
Surjit Singh
23 अक्टूबर. शाम का वक्त. दिल्ली स्थित भाजपा का केंद्रीय कार्यालय. महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में पहले की तुलना में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री सह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का भव्य स्वागत. फिर प्रधानमंत्री का अभिभावदन. जिसमें वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को दूसरे कार्यकाल की बधाई देते हैं. और दोनों चुनाव परिणाम को अभूतपूर्व बताते हैं. कार्यकर्ता तालियां बजाते हैं.
15 दिन बाद कार्यवाहक मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा. वह दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बन सके. महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा 144 नहीं जुटा सके. परिस्थितियां ऐसी बनती गईं कि वह सरकार बनाने का दावा तक पेश करने की ताकत नहीं जुटा सके. हरियाणा में भी गठबंधन की सरकार बनी.
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तो अब क्या स्थिति बनती है. प्रधानमंत्री की साख भी दांव पर लग गयी. जिसे वह अभूतपूर्व सफलता बता रहे थे, वह असल में भाजपा के सबसे स्वर्णिम काल में अभूतपूर्व पराजय के रूप में सामने आया. वह भी उस शिव सेना के कारण, जो भाजपा की पारंपरिक साथी रही है. दोनों का चुनावी एजेंडा भी एक ही रहा है. इसके बावजूद भाजपा अपने सबसे पुराने साथी को देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनाने को राजी नहीं कर सकी. क्योंकि भाजपा के रणनीतिकार जड़ से कट चुके हैं. दोस्त से अधिक दुश्मन तैयार कर चुके हैं. असल में यही अभूतपूर्व पराजय है.
अगर 9 नवंबर को कोई भी दल सरकार बनाने का दावा पेश नहीं करता है, तो महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शाषण लगना तय है. शिव सेना इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहरा रही है. एनसीपी के शरद पवार कह चुके हैं कि वह सरकार बनाने के खेल में शामिल नहीं हैं. कांग्रेस ने भी खुद को सरकार बनाने के खेल से दूर ही रखा है. भाजपा पिछले 15 दिनों से सरकार बनाने में जुटी थी. कुल मिला कर जगहंसाई भाजपा की ही हुई.
यह वक्त भाजपा के नेताओं के लिए खुद की समीक्षा का भी है. अपने भीतर के अहंकार को खत्म करने का है. अपने चारों तरफ खड़ी भ्रष्ट व चापलूसों की दीवार को तोड़ने का है. ताकि भाजपा के अपने उसके साथ बने रहें.
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