
Nitesh Ojha
Ranchi: विधानसभा की बेरमो सीट पर हो रहे उपचुनाव में एक ओर सियासत की विरासत को आगे बढ़ाने की लड़ाई है, तो दूसरी ओर खोयी हुई सियासी जमीन को फिर से हासिल करने का संघर्ष. विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह के निधन की वजह से हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस ने उनके बड़े बेटे जयमंगल सिंह को मैदान में उतारा है, तो दूसरी ओर भाजपा ने इस क्षेत्र के अपने पुराने योद्धा योगेश्वर महतो बाटुल पर भरोसा जताया है.
राजेंद्र प्रसाद सिंह इस सीट से छह बार विधायक चुने गये थे, जबकि बाटुल भी दो बार यहां से जीतकर विधानसभा की यात्रा कर चुके हैं. 2019 में हुए चुनाव में राजेंद्र प्रसाद सिंह ने योगेश्वर महतो को पटखनी दी थी, जबकि इसके पूर्व 2014 में योगेश्वर ने राजेंद्र प्रसाद सिंह को पराजित किया था. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि जयमंगल अपने पिता की विरासत को सहेज पाने में कामयाब रहते हैं या योगेश्वर पिछले चुनाव में खोई जमीन पर काबिज होकर उन्हें बेदखल कर देते हैं.


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भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर प्रसाद बाटुल के सबल पक्ष
- 2019 के चुनाव में उनके हार का एक कारण आजसू का भाजपा से गठबंधन टूटना था. लेकिन इस बार आजसू के साथ होने से उन्हें काफी फायदा मिलेगा.
- योगेश्वर महतो बेरमो के लोकल नेता होने से कुम्हार जाति से आते हैं. इस जाति का बेरमो की वोटरों में ठीक-ठाक पकड़ है.
- पार्टी ने उन्हें पांचवीं बार बेरमो सीट का टिकट दिया है. बीजेपी के तमाम बड़े नेता जैसे रघुवर दास, बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, दीपक प्रकाश उनके चुनावी कैम्पेन को संभाले हुए हैं.
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योगेश्वर बाटुल के दुर्बल पक्ष
- पूरे कोरोना काल के दौरान उनकी बेरमो की जनता से काफी दूरी देखी गयी.
- कांग्रेस प्रत्याशी की तुलना में कोलफील्ड में कार्यरत मजदूरों के बीच उनकी पकड़ थोड़ी ढीली है.
- 2019 के चुनाव में उनके हारने का एक कारण महागठबंधन के दो मजबूत स्तंभ कांग्रेस और जेएमएम वोटरों की एकजुटता भी थी.
- क्षेत्र में मास लीडर की छवि नहीं है.
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कांग्रेस प्रत्याशी कुमार जयमंगल के प्लस प्वॉइंट्स
- दिवंगत नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह एक मास लीडर के तौर पर जाने जाते थे. सहानुभूति वोट होने के साथ उनके बड़े बेटे होने का फायदा उन्हें जरूर मिलेगा.
- कुमार जयमंगल एक युवा चेहरा हैं. बेरमो के युवा वोटरों के बीच उनकी पकड़ भाजपा प्रत्याशी की तुलना में काफी बेहतर है.
- कुमार जयमंगल के लिए खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बेरमो का कई बार दौरा कर चुके हैं. हर बार उन्होंने भरे मंच में कांग्रेस प्रत्याशी को वोट देने की बात की है, जिसका फायदा उन्हें जरूर मिलेगा.
- कांग्रेस वर्तमान में सत्ताधारी पार्टी है. ऐसे में क्षेत्र में जनता में भी मैसेज काफी पॉजिटिव रहेगा.
- अपने दिवगंत पिता के रहते ही कुमार जयमंगल पिछले 14 सालों से बेरमो की राजनीति में सक्रिय हैं.
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जयमंगल के माइनस प्वॉइंट्स
- इनकी छवि अभी तक राजेंद्र प्रसाद सिंह की तरह नहीं बन पायी है.
- भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर महतो बाटुल की तुलना में वे चुनाव लड़ने में कम अनुभवी है.
- इस उपचुनाव में अगर बाहरी-भीतरी की राजनीति होती है, तो इनको नुकसान होगा. भाजपा भी इसको भुनाने में लगी है.
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