
Ranchi: देश के दूसरे राज्यों की तरह झारखंड में भी बेसहारा और कठिन परिस्थितियों में बच्चे रह रहे हैं. ये ऐसे बच्चे हैं जो अपने परिवार के साथ स्ट्रीट में किसी तरह जीवन बसर कर रहे हैं. ऐसे भी हैं जिन्हें देखने वाला कोई नहीं. उन्हें अकेले ही सड़कों पर या जहां तहां चुनौतियों के साथ जीवन गुजारने की स्थिति है. महिला और बाल विकास मंत्रालय की मानें तो ऐसे बच्चों के मामले में बाल स्वराज पोर्टल पर लगातार हर राज्य से आंकड़े दिये जाते हैं.
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पोर्टल पर दी गयी जानकारी के मुताबिक (फरवरी, 2022 के आखिर तक) झारखंड में कुल 40 ऐसे बच्चों की पहचान हुई है जो विषम परिस्थितियों में जी रहे हैं. इनमें से 19 ऐसे बच्चे हैं जो अपने परिवार के साथ अलग अलग स्ट्रीट में रहते हैं. 10 बच्चे ऐसे हैं जो दिन में स्ट्रीट में और शाम में अपने परिवार के साथ घर वापस आ जाते हैं जो पास की झुग्गी झोंपड़ियों में रहते हैं. इसके अलावे 11 बच्चे तो ऐसे हैं जिनके पास ना तो किसी तरह का घर है, ना कोई देखने वाला परिवार. वे अकेले ही स्ट्रीट में रह रहे हैं.


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महाराष्ट्र टॉप पर
बाल स्वराज पोर्टल के रिकॉर्ड के हिसाब से देश भर में कुल 17914 बच्चे बेसहारा बच्चों की कैटेगरी में हैं. इनमें से 834 बच्चे स्ट्रीटों में रहकर जीवन गुजारते हैं. देश भर में बेसहारा बच्चों की सबसे अधिक संख्या महाराष्ट्र (4952) में हैं. इसके बाद गुजरात (1990), तमिलनाडू (1703), दिल्ली (1653), मध्य प्रदेश (1492), तेलंगाना (809) जैसे राज्य हैं. इन राज्यों की तुलना में सिक्किम, मणिपुर, मिजोरम, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरूणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में एक भी ऐसे बच्चे नहीं हैं. नागालैंड (1), मेघालय (5), दादर और नगर हवेली (11) जैसे राज्यों में भी ऐसे बच्चों की संख्या बेहद सीमित है.
मिशन वात्सल्य से लाभ
महिला और बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक उसकी ओर से बाल संरक्षण सेवा (सीपीएस स्कीम) के तहत मिशन वात्सल्य का कार्यान्वयन किया जा रहा है. इसके जरिये जरूरतमंद और कठिन परिस्थितियों में रह रहे बच्चों के अलावे बेसहारा बच्चों के पुनर्वास के लिये राज्य, संघ राज्य सरकारों को सहायता दी जाती है. स्कीम के तहत स्थापित बाल देखभाल संस्थान (सीसीआई), आयु के हिसाब से शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुंच, पुनर्निर्माण, स्वास्थ्य देखभाल आदि जैसे कामों में मदद की जा रही है.
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