
Manoj Dutt Dev
Latehar : अक्सर खबरें आती हैं कि नक्सली संगठनों के नेताओं के परिवार वाले लेवी के रुपयों से बेहतर जिंदगी जी रहे हैं, लेकिन भाकपा माओवादी के बिहार रीजनल कमिटी के सदस्य छोटू खेरवार उर्फ छोटू जी उर्फ सुजीत जी के घर की हालत एक अलग ही तस्वीर पेश करती है.


25 लाख का इनामी और लातेहार, गुमला, लोहरदगा व छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाकों में आतंक का पर्याय माने जाने वाले 37 वर्षीय छोटू खेरवार की पत्नी ललिता देवी मजदूरी कर गुजर-बसर कर रही है. बच्चों के स्कूल में एक लाख रुपये का बकाया हो गया है. चिंता में डूबी ललिता हर वक्त घर का दरवाजा खुला रखती है, इस इंतजार में कि कब उसका पति घर आ जाये.




छोटू खेरवार लातेहार जिले के मनिका प्रखंड अंतर्गत सिकिद लावागढ़ा गांव का रहने वाला है. जमींदारी प्रथा के विरुद्ध करीब 13 वर्ष पूर्व छोटू ने लाल झंडे के साथ आंदोलन शुरू कर किया था. एक साल में वह प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का हिस्सा बन गया. संगठन में अपनी सक्रियता के बल पर वह 12 वर्षों में बिहार रीजनल कमिटी का सदस्य बन गया.
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‘खाने भर अनाज नहीं होता, जंगल से महुआ चुनते हैं’
ललिता बताती है कि उसके तीन बच्चे हैं- आनंद कुमार (12) गणिता कुमारी (11) और मनिता कुमारी (8). आनंद व गणिता लातेहार थाना चौक स्थित बाल विद्या निकेतन आवासीय स्कूल में पढते हैं. वहां एक साल की फीस बाकी है. शिक्षक बार-बार फीस भरने को कह रहे हैं.
वह आगे कहती है, “थोड़ी सी जमीन है. खाने भर भी अनाज पैदा नहीं होता. जंगल से महुआ चुनते हैं. उसको बाजार में बेचते हैं. उससे भी बढ़िया आमदनी नहीं होती. इसके अलावा मजदूरी भी करते हैं पर कभी-कभी ही काम मिलता है. बाकी समय घर में बैठना पड़ता है. डीलर से राशन मिलता था मगर मशीन में नंबर लोड नहीं होने के कारण एक-डेढ़ साल से बंद है. स्कूल की फीस कहां से दें. घर की हालत खराब है. साग-भात खाते हैं. छोटी बेटी मनिता तो नानी घर में रहती है.”
‘देखने का बहुत मन करता है’

ललिता का मायका पलामू जिले के पांकी प्रखंड अंतर्गत पुंदरू गांव में है. उसने कहा कि उसके मां-बाप को पहले से पता होता कि छोटू नक्सली संगठन से जुड़ा है तो शायद उसकी शादी उससे नहीं करवाते और आज बच्चों का जीवन बर्बाद नहीं होता.
उसने कहा, “जब शादी हुई तो कुछ दिनों बाद से छोटू घर से रात-रात भर बाहर रहने लगा. कभी-कभी तो दस-बारह दिनों में आता था. मैंने कभी कुछ पूछा नहीं. जब वह माओवादी दस्ते के साथ घर आने लगा तो सच्चाई का पता चला.”
ललिता ने बताया कि उसने छोटू को रोकने की बहुत कोशिश की पर वह नहीं माना. वह 2011-12 तक घर आता था पर पिछले सात-आठ सालों से घर नहीं आया. कहानी बताते-बताते ललिता भावुक होकर कहती है, “उसे देखने का बहुत मन करता है.”
वह आगे कहती है, “आये दिन पुलिस घर की कुर्की करती है. खेती पर भी रोक लगी हुई है. गांव में सभी लोग हेय दृष्टि से देखते हैं. लगातार किसी न किसी माध्यम से दबाव बनाया जाता है कि छोटू को सरेंडर कराओ. मैं भी चाहती हूं कि वह सरेंडर करे, मगर कहां खोजने जायें. कुछ पता हो तब न!”
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नहीं हो पा रही बहन की शादी
छोटू के भाई बालमोहन सिंह ने बताया कि वे छोटू को मिलाकर पांच भाई और एक बहन हैं. छोटू को छोड़कर चारो भाई बालकिसन सिंह, बालमोहन सिंह, सुनील सिंह, त्रिवेणी सिंह केरल, गुजरात आदि राज्यों में जाकर मजदूरी करते हैं क्योंकि वर्षा आधारित खेती होने के कारण उससे गुजारा नहीं चल पाता. बहन फोटो कुमारी घर में रहती है.
उन्होंने कहा, “शादी के लिए लड़का खोज रहे हैं मगर जब छोटू के बारे में जानने के बाद लोग रिश्ता तोड़ देते हैं. छोटू पार्टी में रहकर भी हम लोगों के लिए क्या कर रहा है. बढ़िया होगा सरेंडर कर दे. रोज-रोज पुलिस की किच-किच से तो निजात मिलेगी.”
बालमोहन ने बताया कि छोटू की शादी ही यह सोचकर करवाई गयी थी कि वह पारिवारिक जिम्मेदारियों से बंधने पर पार्टी (संगठन) छोड़ देगा.
पिता के कारण बची है परिवार की इज्जत
छोटू के पिता नरेश सिंह उर्फ मनिका पाहन के कारण ही परिवार की इज्जत कुछ हद तक बची हुई है.पाहन होने के कारण खेरवार समाज में शादी-ब्याह, पर्व-त्यौहार में उनका होना अनिवार्य है. पूरे मनिका प्रखंड में उनकी पूछ-परख है.
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