
Surjit singh
अपर बाजार. व्यवसायियों की सबसे घनी आबादी. बीच में खाली जगह. बकरी बाजार. नगर निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय का दौरा. पार्क बनाने के लिए. दूसरे दिन अखबारों में खबर और सिविल सोसायटी का बकरी बाजार में बैठक. तीसरे दिन राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार का नगर विकास मंत्री सीपी सिंह को खुला पत्र. पत्र में मंत्री को जिम्मेदारी लेने, रांची शहर को नर्क बनाने की बात. चौथे दिन विपक्ष हमलावर.
पांचवें दिन मंत्री सीपी सिंह ने कहा- बकरी बाजार में पार्किंग बनाने की जानकारी उन्हें नहीं. महेश पोद्दार भी अड़े रहे. लगा अब सबकी जांच होगी. लगे भी क्यों नहीं. झारखंड में जीरो टॉलरेंस की सरकार जो है.


फिर मंत्री सरयू राय का पत्र सामने आया. मैनहर्ट का नाम फिर सामने आया. पूर्व नगर विकास मंत्री व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप लगाये. कहा कि मैनहर्ट को पेमेंट करने का फैसला हेमंत सोरेन ने ही लिया. अब सब चुप. अब न कोई जिम्मेदारी की बात करेगा और ना ही जांच की. कारण नहीं पता ऐसी बात नहीं. सब जानते हैं मैनहर्ट पर बोलने वाले की बोलती बंद कर दी जाती है.




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आखिर मैनहर्ट नाम में ऐसा क्या है कि सब चुप हो गये. क्या मैनहर्ट का नाम सुनते ही भाजपा का एक गुट, जो सत्ता का करीबी माना जाता है, चुप हो जाता है. पत्र में मंत्री सरयू राय ने कहा हैः नगर विकास विभाग के मंत्री रहते हुए हेमंत सोरेन ने निगरानी जांच में अयोग्य हो चुके मैनहर्ट कंपनी को न केवल 17 करोड़ रुपये का भुगतान किया, बल्कि इसके विरुद्ध हाई कोर्ट में अपील दाखिल करने से भी मना कर दिया. सीपी सिंह ने तो अपने कार्यकाल में मैनहर्ट को पर्यवेक्षण से हटाने का काम किया.
सरयू राय द्वारा हेमंत सोरेन पर 17 करोड़ रुपये का पेमेंट के आरोप पर झामुमो की चुप्पी तो समझ में आती है. पर, सत्ता पक्ष क्यों चुप है. सांसद महेश पोद्दार, मंत्री सीपी सिंह, हर माह प्रेस कांफ्रेंस कर हेमंत सोरेन को भ्रष्ट बताने वाले भाजपा के प्रवक्ता सब चुप. चुप्पी की वजह इस तथ्य से समझ सकते हैं कि पिछले साल हाई कोर्ट ने मैनहर्ट मामले में सरकार को एक आदेश दिया था.
कोर्ट ने निगरानी आयुक्त से कहा थाः तय समय सीमा के भीतर मैनहर्ट मामले में तत्कालीन निगरानी आइजी एमवी राव के पत्र के आलोक में कार्रवाई करें. सरकार ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है. निगरानी आयुक्त विभाग के मंत्री मुख्यमंत्री रघुवर दास ही हैं.
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अब बात सिवरेज ड्रेनेज के कारोबार की. महेश पोद्दार ने अपने खुले पत्र में सिवरेज-ड्रेनेज का भी मुद्दा उठाया था. कहा थाः राजधानी में सिवरेज-ड्रेनेज के नाम पर कारोबार चल रहा है. इसी मुद्दे का जिक्र सरयू राय ने भी किया है. साथ ही यह भी कहा तत्कालीन पथ निर्माण विभाग के सचिव राजबाला वर्मा के कार्यकाल में सिवरेज-ड्रेनेज पर 140 करोड़ खर्च किया गया.
राजबाला वर्मा वही अधिकारी हैं, जिन्होंने निगरानी आयुक्त रहते हुए निगरानी आइजी के पत्रों पर कोई कार्रवाई नहीं की. राजबाला वर्मा के लिये वर्तमान सरकार ने क्या-क्या किया, यह किसी से छिपा नहीं है.
बहरहाल ना सांसद महेश पोद्दार के पत्र पर कोई जांच होगी, ना कार्रवाई होगी. ना ही सरयू राय जो सवाल उठाते रहे हैं, उसकी जांच होगी या कार्रवाई होगी. तो क्या संजीव विजयवर्गीय का बकरी बाजार जाना और उसके बाद की गतिविधियां भाजपा की अंदरुनी राजनीति की एक झलक थी. क्या पार्टी को किसी खास व्यक्ति को निशाना बनाने के लिये यह सब किया गया. और जब इसमें सत्ता शीर्ष ही फंसने लगा, तो चारों तरफ सन्नाटा.
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