
News Wing Desk: 18 जुलाई को होनेवाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष और सत्तारूढ़ दल ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, वाम दलों, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले विपक्ष ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा को प्रत्याशी चुना है. राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद उन्हें बधाई देने का दौर जारी है. उनकी जीत भी तय मानी जा रही है. आइये हम आपको बताते हैं उनका सफरनामा.
20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज में जन्मी द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनेंगी तो उनके नाम कई रिकार्ड होंगे. वह भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी. साथ ही स्वतंत्रता के बाद जन्म लेनेवाले भारत के पहले राष्ट्रपति का रिकार्ड भी उनके नाम होगा. वह प्रतिभा देवीसिंह पाटिल के बाद भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति होंगी. द्रौपदी मुर्मू ने रमादेवी महिला कॉलेज भुवनेश्वर से स्नातक की पढ़ाई की. राज्य की राजनीति में प्रवेश करने से पहले एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया. श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में मानद सहायक प्रोफेसर के रूप में और फिर ओडिशा के सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में काम किया.
1997 में की राजनीतिक सफर की शुरुआत
द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक करियर 1997 में शुरु हुआ जब वह ओडिशा के रायरंगपुर जिले की पार्षद चुनी गईं. बाद में वह भाजपा के एसटी मोर्चा की राज्य उपाध्यक्ष बनीं. बाद में वह 2000 के विधानसभा चुनाव में उसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गईं. वह 2002 से 2009 तक मयूरभंज जिले की भाजपा जिलाध्यक्ष रहीं. उन्होंने भाजपा में कई प्रमुख भूमिकाएँ निभाईं. ओडिशा में बीजद और भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान उन्होंने 2000 और 2004 के बीच वाणिज्य और परिवहन और बाद में मत्स्य और पशु संसाधन विभाग में मंत्री के रूप में कार्य किया. 2015 में उन्होंने झारखंड की पहली महिला राज्यपाल के रूप में शपथ ली. वह भारतीय राज्य के राज्यपाल के रूप में नियुक्त होनेवाली ओडिशा की पहली महिला और आदिवासी नेता भी थीं.
2017 में भी उभरा था नाम
इससे पहले 2017 में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा कई नाम मंगवाए गए थे, लेकिन द्रौपदी मुर्मू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पसंदीदा के रूप में उभरी. हालांकि, बाद में रामनाथ कोविंद इस पद के लिए चुने गए. मुर्मू को एक मजबूत प्रशासनिक आदिवासी नेता के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि झारखंड के राज्यपाल के रूप में उन्होंने छोटानागपुर किरायेदारी (सीएनटी) अधिनियम और संथाल परगना किरायेदारी (एसपीटी) अधिनियम में संशोधन के लिए भाजपा द्वारा पेश किए गए विधेयकों को वापस कर दिया था. झारखंड के आदिवासियों ने तत्कालीन भाजपा सरकार के सीएनटी और एसपीटी अधिनियमों में प्रस्तावित संशोधनों का आक्रामक विरोध किया था. यदि वह भाजपा के समर्थन से भारत की राष्ट्रपति बन जाती है तो वह न केवल राज्यों में आदिवासी आबादी का प्रतिनिधित्व करेंगी, बल्कि आगामी चुनावों में आदिवासी वोट शेयर को प्रभावित करते हुए नरेंद्र मोदी की छवि को बढ़ावा देने में भी मदद कर सकती हैं. इसके अलावा, भाजपा ओडिशा में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करना चाहती है और झारखंड में जमीन हासिल करना चाहती है जहां वह 2019 में चुनाव हार गई थी.
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