
- हेल्थ इम्पैक्ट पर स्टडी करे सरकार
- लोगों को जागरूक करने के लिए उठाये कदम
- दुनिया के वायु प्रदूषित शहरों में भारत के 22 शहर
Ranchi: विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) ने आज लंग केयर फाउंडेशन के सहयोग से एक वेबिनार का आयोजन किया.
“डॉक्टर्स डायलॉग : झारखंड में प्रदूषित वायु और हमारा स्वास्थ्य” विषय पर आयोजित इस वेबिनार का उद्देश्य वायु प्रदूषण पर जन-जागरुकता फैलाना और राज्य सरकार के समक्ष प्रदूषण नियंत्रण संबंधी ठोस कदम उठाने पर जोर देना था.
मौके पर डॉक्टरों ने मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया. वहीं राज्य सरकार से वायु प्रदूषण से संबंधित नियमित हेल्थ एडवायजरी जारी करने, प्रमुख सार्वजनिक स्थानों पर हेल्थ डिस्प्ले बोर्ड लगाने और क्षेत्रीय स्तर पर हेल्थ इम्पैक्ट स्टडी करने का आग्रह किया.
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राज्य में 17 फीसदी शिशुओं की मौत कि वजह वायु प्र्दुष्ण
हालिया अध्ययन बताते हैं कि झारखंड में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य संकट का रूप ले रहा है. प्रदूषण-जनित प्रमुख समस्याओं में हृदय और फेफड़ों की बीमारी, स्ट्रोक, कैंसर और समयपूर्व मृत्यु दर में वृद्धि शामिल हैं.
‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज’ ने झारखंड से संबंधित अपने नवीनतम अनुमान (2019) में बताया है कि शिशुओं की कुल मृत्यु में 17.8 फीसदी के पीछे सिर्फ वायु प्रदूषण जिम्मेवार है.
वहीं 50-69 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों में 18.3 फीसदी मौतें सिर्फ वायु प्रदूषण से होती है. वायु प्रदूषण किसी व्यक्ति के जीवन के सभी चरणों को प्रभावित कर सकता है, हालांकि बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं और बच्चों में श्वास संबंधी परेशानियों और हृदय रोग जैसी बीमारियों के कारण उनमें अधिक ख़तरा बना रहता है.
देश के 22 शहर वायु प्रदूषण की चपेट में
लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक और मैनेजिंग ट्रस्टी डॉ अरविंद कुमार ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि “वायु प्रदूषण पूरे देश में एक गंभीर स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुका है.
दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं. कई वैश्विक और भारतीय शोध रिपोर्ट के अनुसार देश में वायु प्रदूषण से मरने वालों लोगों की संख्या लाखों में है.
हालांकि इन रिपोर्ट में उन लाखों लोगों को शामिल नहीं किया गया है, जो वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रहे श्वास संबंधी दिक्कतों, हृदय रोगों और अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं.
दरअसल ये डॉक्टर्स ही हैं, जो दैनिक जीवन में इन दुष्प्रभावों से सबसे पहले अवगत होते हैं, ऐसे में मेडिकल प्रैक्टिसनर्स का दायित्व बनता है कि वे आगे आयें और स्वास्थ्य संबंधी खतरों के प्रति आम लोगों से लेकर सभी स्टेकहोल्डर्स के बीच जागरुकता फैलाएं और सरकारी, निजी और सामाजिक संस्थाओं के जरिये प्रदूषण स्रोतों को चिन्हित करते हुए इसे कम करने के लिए ठोस कदम उठायें.
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बढ़ रही श्वास संबंधी रोगियों की संख्या
झारखंड में वायु प्रदूषण के असर के बारे में बताते हुए डॉ आत्री गंगोपाध्याय, पल्मोनोलॉजिस्ट और चेस्ट काउंसिल ऑफ़ इंडिया के ईस्ट ज़ोन के गवर्नर ने कहा कि “वर्ष 2020 में लैंसेट कमीशन द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार झारखंड में मृत्यु और विकलांगता का तीसरा सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है.
मेरा खुद का अध्ययन बताता है कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में श्वास संबंधी रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो बड़ी चिंता का विषय है. राज्य में स्वास्थ्य संबंधी अध्ययन और ठोस आंकड़ों की कमी एक बड़ी समस्या है, इसलिए इस कमी को दूर करना बेहद जरूरी है ताकि वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाया जा सके.”
वहीं सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अंकिता ज्योति ने कहा कि “वायु प्रदूषण एवं स्वास्थ्य से जुड़े अध्ययन के जरिए ठोस उपायों पर बेहतर समझ विकसित करने में सहूलियत होती है. ऐसे में राज्य सरकार, डॉक्टर्स, शोध संस्थानों, सिविल सोसाइटी संगठनों और सिटीजन ग्रुप्स के बीच समन्वय विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है.
प्रजनन क्षमता पर प्रभाव डालता है वायु प्रदुषण
इस मौके पर भगवान महावीर मेडिका हॉस्पिटल (रांची) में स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ रश्मि सिंह ने कहा कि “वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि वायु प्रदूषण प्रजनन क्षमता और जन्म प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है.
हम डॉक्टरों की जिम्मेदारी है कि हम समाज को यह बताएं कि प्रदूषित वायु के कारण गर्भवती महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ रहा है. यह बेहद जरूरी है कि स्वच्छ और गुणवत्तापूर्ण वायु सुनिश्चित हो और इसके लिए जनता के बीच जागरुकता बढ़ाना बेहद आवश्यक है.
वेबिनार में शामिल डॉक्टर्स और विशेषज्ञों ने सामूहिक रूप से राज्य में प्रदूषण से स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभावों से जुड़ा एक व्यापक अध्ययन करने और इसे क्लीन एयर एक्शन प्लान के साथ जोड़ने पर बल देते हुए प्रमुख स्टेकहोल्डर्स के बीच एक समग्र दृष्टिकोण विकसित करने और ठोस उपाय लागू करने पर जोर दिया.
इस कार्यक्रम में राज्य के प्रमुख डॉक्टर्स, शिक्षाविद, बुद्धिजीवी, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि और अन्य प्रमुख स्टेकहोल्डर्स की सक्रिय भागीदारी रही.
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