
Ranchi : जल, जंगल, ज़मीन आदिवासी समाज की पहचान रहे हैं. साथ ही इनकी जीवनशैली और इनकी संस्कृति के ये अभिन्न अंग इनके फूड हैबिट रहे हैं. अपने फूड हैबिट के वजह से यह समुदाय कठिन परिस्थतियों में भी वन क्षेत्र में सदियों से सरवाइव करते रहे हैं.
आदिवासी खाद्य सामग्री उनके जीवन को मजबूत बनाने में अहम रोल निभाता रहा है. आदिवासी फूड हैबिट में मौजूद पोषक तत्व उनके अस्तित्व को जीवन प्रदान करते रहे हैं. भोजन तैयार करने की पद्धति में भी पोषक तत्वों की सुरक्षा शामिल है.
आज वह पद्धति विलुप्ति के कगार पर है. ऐसे में आदिवासी खान-पान को नयी पहचान देने के मकसद से 22 सितंबर को रांची में फूड जतरा का आयोजन युवाओं द्वारा किया जा रहा है.
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क्या कहते हैं आयोजक
फूड जतरा का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज के लोगों को उत्साहित करना एवं अपने पारम्परिक खान पान को बढ़ावा देना व अपनी संस्कृति को बचा कर रखना है.
आदिवासी मोर्चा के सचिव विकास तिर्की का कहना है कि फूड जतरा पूरी तरह से आदिवासी पारंपरिक तरीके से किया जायेगा. उन्होंने कहा कि कि झारखण्ड जो कि आदिवासी बहुल राज्य है लेकिन राज्य में आदिवासी खान-पान एवं परिधान एवं आदिवासी वाद्ययंत्र का दौर खत्म होते जा रहा है. इन सारी बातो को ध्यान में रखकर इसे संजोने और बढ़ावा देने के मकसद से फूड जतरा का अयोजन किया जा रहा है.
यह आयोजन 22 सितंबर को संगम गार्डेन मोरहाबादी में दिन के 11 बजे से शाम 5 बजे तक चलेगा. आयोजन की तैयारी में शशिकांत होरो, हेनरी एका, अलबिन लकड़ा, आभास एवं युवा जोर-शोर से लगे हुए हैं.
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