
Surjit Singh
22 नवंबर की रात से 26 नवंबर की शाम तक महाराष्ट्र में क्या हुआ. जो भी हुआ, शर्मनाक है. लोकतंत्र और संविधान का चीरहरण. भाजपा की सरकार बनाने के लिए अवैध और अनैतिक तरीके अपनाये गये. यह सब किसने किया? लोकतांत्रित मूल्यों के खिलाफ इन अनैतिक कार्यों के लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं. निश्चित तौर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और महाराष्ट्र के राज्यपाल ही इस पूरे प्रकरण के केंद्र में थे.
महाराष्ट्र में जो भी कुछ हुआ उसने यह साबित कर दिया कि मात्र सरकार बनाने के लिए भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को किसी भी तरह के अलोकतांत्रिक काम करने से गुरेज नहीं है. यह भी साबित हो गया कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राज्यपाल का पद रबर स्टांप भर से ज्यादा नहीं है. बहुमत की सरकार के इशारे पर वो कोई भी अनैतिक काम करने से पीछे नहीं हटनेवाले.
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महाराष्ट्र में जिस तरह से घटनाएं हुईं, उनसे यही निष्कर्ष निकलता है कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व राज्यपाल ने अपरिपक्वता का परिचय दिया और भाजपा की सरकार बनाने के लिए अनैतिक फैसले लिये. तो क्या इन चारों ने अपने पद की गरिमा को तिलांजलि दे दी.
तो सवाल यह उठता है कि क्या देश के महत्वपूर्ण व शीर्ष पदों पर आसीन व्यक्तियों को उनके विशेष अधिकार और विवेक का इस्तेमाल करने की इजाजत दी जानी चाहिए.
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महाराष्ट्र की घटना से एक और बात साफ होती है कि मोदी-शाह की जोड़ी भाजपा सरकार बनाने के लिए, सत्ता में बने रहने के लिए देश और राज्य के साथ कुछ भी कर सकती है. करा सकती है. अनैतिक फैसले ले सकती है. क्योंकि जिस तरह से महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाया गया, उसी तरह ठीक एक साल पहले 21 नवंबर 2018 को जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाया गया. दोनों घटनाओं में बड़ी समानता है. याद करिये, जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाने के एक दिन पहले क्या हुआ था. महबूबा मूफ्ती व कांग्रेस ने गठबंधन बना कर सरकार बनाने का फैसला लिया था. महबूबा मूफ्ती ने राजभवन को फैक्स भेज कर सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया था. लेकिन राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा कर दी. बाद में कहा गया कि राजभवन की फैक्स मशीन खराब थी. महाराष्ट्र में भी यही हुआ. 22 नवंबर को शिवसेना, एनसीपी व कांग्रेस ने सरकार बनाने का फैसला लिया. रात में बयान जारी किया कि 23 नवंबर को उद्धव ठाकरे सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे. और रात में ही राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन हटाने की अनुशंसा की. रात में ही प्रधानमंत्री ने कैबिनेट की बैठक किये बिना अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति के पास अनुशंसा भेज दी. रात में ही राष्ट्रपति ने इस पर मंजूरी दे दी. और अहले सुबह राज्यपाल ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी. अब यह स्पष्ट हो चुका है कि फडणवीस के पास सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं था.
दोनों घटनाओं में यही हुआ कि भाजपा को जैसे ही यह पता चला कि विरोधी दल सरकार बनाने लेंगे तो कहीं राष्ट्रपति शासन लगा दिया और कहीं हटा दिया.
राज्यपाल कह सकते हैं कि शिवसेना, कांग्रेस व एनसीपी ने आधिकारिक रूप से दावा पेश नहीं किया था. इसलिए उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन उनकी यह तर्क मानने योग्य नहीं है. वह राज्यपाल हैं और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है. लिहाजा तमाम खुफिया एजेंसियां उन्हें ही रिपोर्ट करती होंगी. फिर विरोधी पार्टी के फैसलों की जानकारी राज्यपाल को न हो यह संभव नहीं.
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