
Amit jha
Ranchi : झारखंड में वस्त्र व्यवसाय से 2 लाख कारोबारी जुड़े हुए हैं. वे सालाना 10 हजार करोड़ से अधिक का बिजनेस करते हैं. अचानक आये लॉकडाउन ने इस बार उनकी हालत पतली कर दी है. 3 मई तक लॉकडाउन की अवधि केंद्र सरकार ने बढ़ा दी है.
इसकी समाप्ति के बाद भी कपड़ा व्यवसाय और वस्त्र उद्योग से जुड़े लोग कब तक फिर से खड़ा हो सकेंगे, इसे लेकर गहरी चिंता है. सरहुल से लेकर शादी विवाह के डिमांड सीजन तक की अवधि में कपड़ा कारोबारी 500 करोड़ से अधिक का नुकसान उठा चुके हैं. अब दशहरा. दिवाली और अगले साल के शादी सीजन आने के बाद ही शायद राहत का समय शुरू हो सके.
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सरहुल से लेकर शादी सीजन में छिनी खुशियां
25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन चल रहा है. अनिवार्य सेवाओं को छोड़कर कई सेवाओं को स्थगित करने का आदेश केंद्र सरकार ने जारी किया हुआ है. झारखंड के वस्त्र विक्रेताओं की माने तो लॉकडाउन के असर से अब तक पूरे झारखंड में 300 करोड़ से भी अधिक का नुकसान हो चुका है. सरहुल में केवल रांची में ही 20 करोड़ से अधिक का कारोबार होता था.
50 हजार से अधिक लोग धोती, गमछा, गंजी, साड़ी और दूसरे नए कपड़े की खरीदारी करते थे. इस बार लोग घरों से निकल भी न सके. रामनवमी में भी झंडे और दूसरे जरुरी कपड़ों की खरीदारी से 5 करोड़ तक का मुनाफा हो जाता था.
रांची में थोक वस्त्र विक्रेता संघ से जुड़े 50 कपड़ा व्यवसायी तो ऐसे हैं जो हर माह 5 करोड़ तक का कारोबार कर लेते हैं. इसके अलावा अप्रैल मई में शुरू होने वाले शादी सीजन में भी केवल रांची में 100 करोड़ से भी अधिक का बिजनेस हो जाता है. अबकी लॉकडाउन में 1 रुपये की आमद भी मुश्किल हो गयी है.
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रोटी, कपड़ा और मकान के मन्त्र पर नहीं हो रहा अमल
झारखंड थोक वस्त्र विक्रेता संघ के निवर्तमान अध्यक्ष और झारखंड चैम्बर के कार्यकारिणी सदस्य प्रवीण लोहिया के अनुसार हर इंसान की जरूरत होती है- रोटी, कपड़ा और मकान. केंद्र सरकार ने लॉकडाउन लागू किया है. यह फैसला सही है. पर छोटे, मझोले उद्योगों को राहत के मामले में हजारों सवाल खड़े हो गए हैं. कपड़ा उद्योग से जुड़े लाखों कारोबारियों और कामगारों के लिए जटिल समस्या पैदा होने लगी है.
2 लाख कपड़ा व्यवसायी झारखंड में हैं. उनके अपने परिजनों के अलावा उनके साथ जुड़े 2-3 कर्मचारी और उन पर आश्रित उनके परिजनों को भी जोड़ें तो यह संख्या बड़ी हो जायेगी. झारखंड में टेक्सटाइल मैनुफेक्चरिंग के लगभग 40 यूनिट हैं. जिनमें हजारों कामगार हैं. लॉकडाउन में कंपनी बंद पड़ी है. हजारों कामगार घर निकल गए हैं. अगले 2-3 माह तक उनकी वापसी के आसार नहीं. बाहर से भी जो प्रवासी श्रमिक आ चुके हैं.
वे भी लॉकडाउन की समाप्ति पर तुरंत निकलने की स्थिति में नहीं होंगे. ऐसे में जब कपड़े तैयार ही नहीं होंगे, बिकेंगे ही नहीं तो मजदूरों को भुगतान की गारंटी कौन दे सकेगा. इसके अलावा बच्चों का स्कूल ड्रेस, मच्छरदानी, बेडशीट, कुशन, तकिया का कवर और ऐसा ही छोटा मोटा कार्य भी लोगों के लिए आमदनी का जरिया था. बाहर से कच्चा माल नहीं आने के कारण हजारों लोगों के सामने आर्थिक संकट खड़ा होने लगा है.
बैंकों का बढ़ेगा एनपीए
प्रवीण लोहिया के मुताबिक केंद्र को छोटे उद्योगों को बचाने और प्रोत्साहित करने को गंभीर होना होगा. लोन और जमीन लेकर कपड़ा व्यवसाय शुरू करने वाले सभी लोग बहुत धनी हैं, यह भ्रामक बात है. लॉकडाउन में भी बैंक का काम जारी है. इएमआई भरना ही है.
लॉकडाउन में प्लांट, दुकान बंद रहने के बावजूद बिजली, टेलिफोन बिल वगैरह लिया ही जाना है. इसमें जब तक ठोस राहत नहीं मिलेगी, कपड़ा व्यवसायी बेचैन रहेंगे. जो स्थिति बन गयी है, कईयों को अपना कारोबार समेटना तय लग रहा है. बैंकों में एनपीए बढ़ने की भी संभावना है.
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