
Ranchi : आइ डोनेशन अवेयरनेस क्लब के द्वारा 36वें राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा के अंतर्गत आइ डोनेशन अवेयरनेस कार्यक्रम का आयोजन कश्यप मेमोरियल आइ हॉस्पिटल में किया गया. जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल रमेश बैस और विशिष्ट अतिथि स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता मौजूद थे. क्लब के अध्यक्ष अनुज सिन्हा और डॉ भारती कश्यप ने अवेयरनेस क्लब के सदस्यों का परिचय कराया. वहीं मृत्यु उपरांत अपने परिजनों का नेत्रदान करनेवाले परिवारों को राज्यपाल ने सम्मानित किया. जिसमें 18 दिन की बच्ची बेबी अपराजिता के परिजन भी शामिल थे. राज्यपाल ने कहा कि हर छोटा काम बड़ा होता है.
अगर कोई लंबे समय से अंधेरे में हो और उसे अचानक से दिखाई देने लगे तो उसकी ख़ुशी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ़्रीका भ्रमण के दौरान मैं सोने की खदान में काम करनेवाले एक मज़दूर से मिला था जो छह महीने से खदान में काम कर रहा था. छह महीने बाद जब वह बाहर आया और सूरज की रोशनी देखने के बाद उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.


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किसी को मिल सकती हैं आंखें
राज्यपाल ने कहा कि उन्हें जो जानकारी मिली उसके अनुसार राज्य में नेत्रदान के प्रति जागरुकता की कमी है. लोग भावनाओं में बहने के बजाय उससे ऊपर उठ कर सोचें तो कितना बड़ा काम हो सकता है. किसी को आंखें मिल जायें तो इससे बड़ी बात कुछ और नहीं हो सकती. मेरे कई दोस्त डॉक्टर हैं और मेरे बड़े भाई भी डॉक्टर थे.
मैं आप सबकी सेवा भावना को अच्छी तरह समझ सकता हूं. 124 नेत्र प्रत्यारोपण करने के लिए कश्यप आइ मेमोरियल हॉस्पिटल की डॉ भारती और उनकी पूरी टीम को धन्यवाद देता हूं.
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1995 में नेत्रदान की शुरुआत
1995 में संयुक्त बिहार-झारखंड का पहला नेत्र प्रत्यारोपण डॉ बीपी कश्यप और डॉ भारती कश्यप ने हरिप्रसाद की मृत्य के बाद किया था. डॉ ङारती ने कहा कि यह आइ बैंक राज्य का पहला एक्टिव आइ बैंक है जो पिछले 26 वर्षों से सफलतापूर्वक आंखों की रोशनी लौटा रहा है.
अब तक 606 कॉर्निया की बीमारी से ग्रसित मरीजों का नेत्र प्रत्यारोपण किया जा चुका है. प्रत्यारोपण के पर्याप्त इंतजाम नहीं होने के कारण 50 प्रतिशत दान में मिले कॉर्निया बर्बाद हो गये. इसलिए नेत्रदान के बाद स्टोरेज करने और उनको प्रत्यारोपण के काम में लाया जाये.
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