
Surjit singh
महाराष्ट्र व हरियाणा में चुनाव परिणाम आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा थाः दोनों राज्यों में भाजपा की “अभूतपूर्व” जीत हुई है. जो असल में भाजपा के स्वर्णिम काल में “अभूतपूर्व” हार थी. क्योंकि हरियाणा में तो जैसे-तैसे सरकार बन गई. पर महाराष्ट्र में भाजपा सरकार नहीं बना सकी. झारखंड विधानसभा चुनाव में भी हालात वैसे ही बनते जा रहे हैं. राजनीतिक विशेषज्ञ कमेंट करने लगे हैं. कहने लगे हैं: झारखंड में भी भाजपा “अभूतपूर्व” जीत की तरफ बढ़ रही है.
पहले फेज में जहां चुनाव है, उन छह जिलों के 11 विधानसभा क्षेत्रों में अधिकांश पर भाजपा के बागी ही मुकाबले में दिख रहे हैं. दूसरे फेज में पूर्व मंत्री व पूर्व भाजपा ने सरयू राय ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के क्षेत्र से नामांकन करके अलग तरह की ही लड़ाई की शुरुआत कर दी है.
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वहां जीत किसकी होगी, यह तो कहना मुश्किल है, पर रघुवर दास के लिए चीजें आसान नहीं होंगी. नामांकन के तुरंत बाद सरयू राय ने जिस तरह रघुवर “दास” को रघुवर “दाग” कहकर संबोधित किया है, उससे यह साफ हो गया है कि सरयू राय अभी रुकने वाले नहीं हैं.
भाजपा खेमे को डर है कि अगर सरयू राय ने अपनी तरकस के सारे तीर छोड़ने लगे तो रघुवर दास और पांच साल की सरकार की छवि भ्रष्टाचार करने वाली बन जायेगी. जो ना तो रघुवर दास के लिए और ना ही भाजपा के लिए सही होगा.
झारखंड भाजपा के हालात पर पार्टी से जुड़े नेता भी कम दुखी नहीं हैं. पार्टी के नेता भवनाथपुर से भ्रष्टाचार के आरोपी व चार्जशीटेड भानू प्रताप शाही, पांकी से यौन शोषण व हत्या के आरोपी शशिभूषण मेहता और बाघमारा से रंगदारी व यौन शोषण के आरोपी ढ़ुल्लू महतो को टिकट दिये जाने से नाराज और दुखी हैं.
इन सबके बीच रही-सही कसर बोकारो विधायक बिरंची नारायण की वायरल वीडियो ने पूरी कर दी. कई नेताओं ने बताया कि क्षेत्र में उनसे इस बारे में सवाल किये जाते हैं, तब जवाब देना मुश्किल हो रहा है.
टिकट बंटवारे को लेकर भी नाराजगी है. सिर्फ सरयू राय ही नहीं, गणेश मिश्रा, राधा कृष्ण किशोर, दिनेशानंद गोस्वामी, अनंत प्रताप देव, पूर्व सांसद कड़िया मुंडा जैसे कई वरिष्ठ नेता नाराज हैं. पार्टी के भीतर रघुवर दास को लेकर कई तरह के विरोधी स्वर चल रहे हैं.
यही कारण है कि राज्य के 24 में से करीब 10 जिला की भाजपा कमेटी के नेता नाराज चल रहे हैं. पार्टी के सीनियर नेताओं को उनके पास जाकर उन्हें मनाना पड़ रहा है. अगर समय रहते पार्टी इससे निजात नहीं पाती है, चुनाव परिणाम पर असर जरुर दिखेगा.
राजनीतिक विश्लेषक भाजपा के सीटिंग विधायकों का टिकट काटने को भी एक अलग नजरिये से देख रहे हैं. क्योंकि जिन 10 विधायकों का टिकट काटा गया है, उनमें आठ एससी-एसटी हैं और एक ओबीसी जाति के. सामान्य जाति के एक विधायक संजीव सिंह का टिकट कटा है. वह झरिया से विधायक हैं.
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लेकिन उनकी जगह किसी दूसरे उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया है. टिकट उनकी पत्नी को ही मिला है. अगर विपक्ष ने इस मुद्दे को उछाला, तो पहले से बिदकी एससी वोट भाजपा से और दूर चला जायेगा. एसटी वोटर पर भी असर पड़ेगा.
कुल मिलाकर हालात यह बन गये हैं कि रघुवर दास अपने क्षेत्र में ही घिरते नजर आ रहे हैं. सरकार की छवि को लेकर सवाल उठने लगे हैं. सवर्ण जाति के भाजपा नेताओं के साथ-साथ संघ के पदाधिकारियों की नाराजगी परेशानी पैदा कर रही है. और एससी-एसटी जाति के मतदाता की भी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है.
ऐसी परिस्थिति में भाजपा के नेताओं को अब सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से उम्मीद नजर आ रही है. उम्मीद की जा रही है कि दोनों की रैलियों के बाद हवा का रुख शायद प्रभावित हो.
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