
RANJIT SINGH
Jharia: 27 दिसम्बर आते ही झरिया के पाथरडीह थाना अंतर्गत चासनाला में काम कर रहे कोयला खनिकों के चेहरे गमगीन हो जाते हैं. क्योंकि 27 दिसम्बर 1975 के दिन एक बजकर 35 मिनट पर चासनाला डीप माइंस खदान में पानी घुस जाने से 375 मजदूरों की मौत हो गयी थी. कहा जाता रहा है कि हादसे का संकेत खदान में कार्यरत मजदूरों ने प्रबंधन को पहले ही दिया था. मजदूरों ने साफ तौर पर प्रबंधन को आगाह किया था कि खदान के अंदर का डेम कभी भी फट सकता है. इसका पानी खदान में घुस सकता है. मजदूरों ने कहा था कि सुरक्षा के लिहाज से कोयले की कटाई बंद कर देनी चाहिए. लेकिन प्रबंधन ने मजदूर व सुपरवाइजर की बात को अनसुनी कर कोयले की कटाई में तेजी लाने का निर्देश दे दिया था.
इस तरह खदान में घुसा था पानी


तेजी से कोयले की कटाई से डेम पर असर पड़ना शुरू हो गया. नतीजा ये हुआ कि खदान मे पहले से रिस रहे डेम पूरी तरह फट गया और इसका पानी खदान में भर गया. पानी का बहाव इतना तेज था कि मजदूरों को बाहर निकलने का मौका तक नहीं मिला. मजदूर अपनी जान बचाने के लिए चानक की ओर भागे, लेकिन वह बचाव स्थल तक नही पहुच सके. क्योंकि खदान पानी से पूरी तरह लबालब था. कोई भी खदान से बाहर नही निकल सका. बाद में प्रबधंक ने खदान में फंसे मजदूरों को बचाने के लिए रूस और पोलैण्ड से रेस्क्यू टीम बुलायी. टीम ने बचाव कार्य शुरू किया पर वे भी किसी को बचा नही सके.


माईंस दुर्घटना में पहली बार कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी हुई थी
20 जनवरी 1976 से खदान के अंदर जलमग्न हुए शवो को निकालने का सिलसिला आरंभ हुआ. 2 फरवरी तक 356 शवो को निकाला गया. इसमें 246 की पहचान हो सकी. इस धटना की उच्चस्तरीय जांच भी हुई. पहली बार माईंस दुर्घटना में कोर्ट ऑफ इन्क्वारी हुई. दोषियो को सजा भी मिली. लेकिन कई मृतकों के आश्रितों को आज भी सुविधाओं से वंचित रखा गया है.
मजदूरों की समाधि पर हर साल जुटता है हुजूम
चासनाला में बने समाधि स्थल पर अधिकारी, मजदूर और नेताओं का हुजूम हर साल जुटता है. मृत मजदूरों को श्रद्धांजलि दी जाती है. लेकिन असल श्रद्धाजलि तभी होगी, जब मृतक मजदूरों के आश्रितों का को नौकरी और सुविधाएं मिलेंगी.