
Mumbai : महाराष्ट्र की अकोला कोर्ट ने तीन मुस्लिमों को आतंकी होने के आरोपों से बरी करते हुए कहा कि किसी शख्स द्वारा जिहाद शब्द का इस्तेमाल करना उसके आतंकवादी होने का आधार नहीं माना जा सकता. बता दें कि अकोला कोर्ट ने जिन तीन आरोपियों को बरी किया, उनके नाम सलीम मलिक, शोएब खान और अब्दुल मलिक हैं. इन तीनों पर 25 सितंबर, 2015 को बकरी ईद के दिन बीफ प्रतिबंध मामले में एक मस्जिद के बाहर पुलिसकर्मियों पर हमले के चलते आतंकवादी होने का चार्ज लगाया गया था.
स्पेशल जज एएस जाधव ने तीनों अभियुक्तों को आतंकवादी होने के आरोपों से बरी करते हुए अपने 21 मई के फैसले में कहा, शब्दकोश के अनुसार जिहाद शब्द का अर्थ वास्तव में संघर्ष हैं. जिहाद एक अरबी भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है कोशिश या संघर्ष. जिहाद शब्द का तीसरा अर्थ एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए संघर्ष करने से हैं. जिहाद से संबंधित शब्द है मुहिम, शासन प्रबंध, आंदोलन, कोशिश और धर्मयुद्ध , स्पेशल जज ने कहा, आरोपियों ने सिर्फ जिहाद शब्द का इस्तेमाल किया इसलिए उन्हें आतंकवादी घोषित करना सही नहीं होगा.
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अब्दुल मलिक को तीन साल जेल की सजा सुनाई गयी थी
आरोपी अब्दुल मलिक को पुलिसकर्मियों को चोट पहुंचाने के कारण तीन साल जेल की सजा सुनाई गयी थी. चूंकि वह 25 सितंबर, 2015 से जेल में था, इसिलए तीन साल से अधिक जेल में बिताने के बाद उसे रिहा कर दिया गया. कोर्ट ने कहा, ऐसा लगता है कि आरोपी नंबर एक अब्दुल ने गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार और कुछ हिंदू संगठनों के खिलाफ प्रदर्शन किया. इसमें कोई शक नहीं कि उसने जिहाद शब्द का इस्तेमाल किया, मगर उसे जिहाद शब्द का इस्तेमाल करने के लिए आतंकी घोषित नहीं किया जा सकता.
अभियोजन पक्ष के अनुसार अब्दुल मस्जिद में पहुंचा, चाकू निकाला और ड्यूटी पर तैनात दो पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया. उसने हमले से पहले कहा था कि गोमांस पर प्रतिबंध के खिलाफ वह पुलिसकर्मियों को मार देगा. हालांकि अब्दुल ने खुद पर लगे इन आरोपों से इनकार किया है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने घायल पुलिसकर्मी और ड्यूटी पर तैनात अन्य पुलिसकर्मियों की गवाही पर भरोसा किया. कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि वे पुलिसकर्मी हैं, उनकी गवाही को छोड़ा नहीं जा सकता. हालांकि अब्दुल की वकीलों ने दावा किया कि पुलिसकर्मियों के बयान में विसंगतियां थीं.
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अब्दुल को हत्या के प्रयास में दोषी नहीं ठहराया जा सकता
कोर्ट ने घटनास्थल पर आरोपियों की मौजूदगी को माना और फैसला सुनाया कि अब्दुल को हत्या के प्रयास में दोषी नहीं ठहराया जा सकता. क्योंकि पुलिसकर्मियों के घायल होने के कारण उनके शरीर के महत्वपूर्ण अंग नहीं थे. बता दें कि गवाही के दौरान पुलिसकर्मियों ने अब्दुल पर हत्या की कोशिश करने का आरोप लगाया था. इस क्रम में एटीएस ने दावा किया कि अब्दुल ने अपने इकबालिया बयान में शोएब और सलीम का नाम लिया था.
एटीएस ने दावा किया कि दोनों ने अब्दुल और अन्य युवाओं को जिहाद के प्रभावित किया. गुप्त बैठकें की और नफरत फैलाने वाले भाषण दिये. इस पर कोर्ट ने कहा कि आरोपी का इकबालिया बयान स्वेच्छिक नहीं था. ऐसा माना जाता है कि पुलिस हिरासत में 25 दिन बिताने के बाद अब्दुल स्वेच्छिक बयान देना चाहता था, मगर उसे कोई कानूनी सहायता मुहैया नहीं कराई गयी. एटीएस ने यह भी दावा किया था कि अब्दुल फ्रेंड फॉरएवर नाम के व्हाट्सएप ग्रुप का हिस्सा था. जिसमें जिहाद नाम की ऑडियो क्लिप शेयर की गयी.