
Jamshedpur : जिला परिषद निर्वाचन क्षेत्र संख्या दस में जीत के लिए सभी प्रत्याशी जमकर पसीना बहा रहे हैं, लेकिन जो तस्वीर बन रही है उसमें बुलू रानी सिंह के मुकाबिल सभी प्रत्याशी बौना दिख रहे हैं. बुलू रानी की घेराबंदी आसान नहीं दिख रही. बुलू रानी के कद से लेकर वोटों की गोलबंदी के समीकरण में भी सभी प्रत्याशी बेवजह पसीना बहाते दिख रहे हैं. जिला परिषद अध्यक्ष के रूप में अपने निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं का मान बढ़ानेवाली बुलू रानी मतदाताओं की पहली पंसद यूं ही नहीं बनी हुई है.
मिलनसार होने के साथ लोगों के सुख-दुख में हमेशा सहभागी होना बुलू रानी से मुकाबले के लिए मैदान में उतरे अन्य प्रत्याशियों को मतदाताओं की ओर से खास तबज्जो नहीं दिला पा रहा है. यही वजह है कि बुलू रानी फिर जीत के प्रति आश्वस्त है और कहती हैं कि क्षेत्र की तकदीर और तस्वीर बदलने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगी.
सार्वजनकि जीवन का लंबा अनुभव
बुलू रानी के पास वैसे भी सार्वजनिक जीवन का लंबा अनुभव है. कोई एक दशक पूर्व घर की चौखट लांघकर समाजसेवा के क्षेत्र में कदम रखनेवाली बुलू रानी ने हितकू से पंचायत समिति सदस्य के रूप में अपनी पारी की शुरुआत की और जमशेदपुर सदर प्रखंड की प्रमुख की कुर्सी पर बैठने में कामयाब रही. वर्ष 2015 में जिला परिषद का चुनाव लड़ा और जिला परिषद अध्यक्ष की कुर्सी संभालने का सुअवसर मिला. एक बार फिर वह जिला परिषद निर्वाचन क्षेत्र संख्या 10 से चुनावी अखाड़े में है. क्षेत्र के मतदाता इस वजह से इसबार भी तबज्जो से दे रहे हैं कि चुनाव जीतने पर जिला परिषद अध्यक्ष की दावेदार रहेंगी.
हर समीकरण में भी फिट
जहां तक जातीय समीकरण की बात है तो बुलू रानी सिंह यहां भी भारी पड़तीं नजर आ रही है. यह निर्वाचन क्षेत्र भूमिज बहुल है. भूमिज मतदाताओं की मजबूत गोलबंदी के साथ बुलू रानी का परंपरागत वोट बैंक भी है. बाकी प्रत्याशियों में अधिकतर संथाल समुदाय से हैं. इनके बीच वोटों का बिखराव बुलू रानी की राह बना रहा है. भाजपा नेत्री बारी मुर्मू भी इसी क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं. लेकिन राजनीतिक धरातल पर फिल्डिंग के अनुभव की कमी ने उनकी हालत पतली कर रखी है. जनता की समस्याओं को लेकर जुझारू नहीं रहना भी उनकी स्वीकार्यता का दायरा नहीं बढ़ा पा रहा.



