
Ranchi : अभी कुछ दिनों पूर्व कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धार्मिक नेता पोप का एक बयान सामने आया था. इसमें उन्होंने कहा था कि महिलाएं गोस्पेल (सुसमाचार) पढ़ सकती है लेकिन वे पादरी नहीं बन सकतीं. कैथोलिक चर्च ने अपने नियमों में कुछ बदलाव किए हैं और चर्च के धार्मिक संस्कारों में महिलाओं को कुछ और अधिकार दिए हैं लेकिन अभी भी वहां महिलाएं पादरी नहीं बन सकती हैं.
इसके विपरीत प्रोटेस्टेंट चर्च में महिलाएं पादरी के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं. जीइएल चर्च, एनडब्ल्यूजीइएल चर्च और सीएनआइ में महिला पादरी हैं.
जीईएल चर्च में सबसे पहले जिन तीन महिला पादरियों ने वर्ष 2000 में शपथ ली थी, उनमें सबसे वरिष्ठ और अब सेवानिवृत हो चुकी महिला पादरी इसाबेला बारला कहती हैं, ‘मुझे ईश्वर और लोगों की सेवा करनी थी इसलिए मैं पादरी बनी. मेरा कार्यक्षेत्र गोविंदपुर में था जहां प्रचारक ट्रेनिंग स्कूल में मैं धार्मिक शिक्षा देती थी. मुझे मंडलियों में चर्च सर्विस (आराधना का संचालन) करने भी भेजा जाता था. मैं जहां-जहां भी गयी वहां मुझे लोगों से काफी सम्मान मिला. तकरीबन 16 सालों तक मैंने पादरी के रूप में सेवा दी. मुझे आज तक कभी कोई परेशानी नहीं हुई और न ही कभी मुझे ऐसा लगा कि महिला होने की वजह से मुझसे भेदभाव किया जा रहा है.’
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पर एक और महिला पादरी ने नाम ना प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि चर्च में महिला पादरियों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता है. उन्होंने बताया कि एक बार जब वे चर्च में प्रार्थना कराने पहुंची तो वहां मौजूद लोग बाहर चले गए और प्रार्थना में हिस्सा नहीं लिया. सिर्फ चार पांच लोग रह गए थे जिनमें एक दो को छोड़कर बाकी महिलाएं थी.
उन्होंने कहा कि चर्च में पुरुषवादी सोच हावी है. अभी जीइएल चर्च में करीब 29 महिला पादरी कार्यरत हैं. साल 2000 से पहले एक भी नहीं थी. हालांकि मैं मानती हूं कि जितनी भी महिला पादरी हैं वे काफी अच्छा काम कर रही हैं और उन्होंने खुद को साबित किया है.
सीएनआई चर्च के तहत रांची में अभी एक महिला पादरी है. उस चर्च को 128 साल बाद पहली महिला पादरी मिली.
इसाबेला बारला कहती हैं-आज महिला पादरी सभी तरह के धार्मिक संस्कार करा रही हैं. वे चर्च सर्विस के अलावा विवाह जैसे संस्कार भी करा रही हैं. उनका भविष्य सुनहरा है.
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