
NewDelhi : पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी लागू होने के बाद आज तीसरे वर्ष में प्रवेश करने के मौके पर अपने लेख में इसे बेहद सफल टैक्स सिस्टम बताया है. जेटली ने कहा है कि जीएसटी को लेकर सभी आशंकाएं आधारहीन साबित हुई हैं. कहा कि जीएसटी देश के सुधार के लिए बहुत अहम रहा है. जीएसटी के लागू होने के बाद देश में कर देने वालों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है.
जेटली ने कहा कि पहले के 65 लाख लोगों के मुकाबले आज एक करोड़ बीस लाख लोग जीएसटी के दायरे में टैक्स दे रहे हैं. जीएसटी से केंद्र के साथ–साथ राज्यों की आय भी बढ़ी है और सरकारों को जनोपयोगी सेवाओं को बढ़ाने के लिए ज्यादा वित्तीय ताकत मिली है. उन्होंने कहा है कि भारत जैसे देश के लिए एक राष्ट्र एक टैक्स का सिस्टम सही नहीं हो सकता, जहां भारी संख्या में आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है.
लेख के जरिए अपनी बात पर जोर देते हुए अरुण जेटली ने कहा कि जीएसटी के लिए राज्यों को राजी करना बड़ा कठिन काम था, लेकिन अंततः लगातार पांच सालों तक उनकी आय में 14 फीसदी की बढ़ोतरी करने के वायदे के बाद इस मुद्दे पर सबको साथ लाया जा सका. अब जबकि दो वर्ष के जीएसटी के आंकड़े सबके सामने हैं, यह देखा गया है कि देश के बीस राज्यों ने 14 फीसदी से भी ज्यादा आय बढ़ोतरी हासिल की है .

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उपभोक्ताओं को 31 फीसदी तक टैक्स लगता था
जेटली के अनुसार जीएसटी लागू होने से पहले टैक्स संबंधी 17 कानून मौजूद थे. अलग–अलग राज्यों में अलग–अलग प्रावधान होने के कारण व्यापारियों के साथ–साथ सरकारों को भी कष्ट देने वाला था. वैट 14.5 फीसदी, एक्साइज ड्यूटी 12.5 फीसदी सहित अनेक टैक्स लगते थे. इस व्यवस्था में उपभोक्ता को अंततः लगभग 31 फीसदी तक टैक्स देना पड़ता था. जबकि जीएसटी लागू होने के बाद यह अधिकतम 28 फीसदी रह गया है. वह भी केवल कुछ उच्च विलासिता की वस्तुओं में.
एक टैक्स सिस्टम को सही नहीं ठहराया जा सकता
अरुण जेटली ने कहा कि भारत में कभी भी एक टैक्स सिस्टम को सही नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि जिस देश की बड़ी संख्या में आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती हो, वहां सबके लिए एक टैक्स निर्धारित करना किसी भी तरह न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता. उन्होंने कहा कि हवाई चप्पल और मर्सिडीज कार पर एक सामान टैक्स नहीं लगाया जा सकता. कहा कि जीएसटी के कारण आज राज्यों के प्रवेश सीमा पर ट्रक अनावश्यक इंतजार नहीं करते.
कुछ वस्तुओं को छोड़कर अब ज्यादातर वस्तुओं को 12 फीसदी और 18 फीसदी के दायरे में लाया जा चुका है. भविष्य में इन दोनों सीमाओं को मिलाकर बीच में कहीं एक नयी स्लैब बनाई जा सकती है. जहां तक घरेलू उपयोग की चीजों की बात है, उनमें से ज्यादातर को शून्य और पांच फीसदी के स्तर पर फिक्स कर दिया गया है.
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