
Kolkata: बंगाल की राजधानी कोलकाता के निजी अस्पतालों के डॉक्टर निमोनिया जैसे लक्षण वाले कोविड-19 के गंभीर किस्म के रोगियों की मदद के लिए अलग तकनीक का इस्तेमाल रहे हैं जब वेंटीलेटर भी रिकवरी में मदद करने में नाकाम होते हैं.
एक्ट्राद कार्पोरियल मेम्ब्रेहन ऑक्सीजेनेशन या ईसीएमओ तकनीक को आमतौर पर बच्चों में दिल की सर्जरी के लिए उपयोग किया जाता है. गुजरात के अहमदाबाद शहर के डॉक्टरों द्वारा कुछ कामयाबी हासिल करने के बाद ईसीएमओ कोलकाता में भी अस्पतालों के लिए मददगार साबित हो रही है. मेडिकल विशेषज्ञों ने बंगाल के सरकारी अस्पतालों से भी इस तकनीक को अपनाने की अपील की है.
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54 साल के कोरोना मरीज की हुई रिकवरी
54 साल के अभिमन्यु लाल मई में कोरोना वायरस से संक्रमित हुए. उन्होंने दक्षिण कोलकाता के मेडिका सुपर स्पेसशलिटी हास्पिटल में 10 दिन ईसीएमओ तकनीक के बीच गुजारे. उनके फेफड़े बुरी तरह से प्रभावित हुए थे, ऐसे में ईसीएमओ ने रिकवरी होने तक कृत्रिम फेफड़ों की तरह काम किया.
अभिमन्यु् लाल के परिवार के अनुसार, उनकी रिकवरी किसी चमत्कार से कम नहीं है. अभिमन्यु लाल के 28 वर्षीय बेटे राहुल ने ईसीएमओ के बारे में कभी नहीं सुना था. वे कहते हैं, ‘मशीन मेरे लिए बेहद मददगार साबित हुई. डॉक्टर मेरे लिए भगवान थे और पूरी टीम ने मेरे पिता की जान बचा ली.
लाल का अपना डेरी बिजनेस हैं, वे कहते हैं-यह (कोविड-19) घातक बीमारी है. मैं यही प्रार्थना करता हूं कि कोई इससे संक्रमित न हो. अभिमन्यु लाल उनके 14 कोविड-19 मरीजों में से हैं जिन्होंने मेडिका हॉस्पिटल में ईसीएमओ पर रखा गया था. इनमें से चार अभी भी मशीन पर है. दो डिस्चांर्ज होने की तैयारी कर रहे हैं जबकि पांच रिकवर हो चुके हैं. हालांकि इनमें से तीन मरीज को इलाज के दौरान जान गंवानी पड़ी है.
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स्वाइन फ्लू के समय वेंटिलेटर से बेहतर काम
डॉ अर्पण चक्रबर्ती के अनुसार, करीब 15 वर्ष पहले जब ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में स्वाइन फ्लू की महामारी ने जोर मारा था तब ईसीएमओ ने वेंटिलेटर से अच्छा काम किया था. अर्पण क्रिटिकल केयर कंसलटेंट और ईसीएमओ टीम के प्रमुख लोगों में से एक हैं.
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