
Pratik Piyush
Jamshedpur : बच्चों खासकर किशोरियों की उम्र बढ़ने के साथ शरीर में कई ऐसे परिवर्तन होते हैं, जिनके बारे में जानकारी नहीं होने के कारण उन्हें शारीरिक और सामाजिक रूप से कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसी मुद्दे को लेकर ग्रमीण किशोरियों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया है जमशेदपुर के सरजामदा की रहनेवाली अंजना देवगम ने. अंजना दिल्ली के क्रिया फाउंडेशन से जुड़ी हुई हैं, जो ‘इट्स माई बॉडी प्रोग्राम’ के तहत ग्रामीण इलाकों में काम करती है. अंजना ग्रामीण इलाकों की किशोरियों को यौन शिक्षा, प्रजनन, माहवारी, महिला स्वास्थ्य एवं इनसे जुड़े उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करती हैं. इस फाउंडेशन से जुड़े उन्हें 9 साल हो चुके हैं और ‘इट्स माई बॉडी प्रोग्राम’ प्रोग्राम पर वे बीते दो सालों से काम कर रही हैं.



स्कूटी से 30 किमी का सफर करती हैं तय




अंजना जमशेदपुर के सरजामदा से करीब 30 किमी का सफर अकेले स्कूटी से तय कर पोटका ब्लॉक के हैसलबिल गांव जाती है. यहां हर सप्ताह वे किशोरियों को खेल के जरिये स्वास्थ्य बेहतर करने के तरीके बताती हैं. साथ ही उनके अधिकारों को लेकर भी जानकारी देती है. हैसलबिल जैसे तीन गांवों में अंजना करीब 1000 किशोरियों से यही जानकारियां साझा करती हैं.
शुरुआत में बच्चियां हिचकिचाती थीं
अंजना बताती हैं कि सेक्स और प्रजनन से जुड़ी जानकारी बच्चियों को ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं से भी नहीं मिल पाती, वहीं एक महिला का अधिकार होने के बावजूद विवाह से पूर्व प्रजनन क्रिया करना कलंक माना जाता है. इसलिये शुरुआत में बच्चियां इस मुद्दे पर बात करने से डरती और हिचकिचाती थीं. लेकिन अब बच्चियां भी अंजना से खुलकर यौन प्रजनन से जुड़े स्वास्थ्य अधिकार और अन्य दिक्कतों के बारे में बात करती हैं.
लोगों को समझाने में लगा काफी वक्त
अंजना को इन किशोरियों के माता-पिता को इस प्रोग्राम के महत्व को समझाने में खास दिक्कत आई. बच्चियों के परिजन इसके खिलाफ थे. लेकिन अंजना ने इन सब से बात की और ये समझाया कि इन जानकारियों से उनकी बच्चियों का कैसे विकास होगा. अब लोग इस मुद्दे के अहमियत को समझ चुके हैं. लेकिन अंजना इससे भी बड़ा बदलाव लाने के लिए अब भी निरंतर प्रयास कर रही हैं.
दीदी के आने बाद हम लोगों को अपने अधिकारों के बारे में पता चला .पहले घरवाले हम लोगों को बाहर निकलने नहीं देते थे. पर दीदी से जुड़ने के बाद अब हम लोग अपने घर वालों को बताते हैं कि हम लड़कियां भी लड़कों के जैसे सारा काम कर सकती हैं. – दुखनी सोरेन
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हम लोगों को घर से खेलने के लिए भी बाहर नहीं निलने दिया जाता था. अब दीदी हमें फुटबॉल खेलना सिखाती हैं. मासिक धर्म को छुआछूत समझते थे पर दीदी से जुड़ने के बाद अब पता चला है कि ऐसा कुछ नहीं है. हम लोग अब अपने घरों में जाकर मां को समझाते हैं कि लड़कियां हर काम कर सकती हैं. – संजना मुरमू