
- मिलिए कोडरमा डीसी रमेश घोलप से
- यूपीएससी के पहले प्रयास में असफलता मिली, पढ़ाई छूटी, पंचायत चुनाव में मां को मिली हार, फिर तय किया अफसर बनकर लौटेंगे गांव
- मां ने चूडियां बेचकर घर संभाला
- जिंदगी का फलसफा: लड़ते रहो, गिरते रहो और आगे बढ़ते रहो..
Praveen Munda :
Ranchi : यह कहानी महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के महागांव निवासी रमेश घोलप की है. रमेश घोलप आज आइएएस अफसर हैं. झारखंड के कोडरमा जिले के डीसी हैं. उन्होंने वह मुकाम हासिल कर लिया है जिस तक पहुंचना आम भारतीय युवा का सपना होता है. पर इस सपने को हकीकत में बदलने के पीछे रमेश घोलप और उनके परिवार का जो संघर्ष रहा है वह अद्वितीय है.
न्यूजविंग से बात करते हुए उन्होंने अपनी जिंदगी के टर्निंग प्वाइंट के बारे में एक किस्सा शेयर किया. ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने शिक्षक की नौकरी हासिल की. फिऱ उस नौकरी को भी छोड़ कर यूपीएससी की तैयारी करने लगे. पहले प्रयास में असफलता मिली. इस असफलता के बाद गांव में पंचायत चुनाव हुए. माताजी सहित सात लोग पंचायत चुनाव में खड़े हुए. पूरी उम्मीद थी कि सातों सीटों पर जीत हासिल होगी.
परिणाम के दिन विजय जुलूस की तैयारी के साथ मतगणना स्थल पर पहुंचे. पर सातों सीट पर हार मिली थी. आंखों में आंसू थे. उस दिन गांव वालों के समक्ष कहा कि जब अफसर बनूंगा तभी घर लौटूंगा. यह 2010 का साल था.
फिर वह पुणे गये. वहां सरकार की संस्था थी जहां से तैयारी करने का मौका मिला. फिर 2012 में यूपीएससी में सफलता मिली. 12 मई को गांव पहुंचे जुलूस के साथ.
सफलता तो गिरकर उठने में है
अपने फेसबुक पोस्ट में रमेश लिखते हैं- भला आपकी जिंदगी के सपने और उसे सच कर दिखाने का साहस कोई और कर सकता है.. नहीं न तो फिऱ औरों के हिसाब से क्यों चलना. वे आगे लिखते हैं- आपकी सफलता कभी न गिरने में नहीं बल्कि गिरकर उठने में है.
पर शुरू में हम बात कर रहे थे रमेश घोलप के जिंदगी के प्रारंभिक दौर की. महाराष्ट्र के महागांव में जहां उनका परिवार रहता था. परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. मां चूड़ियां बेचकर घर संभालती थी. उसी हालत में स्कूली पढ़ाई की. परिवार को सपोर्ट कर सकें इसके लिए वाल पेंटिंग तक किया. ग्रेजुएशन करने के बाद उन्हें सरकारी शिक्षक की नौकरी मिली.
पर रमेश घोलप के बड़े सपने थे उन्होंने वह नौकरी छोड़कर यूपीएसएसी की तैयारी की. लोग कहते थे कि पागल हो गया है ये. इसे रहने के लिए घर नहीं है. मां चूड़ियां बेचती है और इसने नौकरी से इस्तीफा दे दिया. 2012 मे जब आइएएस बने तो यहीं लोग बोलने लगे कि हिम्मत और खुद के ऊपर भरोसा क्या होता है ये रमेश घोलप से सीखो.
रमेश कहते हैं जीवन का रास्ता खुद चुनना होता है और उस रास्ते पर खुद के साथ ईमानदार रहकर सफर करना चाहिए.
बहरहाल डीसी रमेश घोलप की जिंदगी के संघर्ष के दिनों ने उन्हे संवेदनशीलता दी है. और यह उनके काम से झलकता है. वंचितों, असहायों और हाशिए पर पड़े लोग उनकी प्राथमिकता में है. जिले में डीसी साहब इसी रूप में जाने जाते हैं.
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