
Rakesh Ranjan
Jamshedpur : श्वेताभ सुमन, नाम जितना सुंदर काम उतना ही काला. अपने ओहदे के बूते एक से बढ़कर एक कारनामे किए. कभी सीबीआई जांच से बचने के लिए अपहरण की झूठी कहानी रची तो कभी मुकदमे में पक्ष में फैसले के लिए न्यायाधीश को करोड़ों रुपये घूस की पेशकश कर डाली. कमाये तो इतने कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. हालांकि, पाप का घड़ा देर से ही सही फूटा और तमाम कोशिशों के बावजूद यह आयकर अधिकारी जेल की रोटी तोड़ने को मजबूर हुआ. इस अधिकारी से जुड़ी ताजा खबर है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरेंडर कर दिया है. उसे उत्तराखंड के हरिद्वार के रोशनाबाद जेल भेज दिया गया है.
आय से अधिक संपत्ति के मामले में श्वेताभ सुमन पूर्व में भी हरिद्वार जेल में रह चुका है. बाद में अंतरिम जमानत मिलने पर उसे हरिद्वार जेल से ही रिहा किया गया था. लेकिन 5 मार्च 2022 को नैनीताल हाईकोर्ट ने पूर्व की सजा बहाल करते हुए श्वेताभ सुमन, डॉ अरुण कुमार सिंह और राजेंद्र विक्रम सिंह का बेल बांड खारिज करते हुए हिरासत में लेने के आदेश दिए थे. इस आदेश के खिलाफ श्वेताभ सुमन ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दाखिल की थी. कोर्ट ने 22 अप्रैल को विशेष अनुमति याचिका खारिज करते हुए सरेंडर के आदेश दिए थे. सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई के आदेश में श्वेताभ सुमन एवं दो अन्य अभियुक्तों को एक सप्ताह के अंदर सरेंडर के आदेश दिए थे. इस आदेश के बाद श्वेताभ सुमन ने समर्पण कर दिया.
सरेंडर के अलावा नहीं बचा था कोई दूसरा रास्ता
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लंबे समय से लुका -छिपी कर रहे पूर्व आयकर आयुक्त के सामने सरेंडर के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा था. गौरतलब है कि श्वेताभ सुमन पूर्व में सुद्दोवाला एवं हरिद्वार जेल में सजा काट चुके हैं. उस वक्त श्वेताभ सुमन को सुधोवाला देहरादून जेल के अंदर मोबाइल का प्रयोग करते हुए पकड़ा गया था. इसके बाद जेल प्रशासन ने उनकी दो महीने तक किसी से मुलाकात नहीं होने दी थी. 2019 में श्वेताभ सुमन की गिरफ्तारी का आदेश होने पर शासन के एक आलाधिकारी ने तत्काल हरिद्वार जेल में ट्रांसफर करवा दिया था.



बिना सरेंडर मामले की सुनवाई करने की अपील
श्वेताभ सुमन ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दाखिल की थी. अपनी याचिका में पूर्व कमिश्नर ने अदालत से अपील की थी कि उनके बिना सरेंडर किये मामले की सुनवाई कर ली जाय. कोर्ट में चली सुनवाई के बाद विद्वान जज ने सरेंडर से छूट की मांग को अस्वीकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया. यही नहीं, पूर्व फरार चल रहे आयकर आयुक्त को तीन सप्ताह के अंदर सरेंडर करने के आदेश दिए. नैनीताल हाईकोर्ट ने 5 मार्च को श्वेताभ सुमन सहित तीन लोगों के बेल बांड खारिज करते हुए हिरासत में लेने के आदेश दिए थे. इस आदेश के बाद सभी फरार चल रहे थे.



ये था नैनीताल हाई कोर्ट का आदेश
नैनीताल हाईकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति मामले में उत्तराखंड के पूर्व आयकर आयुक्त श्वेताभ सुमन की सजा बरकरार रखी. कोर्ट ने श्वेताभ सुमन, डॉ अरुण कुमार सिंह और राजेंद्र विक्रम सिंह के बेल बांड को खारिज करते हुए सभी को हिरासत में लेने के आदेश दिए. जुर्माना अदा नहीं करने पर श्वेताभ सुमन की 5 साल की सजा को बरकरार रखते हुए दो माह की सामान्य सजा के आदेश हाईकोर्ट ने दिए. इसके अलावा डॉ अरुण कुमार सिंह एवं राजेंद्र विक्रम सिंह को पूर्व की सजा बहाल रखी.
एक गुमनाम पत्र के आधार पर दर्ज हुआ था मुकदमा
1998 बैच के आईएएस आयकर अधिकारी श्वेताभ सुमन के खिलाफ 2005 में एक गुमनाम शिकायती पत्र के आधार पर दिल्ली में मुकदमा दर्ज हुआ था. उसके बाद सीबीआई ने आयकर अधिकारी के चौदह ठिकानों पर 2015 में छापा मारा था. तब वह संयुक्त आयुक्त के पद पर कार्यरत थे. जांच में सीबीआई ने पाया कि अधिकारी के पास आय से 337 प्रतिशत अधिक संपत्ति है. यह संपत्ति गाजियाबाद, झारखंड, बिहार एवं देहरादून में है. यह संपत्ति उन्होंने अपनी माता और जीजा के नाम कर रखी थी. उन्होंने अपनी मां गुलाबो देवी के नाम दिल्ली में एक होंडा सिटी कार भी फाइनेंस कराई थी. कार फाइनेंस कराने में जो दस्तावेज लगाए गए थे उनमें फोटो अपनी मां की और पेपर किसी अन्य संपत्ति के लगाए गए थे. सीबीआई की जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि सुमन ने गरीबों की मदद के लिए अरविंद सोसायटी का रजिस्ट्रेशन कराया था, जिसमें उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए लोगों से दान डलवाया. बाद में खाते में ट्रांसफर कर लिया.
