
New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए एक अहम आदेश में बिहार की राजधानी पटना के कलेक्टोरेट कार्यालय की 350 साल पुरानी इमारत गिराने की इजाजत दे दी. कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की कि अंग्रेज राज की हर इमारत संरक्षण करने लायक नहीं है.
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क्या है मामला


इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) की पटना इकाई ने इस इमारत को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इमारत गिराने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी गयी थी.
याचिका में कहा गया था कि इमारत शहर की सांस्कृतिक विरासत का एक प्रमुख हिस्सा है. इसे गिराने की बजाय संरक्षित किया जाना चाहिए. इस इमारत का इस्तेमाल अंग्रेज अफीम और नमक के भंडारण के गोदाम के रूप में करते थे.


नया भवन बनानी चाहती है सरकार
बिहार सरकार ने 31 जुलाई 2019 को पटना कलेक्टर कार्यालय के इस जीर्ण-शीर्ण भवन को गिराने का फैसला कर आदेश जारी किए थे. शासन यहां नया भवन बनाना चाहता है. सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2020 में भवन में यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए थे.
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जीर्ण-शीर्ण इमारत लोगों के लिए गंभीर खतरा
वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने बिहार सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि इमारत जीर्ण-शीर्ण अवस्था में होकर लोगों के लिए एक गंभीर खतरा है. बिहार शहरी कला और विरासत आयोग ने 4 जून, 2020 को कलेक्ट्रेट परिसर को ध्वस्त करने की मंजूरी दी थी. 1972 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने बिहार में एक सर्वेक्षण किया था. उसने भी पटना के कलेक्टोरेट को संरक्षित इमारत की सूची में शामिल नहीं किया था.
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सभी इमारतों का संरक्षण नहीं हो सकता
बिहार सरकार की दलीलों से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्य कांत की पीठ ने कहा ‘हमारे पास उपनिवेशकालीन इमारतें बड़ी संख्या में हैं. इनमें से कुछ ब्रिटिश, डच और फ्रांसीसी युग की भी हैं. ऐतिहासिक महत्व वाली इमारतें हो सकती हैं, जिन्हें संरक्षित किया जा सकता है लेकिन सभी इमारतें नहीं.
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