
Mumbai : जापानी की ऑटोमोबाइल कंपनी निसान (Nissan) ने भारत में डैटसन ब्रांड को बंद करने की घोषणा कर दी. निसान इंडिया ने एक बयान में कहा, “डैटसन रेडी-गो का प्रोडक्शन चेन्नई प्लांट (रेनो निसान ऑटोमोटिव इंडिया प्राइवेट लिमिटेड) से बंद हो गया है.
जब तक इस मॉडल का स्टॉक रहेगा बिक्री जारी रहेगी. बता दें कि कंपनी अपनी कारों की सुस्त बिक्री को लेकर 2020 में रूस और इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका के साथ अन्य दो देशों में ब्रांड को बंद कर चुकी है.
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सर्विसेज और वारंटी मिलती रहेगी


कंपनी ने बताया कि हमारे सभी मौजूदा और कार को खरीदने वाले नए ग्राहक पहली प्राथमिकता रहेंगे. देशभर में हमारे सभी डीलरशिप नेटवर्क पर सर्विसेज मिलती रहेगी. हम अपनी कारों पर मिलने वाली वारंटी और फ्री सर्विसेज भी देना जारी रखेंगे. कंपनी ने पहले ही डैटसन ब्रांड के दो अन्य मॉडलों का प्रोडक्शन बंद कर दिया था. इसके एंट्री लेवल पर छोटी कार गो और कॉम्पैक्ट मल्टी पर्पज व्हीकल गो प्लस है.




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कंपनी ने बताया बंद करना स्ट्रेटजी का हिस्सा
डैटसन ब्रांड का बंद करना निसान की ग्लोबल ट्रांसफॉर्मेशन स्ट्रेटजी का एक हिस्सा है. कंपनी ने इसका ऐलान 2020 में किया था. कंपनी ने बताया कि निसान की ग्लोबल ट्रांसफॉर्मेशन स्ट्रेटजी के हिस्से के रूप में निसान मुख्य मॉडल और सेगमेंट पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. वो ग्राहकों, डीलर भागीदारों और व्यापार के लिए सबसे अधिक लाभ लाता है. भारत में इसमें 100,000 से अधिक ग्राहक ऑर्डर के साथ सभी नए स्थानीय रूप से उत्पादित निसान मैग्नाइट शामिल हैं.
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ऑटो बाजार में 9 साल पहले हुई थी एंट्री
जुलाई 2013 में जापानी की ऑटोमोबाइल कंपनी निसान के डैटसन ब्रांड ने भारत में एंट्री की थी. तब कंपनी ने एंट्री लेवल हैचबैक ‘डैटसन गो’ को लॉन्च किया था. बाद में ग्लोबल लेवल पर डैटसन को फिर से लॉन्च किया था. ग्लोबल ट्रांसफॉर्मेशन स्ट्रेटजी के तहत निसान ने कहा था कि वह रूस में डैटसन व्यवसाय से बाहर निकल जाएगी और आसियान (दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के संघ) क्षेत्र में कुछ बाजारों में परिचालन को सुव्यवस्थित करेगी. कंपनी ने इंडोनेशिया में विनिर्माण कार्यों को रोकने की भी घोषणा की थी.
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बाजार में नहीं बढ़ा पाई हिस्सेदारी
निसान मोटर कंपनी के तत्कालीन प्रेसिडेंट और CEO कार्लोस घोसन ने डैटसन से 2016 तक भारत में अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाकर 10% करने के लिए कंपनी में एक बड़ी भूमिका निभाने की उम्मीद की थी. ये 2013 में 1.2% थी. हालांकि, ब्रांड उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया. मारुति सुजुकी, टाटा और हुंडई की कारों के मुकाबले इसकी सस्ती कारों की डिमांड कम रही.
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