
New Delhi : पत्नी से रेप के मामले (Marital Rape) में अदालत देश के क्रिमिनल लॉ में दर्ज 150 साल पुराने प्रावधान पर बड़ा फैसला देने वाली है. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यही प्रावधान रेप के आरोपों में पति के लिए कानूनी ढाल बन जाता है. दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने सोमवार को इस बाबत दाखिल की गई विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली.
हालांकि केंद्र सरकार ने अभी अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है. केंद्र ने दलील दी कि उसने सभी राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और राष्ट्रीय महिला आयोग को इस मुद्दे पर राय देने के लिए पत्र भेजा है. कोर्ट ने मामले को स्थगित करने से इनकार करते हुए फिलहाल अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
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केंद्र की अपील, कार्यवाही स्थगित कर दीजिए



केंद्र ने अदालत से अनुरोध किया कि जब तक सभी पक्षों की राय नहीं मिल जाती, तब तक कार्यवाही स्थगित कर दी जाए. दिल्ली हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के संबंध में अपना रुख स्पष्ट करने के लिए केंद्र को और समय देने से इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की पीठ ने कहा कि चल रही सुनवाई को स्थगित करना संभव नहीं है, क्योंकि केंद्र की परामर्श प्रक्रिया कब पूरी होगी, इस संबंध में कोई निश्चित तारीख नहीं है.
दो मार्च को साफ होगी तस्वीर

पीठ ने कहा, ‘तब, हम इसे बंद कर रहे हैं.’ हाई कोर्ट ने कहा, ‘फैसला सुरक्षित रखा जाता है.’ मामले में निर्देश जारी करने के लिए (इसे) दो मार्च के लिए सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए गए हैं. इस बीच, विभिन्न पक्षों के वकील अपनी लिखित दलीलें जमा कर सकते हैं.
हालांकि केंद्र सरकार को इस विषय पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए अपनी दलील पेश करनी है, लेकिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार का रुख राज्यों और अन्य हितधारकों से विचार-विमर्श के बाद ही सामने आ सकता है. उन्होंने कहा है कि इस मामले का सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा और केंद्र सरकार अपना रुख केवल विचार-विमर्श की प्रक्रिया के बाद ही स्पष्ट कर सकती है.
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कोर्ट बोली, मामले को लटका नहीं सकते
पीठ ने कहा, ‘अदालत इस मामले को इस तरह लटके नहीं रहने दे सकती. आप अपनी विमर्श प्रक्रिया जारी रखें. हम सुनेंगे और अपना फैसला सुरक्षित रखेंगे. लेकिन यदि आप यह कहते हैं कि अदालत को मामले को अंतहीन अवस्था के लिए स्थगित कर देना चाहिए तो ऐसा नहीं होगा.’ पीठ ने कहा, ‘यह एक ऐसा मामला है जिसे या तो न्यायपालिका या विधायिका के माध्यम से बंद किया जाएगा. जब तक हमारे समक्ष कोई चुनौती है, तब तक हमें सुनवाई जारी रखना होगा.’
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अप्राकृतिक यौन संबंध केस का जिक्र
पीठ ने आगे कहा कि जब शीर्ष अदालत में आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) और व्यभिचार के मामले आए, तो अदालत ने सुनवाई जारी रखी. न्यायमूर्ति शकधर ने कहा, ‘जितना अधिक मैं इसके बारे में सोचता हूं, उतना ही मुझे विश्वास होता जाता है कि आपको एक रुख अपनाना होगा और इसे बंद करना होगा. हम ज्ञान के अंतिम भंडार नहीं हैं. किसी को इस बारे में निर्णय लेने की जरूरत है.’
अदालत ने कहा कि निर्णायक कार्यपालिका को हां या ना कहना होता है और उसे अपना रुख बदलने से कोई नहीं रोक सकता. इस पर मेहता ने कहा, ‘हम हां या नहीं जरूर कहेंगे, लेकिन विचार विमर्श के बाद. मुझे निर्देश है कि हम अपना रुख विचार विमर्श के बाद ही स्पष्ट करेंगे. पहले दाखिल किए गए जवाबी हलफनामों को केंद्र के अंतिम हलफनामे के रूप में नहीं माना जाएगा और अंतिम हलफनामा परामर्श के बाद दाखिल किया जाएगा.
जानकारी हो कि अदालत भारत में बलात्कार कानून के तहत पतियों को दी गई छूट को खत्म करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. हाई कोर्ट ने सात फरवरी को केंद्र को अपना पक्ष रखने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था. केंद्र ने एक हलफनामा दाखिल कर अदालत से याचिकाओं पर सुनवाई टालने का आग्रह किया. केंद्र ने कहा था कि राज्य सरकारों सहित विभिन्न पक्षों के साथ सार्थक परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता है.
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रेप, मैरिटल रेप और हिंदू मैरिज ऐक्ट भी समझ लीजिए
आईपीसी की धारा 375 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के खिलाफ या उसकी मर्जी के बिना संबंध बनाता है तो उसे रेप कहा जाएगा. हालांकि आईपीसी में रेप की परिभाषा तय की गई है, लेकिन उसमें मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार का कोई जिक्र नहीं है.
आईपीसी की धारा 376 रेप के लिए सजा का प्रावधान करती है. इस धारा में पत्नी से रेप करने वाले पति के लिए सजा का प्रावधान है, लेकिन तभी जब पत्नी 12 साल से कम उम्र की हो. 12 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ पति के रेप करने पर जुर्माना या दो साल तक की कैद या दोनों सजाएं दी जा सकती हैं. उधर, हिंदू विवाह अधिनियम की बात करें तो यह पति और पत्नी के लिए एक-दूसरे के प्रति कई जिम्मेदारियां तय करता है. इनमें संबंध बनाने का अधिकार भी शामिल है.
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