।। मनोज पाठक ।।
हाजीपुर : बिहार में लगने वाले विश्व प्रसिद्घ सोनपुर मेले में इस वर्ष बड़ी संख्या में देशी पर्यटकों के साथ-साथ विदेशी पर्यटक भी पहुचें और मेले का लुत्फ उठाया। अपने गौरवशाली अतीत को संजोए हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में इस वर्ष पर्यटन विभाग ने भी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।
प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ होने वाला यह मेला इस वर्ष छह नवंबर को प्रारंभ हुआ था और चार दिसंबर को समाप्त हो गया।
सारण जिले के जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने बताया कि इस वर्ष मेले को देखने के लिए 35 लाख 69 हजार लोग आए। इस वर्ष मेले में करीब 80 करोड़ रुपए का व्यापार हुआ। उन्होंने कहा कि कि एशिया के प्रसिद्घ पशु मेले के रूप में पहचान रखने वाले इस मेले में 11 हजार विभिन्न पशुओं का आगमन हुआ जिसमें से 4,100 से ज्यादा पशुओं का क्रय-विक्रय हुआ।
इधर, बिहार पर्यटन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इस वर्ष मेले को देखने के लिए नेपाल सहित विभिन्न देशों के 741 विदेशी पर्यटक यहां पहुंचे जिनमें सबसे ज्यादा कनाडा के पर्यटक थे।
विदेशी सैलानियों के ठहरने के लिए मेला परिसर में बनाए गए पर्यटक ग्राम में 45 विदेशी सैलानी ठहरे और मेले का आनंद लिया। गौरतलब है कि विदेशी सैलानियों को ठहराने के लिए विभाग द्वारा आधुनिक सुख-सुविधा वाले ग्रामीण परिवेश जैसे लगने वाले स्विस कॉटेजों का निर्माण कराया गया था। ।
पर्यटक ग्राम के प्रबंधक मुकेश कुमार ने बताया कि मेला परिसर के पर्यटक ग्राम में बने स्विस कॉटेजों में ठहरने के लिए सबसे अधिक फ्रांस के पर्यटक पहुंचे। उन्होंने बताया कि मेले में सरकार के 26 विभागों की प्र्दशनी स्टॉल लगाए गए थे।
इधर, बिहार के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह ने भी माना है कि समय के साथ मेले के स्वरूप में भी बदलाव हो रहा है, परंतु इस मेले का आकर्षण आज भी बरकरार है। उन्होंने कहा कि नियम-कायदे और पशु-क्रूरता अधिनियम के कारण हालांकि मेले में पशुओं का आना निरंतर कम हो रहा है। खेती-बारी में विज्ञान के तकनीकों के प्रयोग तथा नई-नई मशीनों के उपयोग के कारण कृषि कार्य में पशुओं पर निर्भरता भी पहले से कम हुई है।
उन्होंने मेले के समापन समारोह में कहा कि मेले के स्वरूप में बदलाव की आवश्यकता है। सिंह ने कहा कि अगले वर्ष मेले को ‘आर्ट एंड क्राफ्ट’ के रूप में विकसित किया जाएगा।
पर्यटन विभाग के प्रधान सचिव डा़ दीपक प्रसाद ने कहा कि इस प्राचीन मेले में स्वरूप में बदलाव कर इसे पुष्कर और सूरजकुंड मेले की तर्ज पर विकसित किया जाएगा।