
Praveen Munda
Ranchi : झारखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से अभावों और संसाधनों की कमी के बावजूद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खिलाड़ी निकले हैं. इन खिलाड़ियों की वजह से झारखंड को हॉकी, फुटबॉल, तीरंदाजी सहित अन्य खेलों में पहचान मिली है. वहीं इन खिलाड़ियों ने भी अपने पीछे एक ऐसी लेगेसी छोड़ी है जिससे युवा खिलाड़ी प्रेरित हो रहे हैं.
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अब मोरहाबादी स्थित डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान झारखंड की आदिवासी महिला खिलाड़ियों पर शोध करा रहा है. यह शोध मई तक पूरा हो जाने की उम्मीद है. इस दौरान कई ऐसे सवाल हैं जिन पर मंथन किया जा रहा है. शोध से जुड़े कुणाल बताते हैं कि झारखंड के आदिवासी समाज में लड़कियों में खेलों के प्रति स्वाभाविक रुझान होता है. इन खेलों की वजह से किस तरह इन लड़कियों के व्यक्तित्व का ट्रांसफॉमेर्शन (रूपांतरण) हो जाता है हम इन सवालों के जवाब ढूंढ़ रहे हैं. ग्रामीण परिवेश से जब ये लड़कियां पहले पहल शहरों में पहुंचती हैं तो ये काफी सहमी हुई सी होती हैं. इनमें हिचक भी होती है लेकिन जिस तरह से खेलने के दौरान इनमें बदलाव आता है वह अद्भुत है.
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कई सवालों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश
शोध में यह भी देखा जा रहा है कि आदिवासी होने की वजह से इनके समक्ष क्या-क्या चुनौतियां आती हैं. क्या इन्हें समान अवसर मिल पाता है. क्या इन्हें आदिवासी होने की वजह से भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. सरकार और खेल संस्थाएं किस तरह इनके खेल को निखारने में सहायक हो रही हैं. कुछ और सवाल हैं जैसे किस वजह से यहां की आदिवासी लड़कियां हॉकी और फुटबॉल जैसे खेलों की ओर आकर्षित होती हैं. क्या तीरंदाजी जैसे खेल में झारखंड की जनजातीय परंपरा और संस्कृति की वजह से इन्हें आसानी होती है.
शोध के दौरान नामी और ख्यातिप्राप्त खिलाड़ियों के अलावा बिलकुल नयी खिलाड़ियों से भी बात की जा रही है. शोध के पूरा हो जाने के बाद इनके खेल और जीवन से जुड़े कई नये पहलुओं के सामने आने की उम्मीद है.
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