सिल का जुगाड़ कर अपने इस पुराने शौक को पुनर्जीवित किया. नाजिम हिकमत खुद भी पेंटिंग किया करते थे. जब उन्हें बलबन के बारे में पता लगा उन्होंने अपने सारे रंग और ब्रश उसे तोहफे में दे दिए.
बलबन तो ओरहान कमाल से भी सात साल छोटा था. नाजिम उसके भी उस्ताद बने. अपने से बीस साल छोटे इस छोकरे को नाजिम ने कला की बारीकियों के अलावा दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र और राजनीति के पाठ भी पढ़ाये. दोनों की दोस्ती सात साल चली. इस दोस्ती पर इब्राहीम बलबन ने दो किताबें भी लिखी.
पिछले साल जून के महीने में 98 साल का हो चुकने पर इब्राहिम बलबन की मृत्यु हुई. उस समय तक बलबन अपने देश के सबसे नामी चित्रकार के तौर पर प्रतिष्ठित हो चुके थे. उन्होंने दो हज़ार पेंटिंग्स बनाने के अलावा 11 किताबें भी लिख ली थीं. नाजिम न होते तो बलबन के जीवन का पता नहीं क्या बना होता जिन्होंने 1937 में पैसा कमाने के लिए जेल में नाई का काम सीखना शुरू कर दिया था.
फोटो अपने स्टूडियो में बैठे इन्हीं इब्राहिम बलबन की है.