
AbhisheK Piyush
Jamshedpur : राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कार्यक्रम के क्रियान्वयन में झारखंड फिसड्डी है. जी हां, जहां एक ओर राज्य सरकार चिकित्सीय सुविधाओं के बेहतर क्रियान्यवन के लिए पैसों का रोना रो रही है. वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कार्यक्रम अंतर्गत उपलब्ध 3286.36 करोड़ रुपये अबतक खर्च नहीं कर सकी है. दरअसल, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित रूप से कार्य नहीं करने की वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई है. जिसका खामियाजा राज्य की जनता काे भुगतना पड़ रहा है. ऐसे में विगत पांच वर्षों के दौरान राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, झारखंड के द्वारा लगभग 3286.36 करोड़ रुपये का व्यय नहीं किया गया है. इससे राज्य के निवासियों को मूलभूत चिकित्सा सुविधाओं से वंचित रहना पड़ा है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत कार्यरत विभिन्न कार्यक्रम कोषांगों के द्वारा वित्त, अधिप्राप्ति (प्रोक्योरमेंट), प्रचार-प्रसार, मानव संसाधन आदि से संबंधित संचिकाओं को सीधे ऐसे कोषांगों को प्रेषित किया जाता है, जहां ऐसी संचिकाएं एक लंबी अवधि तक निष्पादित नहीं हो पाती हैं. ऐसी संचिकाओं के संबंध में संबंधित कोषांग के द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, झारखंड के अभियान निदेशक को न तो कोई जानकारी दी जाती है और न ही अभियान निदेशक के स्तर से आशय की कोई समीक्षा ही की जाती है. वहीं वित्त कोषांग के द्वारा उपलब्ध कार्यक्रम राशि को विभिन्न कोषांगों के बीच तदर्थ रूप से उपावंटित किया जाता है, जिस क्रम में ऐसे कार्यक्रमों की प्रगति, आवश्यकता एवं व्यय की स्थिति को दृष्टिगत नहीं रखा जाता है. इसके अलावा विभिन्न कार्यक्रमों के संचालन को लेकर आवश्यक विभिन्न सामाग्रियों के क्रय के लिए अधिप्राप्ति कोषांग (प्रोक्यूरमेंट सेल) के स्तर पर कोई तत्परता नहीं बरती जाती है. साथ ही आधे-अधूरे विज्ञापन प्रकाशित किये जाते हैं. जिस क्रम में काफी समय तक के शुद्धि पत्रों को निर्गत करने में व्यतीत कर दिया जाता है. फलस्वरूप ससमय आवश्यक सामाग्रियों का क्रय नहीं हो पाता है. साथ ही ऐसे कार्यक्रमों की प्रगति बुरी तरह प्रभावित होती है.



ये भी हैं खामियां



मानव संसाधन कोषांग के द्वारा राज्य के विभिन्न जिलों में कार्यरत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कर्मियों के कार्यों का न तो कोई अनुश्रवण एवं मूल्यांकन किया जाता है और न ही रिक्तियों को भरने के लिए कोई ठोस एवं सार्थक प्रयास किये जाते है, जिसके फलस्वरूप ऐसे कार्यक्रमों की प्रगति प्रभावित होती है. प्रचार-प्रसार कोषांग के द्वारा विभिन्न प्रचार-प्रसार सामाग्रियों के क्रय एवं मुद्रण में काफी समय व्यतीत किया जाता है. साथ ही कार्यक्रमवार कोई स्पष्ट प्रचार-प्रसार रणनीति तय नहीं किये जाने के परिणामस्वरूप तदर्थ रूप से प्रचार-प्रसार किया जाता है. जिसके फलस्वरूप आम नागरिकों में विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं/कार्यक्रमों के प्रति जागरूकता एवं आवश्यक सूचनाओं का अभाव रहता है. वहीं इनके लाभ से जनता वंचित रह जाती है. गुणवत्ता कोषांग के द्वारा प्रदान की जा रही विभिन्न स्वास्थ्य सेवाओं आदि की गुणवत्ता का कोई आंकलन नहीं किया जाता है और न ही प्रदान की जा रही सेवाओं को बेहतर करने की दिशा में कोई कार्रवाई की जाती है. इसके अलावा संचालित विभिन्न कार्यक्रमों के राज्य स्तरीय पदाधिकारियों एवं कार्यक्रम कोषांगों में कार्यरत कर्मियों का कोई क्षेत्रीय भ्रमण का मानक निर्धारित नहीं है और न ही पदाधिकारियों द्वारा नियमित रूप से क्षेत्र भ्रमण किया जाता है. जिसके फलस्वरूप क्षेत्रीय कार्यालयों में कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के प्रति अराजकता, असमंजसता तथा गैर-जिम्मेदार व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है. वित्त कोषांग के द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत कार्यरत विभिन्न कर्मियों के वेतन विमुक्ति में भी काफी विलंब किया जाता है, जिसके फलस्वरूप अल्प मानदेय प्राप्त करने वाले कर्मियों के बीच असंतोष की भावना उत्पन्न होती है. साथ ही उनके कार्य करने की क्षमता कुप्रभावित होती है.
क्या है राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन प्रारंभ किया गया था. इसी क्रम में वर्ष 2013 में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन आरंभ किया गया. कालक्रम में वर्ष 2021 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को पुनर्नामित करते हुए ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन’ के रूप में नामित किया गया, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन को भी सम्मिलित किया गया. इसके तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है. जो स्वास्थ्य सूचकांको के दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण है.