
खनिज भंडारों से समृद्ध झारखंड जब बिहार से अलग हुआ था, तो बड़ी आशाएं जगी थीं. एक स्वर्णिम अवसर था इसे विकास और सुशासन की प्रयोगशाला बनाने का. पर दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नहीं. वित्त वर्ष 2019 में झारखंड की प्रति व्यक्ति आय 76019 रुपये थी, जबकि गोवा की 458304 रुपये. यहां तक कि झारखंड के साथ ही बने राज्यों छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति आय 98887 रुपये प्रतिवर्ष है एवं उत्तराखंड में 198738 रुपये है. भारत की प्रति व्यक्ति आय 135050 रुपये है. झारखंड राष्ट्रीय औसत से भी काफी नीचे है.
देश की खनिज संपदा का 40 प्रतिशत झारखंड में है. देश के कोयला भंडार का 27 प्रतिशत, आयरन ओर का 26 प्रतिशत झारखंड में है. यूरेनियम, अभ्रख, बॉक्साइट, ग्रेनाइट, चूना पत्थर, ग्रेफाइट, डोलोमाइट आदि खनिजों की भी झारखंड में उपलब्धता है. झारखंड में वर्ष 2018-19 में 2510 करोड़ रुपये का खनिज उत्खनन हुआ है. झारखंड में तो पर्यटन के साथ खनिज ही प्रचुरता में है. फिर इतना पिछड़ापन नहीं होना चाहिए. इस अंतर को पाटा जा सकता है, पाटा ही जाना चाहिए.
अब जबकि देश में भी तथा राज्यों में भी एक विकासोन्मुखी सरकार की अवधारणा प्रबल हो चुकी है एवं उद्योग व व्यापार की उन्नति के मार्ग के माध्यम से विकसित अर्थव्यस्था व विकास पर जोर दिया जा रहा है, उस दिशा में गंभीर तथा आमूलचूल परिवर्तन के प्रयास किये जा रहे हैं, तो उम्मीद की एक किरण की अपेक्षा तो की ही जा सकती है.
झारखंड मे नाना प्रकार की प्रचुर खनिज संपदा है. पर्याप्त श्रम उपलब्ध हैं. टाटा जैसे राष्ट्र के प्रमुख औद्योगिक समूह की वर्षों से उपस्थिति है. एक औद्योगिक संस्कृति है. ऐसे में झारखंड विकास एवं समृद्धि की नयी गाथा लिख सकता है. परंतु, इसके लिए राज्य के राजनीतिक नेतृत्व व अधिकारी वर्ग को उद्योग तथा व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल नीतियां बनानी होंगी, उनका अनुपालन सुनिश्चित करना होगा. एक क्रांति सी करनी होगी, क्रांति ही करनी होगी. झारखंड में नये युग की एक भारतीय औद्योगिक क्रांति, चमत्कृत सी करती हुई. साधन उपलब्ध हैं. दृष्टि तथा इच्छाशक्ति चाहिए.
झारखण्ड ने वर्ष 2019-20 में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में पूरे देश में पांचवां स्थान प्राप्त किया. विकास के अवसर तथा साधन हेतु कई अन्य प्रयास भी किये जा रहे हैं, हुए हैं. स्टेट डेवलपमेंट काउंसिल का भी गठन हुआ. परंतु, अनुपालन की दिशा में गंभीर व परिणामोन्मुखी प्रयास की आवश्यकता है.
अभी का युग टोटल पैकेज का है, प्रतियोगिता का है, इसलिए निवेश आकर्षित करने एवं उस निवेश को व्यावहारिक बनाने हेतु आवश्यकता समग्र तथा समेकित भाव की है. उसके बिना विकास को ठोस रूप प्रदान करना असंभव है. उद्योग व व्यापार से संबंधित प्रक्रियाओं, व्यवस्थाओं तथा इनके अनुपालन तक को पूर्ण बनाना होगा. इसके लिए झारखंड को उद्योग, व्यापार और निवेश की नीतियों के दृष्टिकोण से देश का सबसे अधिक आकर्षक राज्य बनाना होगा, तभी पूंजी का प्रवाह इधर होगा. पूंजी उधर ही गतिमान होती है, जिधर उसे सर्वोत्तम सुविधाएं मिली होती हैं.
