
Amit Jha
Ranchi : नवरात्र के बीच सोमवार को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस की भी धूम है. दुर्गा पूजा के बहाने बच्चियों, किशोरियों को देवी का दर्जा देकर उसे पूजने की परंपरा का निर्वहन हो रहा है. पर बालिका दिवस पर झारखंड में जरूरतमंद, संकट के दौर से गुजर रही बच्चियों की हालत देखना चिंताजनक है. बालिकाओं के सामने आनेवाली चुनौतियों और उनके अधिकारों के संरक्षण के बारे में जो जागरुकता, संवेदनशीलता दिखनी चाहिए, वह कोसों तक नजर नहीं आ रही. बाल कल्याण समिति, किशोर न्याय बोर्ड, राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग से लेकर महिला आयोग तक में सन्नाटा पसरा हुआ है. इधर, एनसीआरबी द्वारा हालिया जारी (NCRB 2020) आंकड़ों की मानें तो सालभर में (2019-20) 24 जिलों में 505 बच्चों के खिलाफ अपहरण और अन्य आपराधिक वारदात रिकॉर्ड में सामने आ चुकी हैं. इनमें 231 नाबालिग बच्चियां तो मानव तस्करों के हाथों खरीद-बिक्री का शिकार बनी हैं. इसी तरह नाबालिग बच्चियों की जबरन शादी के 107 मामले, भीख मंगाये जाने से जुड़े 15 केस भी इनमें शामिल हैं. ज्यादातर मामलों में लड़कियां, छोटी बच्चियां, किशोर उम्र की लड़कियां ही तस्करों के जाल में फंसती रही हैं. पर इन्हें सुध कौन ले. बच्चियों के मां-बाप कहां फरियाद लगायें.
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बेसहारा है अनाथ बच्चों की कमेटी



बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) और न्याय बोर्ड (जेजेबी) के रिक्त पदों पर नियुक्ति की मांग को लेकर बचपन बचाओ आंदोलन नाम की सामाजिक संस्था ने हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर रखी है. 8 सितंबर को सुनवाई के क्रम में अदालत ने राज्य सरकार को 2 महीने के अंदर सीडब्ल्यूसी और जेजेबी के रिक्त पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया था. बचपन बचाओ आंदोलन के मुताबिक सीडब्ल्यूसी और जेजेबी काफी महत्वपूर्ण संस्थान है. इतनी महत्वपूर्ण इकाईयों का रिक्त रहना गहरे सवाल खड़े करता है.



झारखंड में विगत 01 सितंबर, 2021 से ही सीडब्ल्यूसी, जेजेबी सदस्य विहीन हैं. नियमानुसार मानव तस्करों से मुक्त कराये गये या असहज स्थिति में मिले बच्चों को पहले सीडब्ल्यूसी के सामने पेश करने के बाद ही अल्पाश्रय या वैधानिक जगहों पर भेजा जाना है. पर इसमें चूक हो रही है. नियमानुसार CWC के अलावा किसी अन्य को इसके लिए वैधानिक शक्ति नहीं है. पर बार-बार इसका उल्लंघन हो रहा. 8 सितंबर को उच्च न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि CWC जैसी महत्वपूर्ण संस्था में किसी सरकारी अधिकारी को अध्यक्ष, सदस्य नहीं बऩाया जा सकता. डीसी कार्यालय से इसके लिए किसी को नामित नहीं किया जा सकता. पर इस आदेश का पालन नहीं हो रहा.
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सितंबर में अदालत में सुनवाई के दौरान कहा गया कि जिन जिलों में सीडब्ल्यूसी, जेजे बोर्ड में कार्यरत सदस्य हैं, उन्हें दिसंबर तक अवधि विस्तार दिया गया है. हकीकत में सभी जिलों में ऐसा हो नहीं रहा. केवल रांची में ही सीडब्ल्यूसी कार्यरत है जबकि समाज कल्याण विभाग द्वारा इस संबंध में जारी आदेश बाकी 23 जिलों में धरातल पर लागू ही नहीं हो पा रहा. तीन महीने पहले (31 अगस्त, 2021) तक स्थिति यह थी कि राज्य के 24 में से 20 जिलों में ही सीडब्ल्यूसी के आधे अधूरे कुल 50 सदस्य थे. धनबाद, हजारीबाग, चतरा और पश्चिमी सिंहभूम में तो अरसे से सीडब्ल्यूसी में एक भी सदस्य तक नहीं हैं. हालांकि राज्य सरकार (समाज कल्याण विभाग) के स्तर से CWC, जेजे बोर्ड में नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया जा चुका है. पर इसे अंतिम रूप देने में अब भी दो-तीन माह से कम नहीं लगेंगे.
बाल अधिकार संरक्षण आयोग और महिला आयोग में सन्नाटा
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य महिला आयोग भी बदहाल है. बाल अधिकार संरक्षण आयोग में 22 अप्रैल, 2019 से ही सन्नाटा पसरा हुआ है. आयोग के अध्यक्ष (1) और सदस्यों (7) का कार्यकाल खत्म होने के बाद से बच्चों के हितों को देखनेवाला कोई नहीं है. इस आय़ोग के न होने से राज्य के 56 लाख बच्चों (नाबालिग) से जुड़े आपराधिक और गैर-आपराधिक मामलों की सुनवाई बंद पड़ी है. राज्य महिला आय़ोग की स्थिति भी कहीं से बेहतर नहीं है. जून, 2020 में आयोग की अध्यक्ष कल्याणी शरण रिटायर हो गयीं. सदस्य भी एक भी नहीं बचे. इसके बाद से ही वहां सन्नाटा पसरा है. इस बीच अब तक महिलाओं से जुड़े 1700 से अधिक केस आयोग में दर्ज हो गये हैं.
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