
Jamshedpur: संस्था ‘सृजन-संवाद’ की 113वीं गोष्ठी ‘लीजेंड ऑफ़ सिनेमा’ के नाम रही. सृजन संवाद ने ‘न्यू डेल्ही फ़िल्म फ़ाउंडेशन’ के साथ मिलकर वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर इस गोष्ठी का आयोजन किया. डॉ. विजय शर्मा ने वक्ताओं का स्वागत किया. उन्होंने बताया कि ‘सृजन संवाद’ पिछले 11 वर्षों से साहित्य, सिनेमा तथा विभिन्न कलाओं पर कार्यक्रम करते हुए अपनी पहचान एक गंभीर मंच के रूप में बना चुका है. 113वीं गोष्ठी में सिने-निर्देशकों पर विचार-विमर्श के लिए मनमोहन चड्ढ़ा ने दादा साहेब फालके पर तथा अमिताभ आकाश नाग ने तपन सिन्हा पर अपनी बात रखी.
हमने अपनी विरासत के प्रति लापरवाही बरती
‘हिन्दी सिनेमा के इतिहास’ के लेखक मनमोहन चड्ढ़ा ने भारतीय फ़िल्म के जनक दादा साहेब फ़ालके पर अपनी बात रखते हुए कहा कि दादा साहेब फ़ालके सत्तर के दशक तक गुमनामी में खोए रहे. उनकी फ़िल्म भी काफ़ी समय तक उपलब्ध न रही. इस तरह हमने अपनी विरासत संभालने में लापरवाही बरती. जब फ़ालके साहेब के नाम पर पुरस्कार दिया जाने लगा तो उनकी खोज-खबर ली गई. दादा साहेब ने बहुत कठिनाइयों के बीच फ़िल्म निर्माण किया और भारत में फ़िल्म निर्माण की नींव रखी. वे अंत तक फ़िल्म बनाने को लेकर उत्साहित थे.
अपने समय से आगे के निर्देशक थे तपन सिन्हा
‘द सिनेमा ऑफ़ तपन सिन्हा: एन इंट्रोडक्शन’ के रचनाकार अमिताभ नाग ने बताया कि तपन सिन्हा भी बहुत दिन तक गुमनाम रहे. जब 2009 में उन्हें दादा साहेब फ़ालके पुरस्कार प्राप्त हुआ तब उनकी चर्चा होने लगी. लेकिन आज भी इस अनोखे निर्देशक पर अध्ययन के लिए सामग्री उपलब्ध नहीं है जबकि वे सत्यजीत रे, मृणाल सेन एवं ऋत्विक घटक की श्रेणी के फ़िल्म निर्देशक हैं. बांग्ला-हिन्दी भाषा में फ़िल्म बनाने के बावजूद बंगाल में भी उनकी अनदेखी की गई. तपन सिन्हा अपने समय से आगे के निर्देशक थे. उन्होंने अस्सी के दशक में बलात्कार तथा एसिड अटैक को अपनी फ़िल्मों का विषय बनाया. वे साहित्य से अधिक अखबार की सुर्खियों से अपना सिने-कथानक उठाते थे. वे स्टार पर नहीं अपने नरेटिव पर निर्भर करते थे और उन्होंने दोनों भाषाओं में सफ़ल फ़िल्में बनाई.‘न्यू डेल्ही फ़िल्म फ़ाउंडेशन’ के संस्थापक आशीष कुमार सिंह ने तपन सिन्हा की फ़िल्मों का संक्षिप्त परिचय दिया. धन्यवाद ज्ञापन मीडिया एडुकेटर डॉ. नेहा तिवारी ने किया.