सुनाई गई सात साल की सजा, तीन करोड़ 70 लाख जुर्माना
सीबीआई कोर्ट में अभियोजन पक्ष की तरफ से 255 और बचाव पक्ष की तरफ से आठ गवाह पेश किए गए थे. स्पेशल जज प्रिवेंशन ऑफ करप्शन (सीबीआई) देहरादून ने 13 फरवरी 2019 को इनको सात साल की सजा सुनाई. साथ में इन पर तीन करोड़ सत्तर लाख चौदह रुपया का जुर्माना भी लगाया था. कोर्ट ने इनकी माता को एक साल, जीजा एवं दो दोस्तों को चार चार साल की सजा सुनाई थी. इस आदेश के खिलाफ इन्होंने हाइकोर्ट ने अपील की थी.
लोगों को धमकाना और वसूली करना रहा शगल
लोगों को धमकाना और मोटी रकम वसूल करना इस अधिकारी का शगल रहा है. बिहार के रहनेवाले हैं लिहाजा जहां भी रहे बिहार के रहनेवाले आइएएस एवं आइपीएस अधिकारियों से दोस्ती रखी आौर इनके माध्यम से आयकरदाताओं से अवैध वसूली की. 2005 में सीबीआइ जांच शुरू हुई तब जमशेदपुर में अपर आयकर आयुक्त थे. जांच से बचने के लिए अपहरण की नौटंकी की. मित्र जितेंद्र के माध्यम से हजारीबाग में रिपोर्ट लिखवाई कि बरही में छह लोगाें ने उनका अपहरण कर लिया है. हजारीबाग के तत्कालीन एसपी प्रवीण सिंंहने जांच में पाया कि अपहरण जैसी कोई बात नहीं है. सीबीआइ जांच शुरू होने और सस्पेंड कर चेन्नई भेज दिए जाने के बाद जांच प्रक्रिया से बचने को अपहरण का ड्रामा रचा. चेन्नई नहीं गए और कैट से निलंबन आदेश को रद करवा लिया.
चर्चा में रहा जमशेदपुर के बिष्टुपुर के नार्दन टाउन का बंगला
आयुक्त डॉ. श्वेताभ सुमन की बर्खास्तगी बाद बिष्टुपुर के नार्दर्न टाउन स्थित बंगला की खूब चर्चा रही. सामान्य तौर पर विभागीय अधिकारी-कर्मचारी का तबादला होने के साथ ही बंगला या क्वार्टर खाली करा लिया जाता है, लेकिन श्वेताभ सुमन के मामले में ऐसा नहीं हुआ. उनका करीब तीन वर्ष पहले जमशेदपुर से कोलकाता तबादला हो गया था. उन्हें वहां आयकर आयुक्त (ओएसडी) के रूप में पदस्थापित किया गया था. इसके बावजूद वे यहां बिष्टुपुर के नार्दर्न टाउन स्थित बंगले पर आते रहते थे. पूरे परिवार के साथ नोयडा शिफ्ट हो गए, इसके बावजूद वे बीच-बीच में जमशेदपुर आते रहते थे, तो इस बंगले में ठहरते भी थे. सीबीआइ द्वारा दिल्ली में गिरफ्तार होने के बाद वे जमानत पर रिहा हो गए थे तब भी एकाध बार यहां आए थे. आयकर आयुक्त डॉ. श्वेताभ सुमन के कॅरियर का लंबा समय जमशेदपुर में बीता. वे यहां वर्ष 1996-97 में सहायक आयकर आयुक्त के रूप में पदस्थापित हुए थे. उसके बाद ये यहां आयकर उपायुक्त और संयुक्त आयुक्त तक रहे. इससे भी बड़ी बात यह रही कि इस बीच इनका तबादला देश के कई शहरों में हुआ, लेकिन बिष्टुपुर के नार्दर्न टाउन स्थित बी-10 का बंगला स्थायी निवास बना हुआ रहा. यह क्वार्टर उन्हें 2001 में आवंटित हुआ था. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया में उनका तबादला पूर्णिया कर दिया गया था. इसके बाद उन्हें बंगला खाली करने का फरमान जारी किया गया, लेकिन श्वेताभ जबरन क्वार्टर में जमे रहे।
पांच राज्यों से किया था तड़ीपार
डॉ. श्वेताभ सुमन का विभाग के उच्चाधिकारियों से भी विवाद था, जिसके बाद केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने श्वेताभ सुमन को पांच राज्यों से तड़ीपार किया था. आदेश में कहा गया था कि जांच पूरी होने तक इनका तबादला बिहार, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा व छत्तीसगढ़ में नहीं किया जाए. इसके बाद इनका तबादला कोलकाता किया गया था, जहां इनकी प्रतिनियुक्ति कमिश्नर ओएसडी (आफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) के पद पर की गई थी. हालांकि इन्हें कोई काम नहीं दिया जाता था. कई वर्षों तक वे शनिवार एवं रविवार को कोलकाता से जमशेदपुर आते थे.