
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को डॉक्टर के खिलाफ चिकित्सकीय लापरवाही मामले की सुनवाई करते हुए डॉक्टर्स के हक का फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर मरीज को जीवन का आश्वासन नहीं दे सकता है. वह बेहतरीन इलाज कर सकता है. यदि किसी कारणवश मरीज की मौत हो जाती है तो डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप नहीं लगाया जा सकता है.
इसे भी पढ़ेंःमहंगाई की मार : टीवी व मोबाइल देखना जेब पर पड़ेगा भारी, 14 साल बाद माचिस की कीमत होगी दोगुनी
दरअसल, 22 अप्रैल 1998 को अस्पताल में भर्ती मरीज दिनेश जायसवाल ने 12 जून 1998 को अंतिम सांस ली थी. इलाज पर 4.08 लाख रुपये खर्च हुए थे. मृतक से परिजनों का आरोप था कि गैंगरीन के ऑपरेशन के बाद लापरवाही की गई. इलाज करने वाले डॉक्टर विदेश दौरे पर चले गये. जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम की पीठ ने बॉम्बे अस्पताल एवं चिकित्सा अनुसंधान केंद्र की याचिका को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के उस आदेश को दरकिनार कर दिया जिसमें चिकित्सा लापरवाही के कारण मरीज दिनेश जायसवाल की मौत के लिए आशा जायसवाल और अन्य को 14.18 लाख रुपये का भुगतान देने का आदेश दिया गया है.


इसे भी पढ़ेंःकिसान आंदोलनः न तो संसद में सुलह के आसार, न ही किसान सड़क से हटने को तैयार




सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अस्पताल में रहने के दौरान एक डॉक्टर से मरीज के सिरहाने रहने की उम्मीद नहीं की सकती है. डॉक्टर से उचित देखभाल की उम्मीद की जाती है. केवल यह तथ्य कि डॉक्टर विदेश चला गया था, इसे चिकित्सा लापरवाही का मामला नहीं कहा जा सकता है. पूरी रिपोर्ट देखने के बाद पीठ ने कहा, यह दुखद है कि परिवार ने अपने प्रियजन को खोया लेकिन अस्पताल और डॉक्टर को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि उन्होंने हर समय आवश्यक देखभाल की.