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एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया को जम्मू कश्मीर प्रशासन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की इजाजत नहीं दी

Srinagar : अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया को जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के कथित दुरुपयोग के संबंध में बुधवार को श्रीनगर में प्रेस कांफ्रेंस करने की इजाजत  प्रशासन ने नहीं दी. इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के एक साल तक हिरासत में रखा जा सकता है.  बता दें कि गैर लाभकारी संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने बयान जारी कर यह आरोप लगाया है.

संस्था  का आरोप  है कि जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम जम्मू-कश्मीर में आपराधिक न्याय प्रक्रिया को खराब कर रहा है. साथ ही वैश्विक मानवाधिकार संस्था ने विवादास्पद जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) को खत्म करने की भी मांग की. बता दें कि यह कानून पिछले 42 सालों से प्रभाव में है.

टायरनी ऑफ ए लॉलेस लॉ: डिटेंशन विदाउट चार्ज ऑर ट्रायल अंडर द जम्मू कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट टाइटल वाली इस रिपोर्ट को ऑनलाइन माध्यम से वैश्विक तौर पर जारी किया गया. हालांकि, एमनेस्टी के कर्मचारियों को इस रिपोर्ट पर राज्य में प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करने दी गयी.

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पीएसए एक एक्ट है और संतुलन बनाये रखने की न्याय प्रणाली मौजूद है

एमनेस्टी के एक प्रवक्ता के अनुसार  प्रशासन ने संस्था को इस विषय पर प्रेस कांफ्रेंस करने की इजाजत नहीं दी. उन्होंने कहा कि  कानून-व्यवस्था के मौजूदा हालात को कारण बताते हुए हमसे कहा गया कि हमें कार्यक्रम करने की औपचारिक अनुमति नहीं दी जा रही है. इस रिपोर्ट पर जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा कि देश में विधि का शासन है. कहा कि पीएसए एक एक्ट है और संतुलन बनाये रखने की न्याय प्रणाली मौजूद है.

आप जायें और खुद रिकॉर्ड देखें. सुब्रमण्यम ने कहा कि  पीएसए को अदालत ने सही ठहराया है. कुछ ऐसे पीएसए भी है जिन्हें अदालत ने खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा,  इस बात को समझें कि पूरा तंत्र संतुलन बनाये रखने के लिए काम कर रहा है. जब रिकॉर्ड सही होता है तो अदालत उसे बरकरार रखती है, जब गलत होता है तो अदालत उसे खारिज कर देती है.

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2016 में इस अधिनियम के तहत 525 लोगों को हिरासत में लिया गया

इस संबंध में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के प्रमुख आकार पटेल ने कहा, यह कानून राज्य प्रशासन और स्थानीय लोगों के बीच तनाव बढ़ाने का काम करता है और इसे तत्काल खत्म किया जाना चाहिए. संस्था ने दावा किया कि उसने 2012 से 2018 तक जन सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार 210 बंदियों के मामलों का विश्लेषण किया है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2007-16 के बीच 2400 से अधिक पीएसए हिरासत के आदेश जारी किये गये. .हालांकि, उनमें से अधिकतर फर्जी निकले क्योंकि उनमें 58 फीसदी अदालत द्वारा खारिज कर दिये गये.  2016 में इस अधिनियम के तहत 525 लोगों को हिरासत में लिया गया.

यदि कोई व्यक्ति राज्य की सुरक्षा के लिए पूर्वाग्रहपूर्ण तरीके से काम करता है तो कानून दो साल तक की प्रशासनिक हिरासत की अनुमति देता है. वहीं, कानून व्यवस्था के मामले में पूर्वाग्रहपूर्ण तरीके से काम करने पर यह कानून एक साल के लिए प्रशासनिक हिरासत का प्रावधान करता है. इन मामलों में प्रशासन को किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने के दौरान संबंधित तथ्यों से अवगत कराना आवश्यक नहीं होता है.

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