
रिलायंस के पीछे हटने के बाद किसी भी निवेशक ने नहीं जताई इच्छा, 24 हजार करोड़ रुपये का होना है निवेश
कैसे दूर होगी बिजली की कमी, 2019 तक और 2441 मेगावाट बिजली की है जरूरत
Ranchi: राज्य सरकार ने कई मौकों पर खुले मंच से घोषणा की कि झारखंड पावर हब बनेगा. पहले 2017 डेडलाइन रखी गयी, फिर 2018 हुआ. इससे भी बात नहीं बनी तो 2019 डेडलाइन तय की गयी.


अब 2020 तक पावर हब बनाने की बात कही जा रही है. पिछले चार साल में झारखंड में एक यूनिट बिजली का उत्पादन नहीं बढ़ा. खास बात यह है कि तिलैया में अल्ट्रा मेगापावर प्लांट के लिये तीन साल बाद भी किसी निवेशक ने निवेश करने की इच्छा नहीं जताई है.




तिलैया में 4000 मेगावाट का पावर प्लांट स्थापित किया जाना है, जिसमें 24 हजार करोड़ से अधिक का निवेश होगा. लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है.
वहीं पीटीपीएस से अब तक उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है. मार्च 2019 से उत्पादन शुरू होना था. लेकिन अब 2020 तक उत्पादन शुरू होने की बात कही जा रही है. टीवीएनएल के विस्तारीकरण की प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो पाई है.
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रिलायंस के पीछे हटने के बाद क्या हुआ
रिलायंस के पीछे हटने के बाद राज्य सरकार ने ऊर्जा मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा. राज्य सरकार ने ऊर्जा मंत्रालय को दो प्रस्ताव भेजा था. प्रस्ताव के तहत पहले विकल्प के रूप में कहा गया कि फिर से टेंडर किया जाये.
जबकि दूसरे प्रस्ताव में कहा गया कि वर्तमान प्रक्रिया को बंद कर नयी प्रक्रिया के तहत किसी को दिया जाये. इसे प्लग एंड प्ले मोड का नाम दिया गया था. लेकिन अब तक राज्य सरकार ने इस पर कोई पहल तक नहीं की है.
इससे पहले जब यह परियोजना रिलायंस को मिली थी तो पावर परचेज एग्रीमेंट के तहत 18 प्रोक्यूरर (बिजली के खरीदार) ने एग्रीमेंट में हस्ताक्षर किया था. प्रावधान यह था कि पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन पावर प्लांट के लिये स्पेशल पर्पस व्हीकल (एसपीवी) बनायेगा. साथ ही शुरूआती खर्च पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन ही करेगा.
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प्रावधान के मुताबिक, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन ने परियोजना की शुरूआत में राशि लगाई. इसके बाद स्पेशल पर्पस व्हीकल ने रिलायंस को हस्तांतरित कर दिया. तब पीएफसी द्वारा खर्च की गई राशि रिलायंस को देनी पड़ी.
देरी होने से 16 हजार करोड़ रुपये बढ़ी लागत
तिलैया अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट में प्रोजेक्ट में देरी होने से 16 हजार करोड़ रुपये लागत भी बढ़ गई. मुख्य प्लांट के लिये 470 एकड़ जमीन रिलायंस को दी जा चुकी थी. 1220 एकड़ जमीन को फॉरेस्ट क्लीयरेंस मिल चुका था.
885 एकड़ जमीन और एप्रोच रोड के लिये 106 एकड़ जमीन देने की प्रक्रिया भी शुरू की गई थी. कोल ब्लॉक के लिये नये प्रपत्र पर आवेदन जमा करने के लिये कहा गया था.
इसके अलावा 3500 करोड़ का पुर्नवास पैकेज भी तैयार किया गया था.
झारखंड में 2441 मेगावाट बिजली की कमी
झारखंड में 2441 मेगावाट बिजली की कमी है. खुद ऊर्जा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 2019 में 5696 मेगावाट बिजली की जरूरत है. जबकि राज्य के पांचों लाइसेंसी 3255 मेगावाट ही बिजली की आपूर्ति करते है.
डीवीसी 946, जुस्को 43, टाटा स्टील 435, सेल बोकारो 21 और बिजली वितरण निगम 1200 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करते हैं. इसके अलावा अन्य स्त्रोतों से भी बिजली ली जाती है.
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