
New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि हाल के दिनों में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सबसे अधिक दुरुपयोग हुआ है. प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह तल्ख टिप्पणी की.
दरअसल, देश में कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में तबलीगी जमात में हुआ कार्यक्रम खासा सुर्खियों में था. दिल्ली में कोरोना के बढ़ते केस के लिए तबलीगी जमात में हुए कार्यक्रम को दोषी ठहराया गया था. जमात की ओर से संगठन की छवि खराब करने के आरोप को लेकर याचिका दायर की गयी है, जिसपर गुरुवार को सुनवाई हुई. इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगायी और कहा कि आज के वक्त में बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का सबसे अधिक दुरुपयोग हो रहा है.
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केंद्र को कड़ी फटकार


इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया कि कोविड-19 के दौरान हुए तबलीगी जमात के कार्यक्रम पर मीडिया का एक वर्ग सांप्रदायिक विद्वेष फैला रहा था. पीठ ने इस मुद्दे पर केन्द्र के कपटपूर्ण हलफनामे के लिए उसकी खिंचाई की.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि कोरोना काल में तबलीगी जमात को लेकर किसने आपत्तिजनक रिपोर्टिंग की और उस पर सरकार ने क्या कार्रवाई की. साथ ही याचिका में लगाये गये आरोपों पर शीर्ष अदालत ने सरकार को निर्देश दिया है कि आरोपों पर तथ्यों के साथ सही जवाब दें.
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अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग
न्यायालय ने कहा कि हाल के दिनों में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सबसे अधिक दुरुपयोग हुआ है. पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब जमात की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि केन्द ने अपने हलफनामे में कहा है कि याचिकाकर्ता बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलना चाहते हैं. इस पर पीठ ने कहा,‘ वे अपने हफनामे में कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं, जैसे की आप जो चाहें वह तर्क देने के लिए स्वतंत्र है.’
पीठ इस बात से नाराज हो गई कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव के बजाए एक अतिरिक्त सचिव ने हलफनामा दाखिल किया जिसमें तबलीगी जमात मामले में मीडिया रिपोर्टिंग के संबंध में गैरजरूरी और अतर्कसंगत बातें लिखी हैं. पीठ ने कहा,‘ आप इस न्यायालय के साथ ऐसा सुलूक नहीं कर सकते जिस तरह से आप इस मामले में कर रहे हैं.’
न्यायालय ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव को इस तरह के मामलों में मीडिया की अभिप्रेरित रिपोर्टिंग को रोकने के लिए पूर्व में उठाए गए कदमों का विस्तृत ब्योरा देने का निर्देश दिया है.
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