
New Delhi: भारत को लॉकडाउन की सफलता के लिए एक बुनियादी आय योजना लागू करने की जरूरत है. फ्रांस के जाने-माने अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने मंगलवार को यह सुझाव दिया. उन्होंने यह भी कहा कि भारत यदि असमानता से जुड़े मुद्दे का बेहतर ढंग से निराकरण कर ले तो यह 21वीं सदी में दुनिया का नेतृत्व करनेवाला लोकतांत्रिक देश बनने की क्षमता रखता है.

उल्लेखनीय है कि सरकार ने देश में कोरोना वायरस के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिये 25 मार्च से 14 अप्रैल तक सबसे पहले 21 दिन का लॉकडाउन लगाया था. उसके बाद से लॉकडाउन को दो बार बढ़ाया गया. तीसरी बार भी इसे बढ़ाने का ऐलान हो चुका है.

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बुनियादी आय योजना शुरू करनी चाहिए
थॉमस पिकेटी ने कहा कि मेरा मानना है कि सरकार को एक बुनियादी आय योजना शुरू करनी चाहिये, उसे भारत में आम लोगों के जीवन यापन की सुरक्षा का कोई तंत्र विकसित करना चाहिये. मुझे नहीं लगता कि न्यूनत आय की व्यवस्था के बिना कोई लॉकडाउन कारगर हो सकता है.
गौरतलब है कि भारत में 2016- 17 की आर्थिक समीक्षा में सार्वजनिक बुनियादी आय योजना का विचार उस समय सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने रखा था. पिछले साल आम चुनाव के दौरान भारत में इस तरह की एक न्यूनतम आय योजना के बारे में चर्चा भी हुई थी.
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संपत्ति कर और विरासत कर लगाने का भी सुझाव
पिकेटी ने भारत में अधिक न्यायसंगत और प्रगतिशील कराधान व्यवस्था की भी वकालत की जिसमें संपत्ति कर और विरासत कर लगाये जाने पर भी जोर दिया गया. इस प्रमुख अर्थशास्त्री ने कहा कि भारत उसके साथ पुराने लंबे समय से जुड़ी असमानता की समस्या को यदि दूर कर देता है तो उसमें 21वीं सदी में विश्च का लोकतांत्रिक नेता बनने की क्षमता है.
उन्होंने कहा कि भारत में आरक्षण प्रणाली की तरफ तो ध्यान दिया गया लेकिन इसके साथ जुड़े दूसरे मुद्दों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया. इनमें भूमि सुधार और संपत्ति का पुनर्वितरण जैसे मुद्दे भी हैं. इसके साथ ही अधिक तर्कसंगत और प्रगतिशील कर प्रणाली (जिसमें संपत्ति कर और विरासत कर भी शामिल होने चाहिये) के जरिये शिक्षा, अवसंरचना और स्वास्थ्य क्षेत्र में पर्याप्त निवेश एवं वित्तपोषण की आवश्यकता है.
पिकेटी ने हाल ही में एक पुस्तक ‘कैपिटल एंड आइडियोलॉजी’ लिखी है. उनका कहना है कि कोविड-19 जैसी महामारी का असमानता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. एक तरफ इससे स्वास्थ्य, ढांचागत सुविधाओं और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश की वैधता बढ़ सकती है जबकि दूसरी तरफ पुराने क्षेत्रवाद से जुड़े विवाद जैसे मुद्दे फिर से उभर सकते हैं.
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