कर्मचारियों को वीआरएस का पूरा अधिकार नहीं, सरकार जनहित में ठुकरा सकती है : SC
जनहित को देखते हुए सरकार किसी कर्मचारी की वीआरएस की मांग ठुकरा भी सकती है
NewDelhi : सरकारी कर्मचारियों को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) का पूरा अधिकार नहीं है. जनहित को देखते हुए सरकार किसी कर्मचारी की वीआरएस की मांग ठुकरा भी सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की वीआरएस की मांग खारिज करने के यूपी सरकार के फैसले को सही ठहराया और अपनी टिप़्प्णी की. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा व एसअब्दुल नजीर की पीठ यूपी सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही थी. यूपी हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की वीआरएस की अर्जी स्वीकार करते हुए उऩ्हें सेवानिवृत्त घोषित कर दिया था. इसके खिलाफ यूपी सरकार ने शीर्ष अदालत की शरण ली थी.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति स्वत: मान ली जायेगी या फिर उसके बारे में आदेश जारी किये जाने की जरूरत है, यह जिस नियम के तहत सेवानिवृत्ति मांगी गयी है उसमें प्रयुक्त भाषा पर यह निर्भर करेगा. हर मामला उससे जुड़े नियम के हिसाब से तय होगा.
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वीआरएस की नोटिस अवधि को तीन महीने बीतने पर स्वत: प्रभावी नहीं माना जायेगा
सुप्रीम कोर्ट ने विचार किया कि क्या यूपी के संशोधित फंडामेंटल रूल 56 के तहत कर्मचारी सरकार को तीन महीने का नोटिस देकर वीआरएस लेने का अबाधित अधिकार रखता है या फिर राज्य सरकार रूल 56 (सी)के साथ संलग्न विस्तार के तहत जनहित के आधार पर उसकी मांग ठुकरा सकती है. कोर्ट के अनुसार वीआरएस की नोटिस अवधि को तीन महीने बीतने पर स्वत: प्रभावी नहीं माना जायेगा. नियुक्ति अथॉरिटी या तो नोटिस स्वीकार करेगी या फिर उसे अस्वीकार कर सकती है. कर्मचारी को वीआरएस का संपूर्ण अधिकार नहीं है.
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वीआरएस का अधिकार जीवन के अधिकार से बड़ा नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वीआरएस का अधिकार जीवन के अधिकार से बड़ा नहीं है. कहा कि सरकार जनहित को ध्यान में रखते हुए वीआरएस की मांग ठुकरा सकती है. इसलिए कि आम जनता को भी सुपर स्किल्ड स्पेशलिस्ट से इलाज कराने का अधिकार है, न कि दोयम दर्जे से. कहा कि रोजगार की आजादी, जनहित के अधीन है. नौकरी में आने के बाद इस अधिकार का दावा सिर्फ नियमों के अनुसार ही किया जा सकता है. कोर्ट के अनुसार अगर इस तरह सभी डॉक्टरों को सेवानिवृत्ति की अनुमति दी जाएगी तो अव्यवस्था उत्पन्न हो जायेगी और सरकारी अस्पतालों में एक भी डॉक्टर नहीं बचेगा.
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