अभी भी भारत में व्यापार करना बहुत कठिन है. कानूनों, नियमों का मकड़जाल फैला है. ऐसे में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को और भी व्यापक बनाना होगा. उदाहरण के तौर पर अभी भी मापतौल धारा जैसे कानून अस्तित्व में हैं एवं वे भी भयावह प्रावधानों के साथ. ऐसे कानूनों को तुरंत वापस लेना चाहिए. आज के युग में इनकी प्रासंगिकता ही नहीं बची. वित्तीय अनियमितता के मामले में कारावास के दंड का प्रावधान हटा दिया जाना चाहिए. अगर कोई पेनाल्टी/अर्थदंड की राशि का भुगतान न करे, तभी कारावास की सजा होनी चाहिए. अभी तो छोटी-छोटी वित्तीय गलतियों के लिए जेल की सजा का प्रावधान है. इससे व्यापारी भयभीत रहता है एवं ऐसे कानूनों का दुरुपयोग भयादोहन के लिए भी होता है.
ई-गवर्नेंस का अधिकतम विस्तार होना चाहिए. जिन सभी प्रक्रियाओं में ई-गवर्नेंस का विकल्प दिया जा सकता है, दिया जाना चाहिए. ई-गवर्नेंस से चीजें अपेक्षाकृत सरल, सहज होती हैं तथा इससे देखरेख में भी सहजता होती है.
श्रम कानूनों के पालन लिए स्वघोषणा एक अच्छा कदम है, पर इसके शपथ पत्र से एफिडेविट का स्टेटस हटा लिया जाना चाहिए. इसके एफिडेविट के स्टेटस के कारण व्यापारी व उद्योगपति इस ओर नहीं जाते हैं, क्योंकि ऐसे में इसके किसी छोटे ही प्रावधान के उल्लंघन पर गंभीर दंड हो सकता है.
निवेशकों की शिकायतों के निवारण हेतु एक प्रभावी उच्चस्तरीय शिकायत निवारण व्यस्था होनी चाहिए. संभव हो तो सीधे मुख्यमंत्री की निगरानी में यह काम करना चाहिए, ताकि निवेशकों को लंबे समय तक इधर-उधर भटकना न पड़े. उनकी समस्याओं का तुरंत समाधान हो एवं प्रोजेक्ट अटके नहीं, लंबित न हो. एक बार प्रोजेक्ट अटकने पर बहुत बड़ी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं.
टैक्स हॉलिडे तथा भूमि बैंक जैसी व्यवस्थाएं एवं सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए. उद्योग लगाने के लिए जमीन की पर्याप्त उपलब्धता बहुत जरूरी है. साथ ही टैक्स हॉलिडे भी उद्योगपतियों के लिए निवेश के चयन हेतु एक बहुत महत्वपूर्ण कारक होता है.
सरल व सहज फाइनेंसिंग के लिए प्रमुख वित्तीय संस्थानों, सरकारी वित्तीय संस्थानों तथा बैंकों का कंसोर्टियम बनाना जाना चाहिए, ताकि वित्तीय आवश्यकताएं सहज रूपेण पूरी हो सकें, सरल शर्तों पर एवं सहजता से ऋण उपलब्ध हो सके. आधारभूत संरचनाओं की परियोजनाओं की सहज वित्तीय परितोषण हो सके.
महत्वपूर्ण परियोजनाओं का लगातार व गहन निरीक्षण होना चाहिए. समयबद्ध क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान होना चाहिए. एक बार किसी परियोजना में विलंब होने पर उसकी लागत भी बढ़ जाती है एवं उसके अन्य उद्देश्यों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
झारखंड को जिन क्षेत्रों में बढ़त है, उन पर विशेष जोर होना चाहिए तथा उनके लिए विशेष प्रोत्साहनात्मक नीतियां बनायी जानी चाहिए, जैसे पर्यटन, सूचना और तकनीक, शिक्षा, खनिज पदार्थ आधारित उद्योग आदि-आदि. इससे इन उद्योगों के लिए झारखंड सबसे वरीयता की जगह बनकर उभरेगा.
भुगतान करने हेतु सीधे ऑनलाइन भुगतान जैसी सुविधाएं देनी होंगी, ताकि कार्यालयों के व अधिकारियों के चक्कर न काटने पड़े एवं भुगतान भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगे. युग अब ई मोड का है.
कौशल विकास पर सरकार का विशेष जोर है. यह उत्पादकता को तो समृद्ध करता ही है, साथ में श्रमिकों की आय में भी वृद्धि में सहायक होता है, स्वजीविका का भी अवसर उपलब्ध करवाता है. इसका सर्वोत्तम लाभ लेने हेतु कौशल विकास के कार्यक्रम क्षेत्र विशेष तथा स्थानीय उद्योग की मांग के अनुरूप बनाने होंगे, ताकि लोगों को जीविका भी सुगमता से मिले व उद्योगों की भी कुशल श्रमिकों की आवश्यकता की पूर्ति हो.
