Chhaya
Ranchi: बीते गुरूवार को हरियाणा में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शन केंद्र सरकार की ओर से जारी तीन कृषि अध्यादेश के विरोध में किया गया था. हरियाणा सरकार ने इस दौरान किसानों पर लाठीचार्ज भी किया. वहीं मंगलवार को पंजाब के किसानों ने संसद मार्च किया. कृषि अध्यादेश के विरोध में पूरे देश में किसानों और संघों के बीच विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं. झारखंड में भी विरोध की रणनीति तैयार होती दिख रही है.
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समर्थन मूल्य बना विवाद की वजह
केंद्र सरकार की ओर से पांच जून को कृषि अध्यादेश पारित किया गया था. सोमवार को संसद सत्र के दौरान दो अध्यादेश पारित भी करा लिया गया. किसान संघों की मानें तो तीनों अध्यादेश में कहीं भी न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नहीं है. जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए अलग से कानून की मांग साल 2018 से ही की जा रही है.
साल 2018 में किसानों ने दो दिन का संसद मार्च भी किया था. इसके विपरीत केंद्र सरकार ने नयी कृषि अध्यादेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य को शामिल नहीं किया. किसानों का मानना है कि इससे उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा होगा, जिससे आत्महत्या की दर बढ़ेगी.
छोटे किसानों को मुनाफा मिले इसकी गांरटी नहीः महासचिव
अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य महासचिव सुरजीत सिन्हा ने बताया कि पहले अध्यादेश के मुताबिक, एक देश एक बाजार बनाने की कोशिश की जा रही है. सुरजीत ने बताया कि अभी किसान स्थानीय बाजार में उपज बेचते हैं. दर सरकार तय करती है. ऐसे में अगर एक देश में एक बाजार होगा तो छोटे और मंझोले किसानों की पहुंच उस बाजार तक नहीं होगी. दाम भी निजी हाथों की ओर से तय किया जायेगा. ऐसे में किसानों को मुनाफा मिले इसकी कोई गारंटी नहीं है. और न ही ऐसी किसी गारंटी की बात सरकार ने अध्यादेश में शामिल किया है.
कर्ज लेकर खेती करने वाले किसान तो पूरी तरह बर्बाद हो जायेंगे. सुरजीत ने बताया कि अभी ही राज्य में लगभग 70 प्रतिशत धान क्रय केंद्र बंद है. किसानों को न अभी मुनाफा मिल रहा और न इस अध्यादेश के बाद मिलेगा.
आत्महत्या दर बढ़ने की है संभावना
अध्यादेश के पहले तक कई तरह की गारंटियां किसानों को दी जाती थी. सीटू महासचिव प्रकाश विप्लव ने कहा कि कृषि उत्पाद, मंडी प्रणाली, सरकारी मूल्य तय होते थे. अब एक मंडी प्रणाली से छोटे किसान उस मंडी तक नहीं पहुंच सकते. ऐसे में इन्हें मुनाफा नहीं मिल सकता. पिछले कुछ सालों से लगातार किसानों ने आत्महत्या की. ऐसे अध्यादेश के बाद किसानों की आत्महत्या दर में वृद्धि होगी.
कृषि माल की जो खरीद एपीएमसी मार्केट से बाहर होगी. एपीएमसी व्यवस्था धीरे धीरे खत्म हो जायेगी. इस पर किसी तरह की टैक्स या शुल्क की व्यवस्था नहीं की गयी है. इसका मतलब यही है कि ये व्यवस्था खत्म हो जायेगी. उन्होंने कहा कि इसके अनुसार, आवश्यक वस्तु कानून को खत्म किया जा रहा है. ऐसे में गेहूं, चावल, तिलहन जैसी वस्तुएं आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में नहीं रखी जायेंगी. उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट और किसान के बीच विवाद होने पर एसडीओ या एसडीएम इसका समाधान करेंगे.
क्या है अध्यादेश में
पहले अध्यादेश में एक देश एक बाजार की बात की गयी है. इसके तहत एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी) मार्केट के बाहर कृषि उपज की खरीद होगी. एपीएमसी व्यवस्था को खत्म कर दिया जायेगा. बता दें कि एपीएमसी मार्केट व्यवस्था खत्म होने से राज्य सरकार किसानों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकेगी. किसान का सामान लेने वाली कंपनी और किसान के बीच होने वाले विवाद को एसडीओ के जरिये समाधान किया जायेगा. इसके लिए तीस दिन का समय होगा. किसानों के पास कंपनी या व्यक्ति के खिलाफ कोर्ट तक जाने का विकल्प नहीं होगा.
दूसरे अध्यादेश के अनुसार, आवश्यक वस्तु कानून 1925 में भंडारण में लगे रोक हटा लिए गये हैं. पहले व्यापारियों को गेंहू, चावल आदि के भंडारण के लिए सीमा तय की गयी थी. इस अध्यादेश के बाद यह सीमा हटा ली गयी है. स्पष्ट है किसानों से उपज लेने वाली कंपनियां लंबे समय तक भंडारण रखेगी और अधिक दामों में बेचेगी.
तीसरे अध्यादेश के अनुसार, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया गया है. जिससे बड़ी-बड़ी कंपनियां खेती करेंगी. लेकिन खेतों में किसान मजदूर की भूमिका में होंगे. इससे किसानों के शोषण की संभावना अधिक है.
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