
Surjit Singh
17 सितंबर को जोधपुर के सीबीआइ की विशेष अदालत ने अटल सरकार में विनिवेश मंत्री रहे अरुण शौरी समेत पांच लोगों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया है. अदालत ने यह आदेश तब दिया है जब मामले की जांच कर रही सीबीआइ ने केस में क्लोजर रिपोर्ट दी है. श्री शौरी के साथ-साथ तब के सचिव प्रदीप बैजल, पर्यटन सचिव रवि विनय झा, फाइनेंसियल एडवाइजर आशीष गुहा, निजी वैल्यूअर कंपनी कांति करमसे पर भी कार्रवाई का आदेश दिया गया है.
आरोप है कि वाजपेयी सरकार में लक्ष्मी निवास पैलेस को सिर्फ 7.5 करोड़ रुपये में बेचा गया था. जबकि उसकी कीमत 200 करोड़ रुपये से अधिक है. जिस वक्त यह सौदा हुआ उस वक्त अरुण शौरी विनिवेश मंत्री थे.
अटल सरकार ने सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने के लिये 10 दिसंबर 1999 को विनिवेश विभाग का गठन किया था. 6 सितंबर 2001 को विनिवेश मंत्रालय बनाया गया था. जिसकी कमान अरुण शौरी को सौंपी गई थी. उस दौरान कई बड़ी सरकारी कंपनियों के सौदे को मंजूरी दी गई थी.
देश में अभी क्या चल रहा है. विनिवेश के नाम पर मोदी सरकार बड़ी-बड़ी सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंप रही है. वैसी कंपनियों को भी जो घाटे में नहीं चल रही हैं, बल्कि भारी फायदे में हैं. प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपया के मुनाफा में हैं. इस पर भी सवाल उठ रहे हैं.
मोदी सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि कुछ खास निजी कारोबारियों को लाभ पहुंचाने की नीयत से सरकारी कंपनियों को बेचा जा रहा है. BSNL जैसी कंपनियों को साजिश के तहत घाटे में पहुंचाया रहा है. ताकि बाद में विनिवेश के नाम पर उसे बेचा जा सके.
ऐसे वक्त में जोधपुर सीबीआइ कोर्ट का फैसला मोदी सरकार के उन मंत्रियों और केंद्र में पदस्थापित ब्यूरोक्रेट्स के लिये एक सबक साबित हो सकता है. मंत्रियों और ब्यूरोक्रेट्स को डरने की जरुरत है. क्योंकि जब 20 साल बाद अटल सरकार के फैसले को लेकर मामला दर्ज हो सकता है, वारंट जारी हो सकता है तो आज नहीं तो कल मोदी सरकार के फैसलों को लेकर भी आपराधिक मामला दर्ज किया जा सकता है. वर्तमान में फैसला लेने में शामिल मंत्रियों व अफसरों के खिलाफ वारंट जारी हो सकता है.
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