भारत में उद्योग व व्यापार के लिए लाइसेंसों का एक चक्रव्यूह है. इसका लाइसेंस, उसका लाइसेंस. इनकी संख्या सीमित करनी चाहिए तथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जो अव्यावहारिक हो चुके हैं, उन्हें निरस्त कर दिया जाना चाहिए. देश को एक संपूर्ण लाइसेंस क्रांति की भी आवश्यकता है, ताकि उद्योग-धंधे, व्यापार सुगमता से शुरू किये जा सकें. भारत को कुछ क्षेत्र विशेष को छोड़कर लाइसेंस मुक्त अर्थव्यस्था की ओर बढ़ना चाहिए. झारखंड को इस पर पहल करनी चाहिए. साथ ही सभी प्रकार के लाइसेंस हेतु एक ही स्मार्ट कार्ड का भी विकल्प प्रदान किया जाना चाहिए. एक स्मार्ट कार्ड में ही सब लाइसेंस हों.
उद्योग, व्यवसाय से संबंधित विभिन्न प्रकार के फिजिकल रिकॉर्ड रखने की अनिवार्यता समाप्त कर दी जानी चाहिए. विश्व में युग अब पेपरलेस ऑफिसों का है. बड़े स्तर निवेश आमंत्रित करने हेतु देश विदेश में जो निवेश सम्मलेन आयोजित किये जाते हैं, वो मात्र खानापूर्ति न बनकर रह जायें. झारखंड के विकास में राष्ट्र के प्रमुख उद्योगपतियों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी. राज्य में सफलतापूर्वक चल रहे निजी क्षेत्र के उपक्रमों को इस सम्मेलनों में ब्रांड अम्बेसडर बनाया जाना चाहिए. साथ ही उद्योग व्यापार से संबंधित अपनी नीतियों की व्यापक जानकारी उपलब्ध करवानी होगी. उनका यथेष्ठ प्रचार-प्रसार करना होगा. श्रम, पर्यावरण का इंस्पेक्टर राज आदि जैसी व्यवस्थाएं समाप्त करनी होंगी. उद्योगपतियों से इस संबंध में सुझाव मांग उनपर गंभीरता से विचार करना होगा.
किसी प्रोजेक्ट के विभिन्न अंशधारकों लिए उनकी जिम्मेदारी तय करनी होगी तथा इनका लगातार विश्लेषण करना होगा. साथ संबंधित अफसरों की भी जिम्मेदारी तय करनी होगी. पानी बहुत के लिए महत्वपूर्ण है, कृषि से लेकर उद्योगों तक के लिए. चेकडैम तो ग्रामीण अर्थव्यस्था के कायाकल्प का आधार हो सकते हैं. चेकडैम क्रांति करनी ही करनी होगी तथा इसे सर्वोच्च वरीयता के क्षेत्रों में रखना होगा. इससे अर्थव्यस्था का आधार विस्तृत एवं सुदृढ़ होगा. मानसून पर निर्भरता भी कम होगी.
कानून-व्यस्था की स्थिति भी किसी राज्य में निवेश के निर्णय को काफी प्रभावित करती है. कानून-व्यस्था की स्थिति में सुधार हेतु आवश्यक संरचनाओं को विकसित करना होगा. पुलिस सुधारों को गंभीरता से लागू करना होगा.
अंत में आधारभूत संरचनाओं जैसे सड़क, बिजली, पानी, पुल, रेल मार्ग, वायु मार्ग आदि को भी अच्छा करना होगा, इनका जाल बिछाना होगा, ताकि औद्योगिक व व्यापारिक गतिविधियों का परिचालन सुगमता से हो सके. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से भी संपर्क कर उनकी योजनाओं का लाभ उठा आधारभूत संरचनाओं को सुदृढ़ करना होगा.
झारखंड में उद्योगों के विकास की असीम संभावनाएं हैं, साधन हैं. जरूरत संपूर्णता तथा समग्रता के साथ सही नीतियों एवं उनके क्रियान्वयन की है, क्योंकि हम वैश्विक व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता के युग में जी रहे हैं. ऐसे में हमारी नीतियां तथा सुविधाएं अत्यंत उच्च स्तरों की होनी चाहिए. व्यापार व उद्योगों के लिए संपूर्ण एवं समग्र नीतियों का निर्माण ही झारखंड को विकास और समृद्धि के नये आयामों की तरफ प्रवृत्त करेंगे तथा हमें इसी दिशा में सोचना है एवं कार्य करना होगा, तभी हमारा झारखंड देश के विकसित प्रदेशों में शामिल हो सकेगा. अब तो अच्छी अर्थ नीति ही अच्छी राजनीति भी है. भारत में भी.
-शशांक भारद्वाज
(नोट : लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं.)