
News Wing Desk : एक समय में मणिपुर के खतरनाक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट माने जाने वाले हेड कॉन्स्टेबल हरोजीत सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में सनसनीखेज खुलासा किया है. उन्होंने कहा है कि 2003 से 2009 के बीच मणिपुर में बड़ी संख्या में हुए फर्जी मुठभेड़ों के वे गवाह हैं. हरोजित ने हलफनामे में आरोप लगाया है कि “इन सभी फर्जी मुठभेड़ों को वरीय अधिकारियों के आदेश पर अंजाम दिया गया था. सिंह उन छह वर्षों के दौरान मणिपुर कमांडोज के प्रमुख मुठभेड़ विशेषज्ञों में एक रहे थे. इससे संबंधित रिपोर्ट न्यूज़-18 ने छापी है. रिपोर्ट में एनएचआरसी के आंकड़ों का हवाला देकर लिखा हुआ है कि 2008-09 में उत्तर प्रदेश के बाद मणिपुर में ही सबसे अधिक फर्जी मुठभेड़ का संदेह जाहिर किया था. पीएलए उग्रवादी संजीत मतेयी की हत्या के छह साल बाद कांस्टेबल हरोजीत सिंह ने 2016 में एनकाउंटर की बात न्यूज़-18 पर कबूल की थी.
News Wing Desk : एक समय में मणिपुर के खतरनाक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट माने जाने वाले हेड कॉन्स्टेबल हरोजीत सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में सनसनीखेज खुलासा किया है. उन्होंने कहा है कि 2003 से 2009 के बीच मणिपुर में बड़ी संख्या में हुए फर्जी मुठभेड़ों के वे गवाह हैं. हरोजित ने हलफनामे में आरोप लगाया है कि “इन सभी फर्जी मुठभेड़ों को वरीय अधिकारियों के आदेश पर अंजाम दिया गया था. सिंह उन छह वर्षों के दौरान मणिपुर कमांडोज के प्रमुख मुठभेड़ विशेषज्ञों में एक रहे थे. इससे संबंधित रिपोर्ट न्यूज़-18 ने छापी है.
मुझे वरीय अधिकारी ने संजीत की छाती में गोली दागने का आदेश दिया था- कॉन्स्टेबल हरोजीत सिंह
रिपोर्ट में एनएचआरसी के आंकड़ों का हवाला देकर लिखा हुआ है कि 2008-09 में उत्तर प्रदेश के बाद मणिपुर में ही सबसे अधिक फर्जी मुठभेड़ का संदेह जाहिर किया था. पीएलए उग्रवादी संजीत मतेयी की हत्या के छह साल बाद कांस्टेबल हरोजीत सिंह ने 2016 में एनकाउंटर की बात न्यूज़-18 पर कबूल की थी. सिंह ने कहा कि पूर्व पीएलए उग्रवादी को गोली दागने का आदेश उनके वरिष्ठ अधिकारी इम्फाल के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने दिया था. उन्हीं के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने ऐसा किया और 9 एमएम पिस्टल से संजीत की छाती दाग दी थी.
मणिपुर डीजीपी और मुख्यमंत्री को भी फर्जी एनकाउंटर की जानकारी
सिंह ने यह भी दावा किया कि मणिपुर डीजीपी और मुख्यमंत्री को इस बारे में पता था. मणिपुर पुलिस के कमांडोज पर जुलाई 2009 में संजीत की हत्या
करने का आरोप लगा था. पूर्व उग्रवादी की हत्या तब की गयी थी जब उसने आत्मसमर्पण कर दिया था. उसे दिन-दहाड़े इम्फाल की व्यस्त सड़क पर पुलिस ने गोली मार दी थी. एक निहत्थे युवक की इस तरह हत्या के बाद पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन हुआ था. हरोजित का दावा है कि 2016 में वह ट्रायल कोर्ट में इसी संबंध में हलफनामा दाखिल करना चाहता था. लेकिन वकीलों ने उन्हें ऐसा करने से इस आधार पर रोक दिया कि इम्फाल में पहले ही मामला चल रहा है. सिंह ने आरोप लगाया कि मुझे मेरे पसंद का वकील तक कभी नहीं दिया गया, जिससे मेरी बातें अनकही-सुनी ही रह गयी.
फर्जी मुठभेड़ का खुलासा करने के बाद मुझे जान से मारने की कोशिश की गई
सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में सिंह ने लिखा है कि उन्हें जान से मरने की योजना थी, लेकिन वे जिन्दा बच गये. लिखा है कि 30 अप्रैल 2016 की रात करीब 8.30 बजे बिना लाइट और नंबर प्लेट के एक टाटा पिकअप ने मेरी कार में जानबूझकर टक्कर मारी. उसका मकसद मुझे जान से मारना था. मैं गंभीर रूप से घायल हो गया और इलाज के दौरान मुझे 38 टांके पड़े. दरअसल मैं उन अफसरों के लिए खतरा बन गया जिन्होंने भारत के निर्दोष लोगों को मारने का बेहिचक आदेश दिया था. मुझे आशंका है कि मेरा भी हाल शायद वही हो, जिस तरह कानून से बाहर जाकर अकारण ही निर्दोष नागरिकों को मारा जाता रहा है.
सीबीआई नष्ट कर सकती है राज खोलने वाली डायरी
सिंह के हलफनामे ने सीबीआई पर भी सवाल उठाये हैं. उन्होंने लिखा है कि मैं चाहता था मेरा फ्रेश स्टेटमेंट मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया जाये. उन अधिकारियों के नाम मैं सार्वजनिक करना चाहता था जिन्होंने कानून का उल्लंघन करते हुए फर्जी एनकाउंटर्स के आदेश दिये. लेकिन सीबीआई ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. उनका रवैया मामले की लीपापोती करने की रही.
सिंह ने उन 3-4 डायरियों को भी बरामद करने की गुहार लगाई है जिसमें उन्होंने हर एनकाउंटर की डिटेल दर्ज कर रखी है. ये डायरी सीबीआई द्वारा हरोजित के इंफाल स्थित सरकारी आवास से 2010 में जब्त किये गये थे. सिंह को शक है कि सीबीआई इन डायरियों को नष्ट कर देगी या दबाने की कोशिश करेगी.
मैं भी था उन फर्जी मुठभेड़ों में शामिल, भारत के निर्दोष नागरिकों की हत्या की गयी
उन्होंने लिखा है कि इसलिए मेरे हलफनामे का एक मकसद यह भी है कि इन डायरीज को अदालत के सामने पेश करना सुनिश्चित किया जा सके. मैं सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताना चाहता हूं कि मैं इस संबंध में चल रहे इन जांच में योगदान करना चाहता हूं. क्योंकि मैं इन फर्जी मुठभेड़ों में मौजूद था.
मानव अधिकार कार्यकर्त्ता बबलू लोयतंगबम ने हरोजित के निर्णय को “बहादुर और ऐतिहासिक” बताया है. उन्होंने कहा है कि इससे मणिपुर पुलिस के किलिंग मशीन वाला चेहरा बेनकाब करने में मदद मिलेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था फर्जी मुठभेड़ में जांच के आदेश
पिछले एक दशक में मणिपुर में हुए 98 फर्जी मुठभेड़ों में हत्याओं की जांच करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई में दिया था. विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित कर सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंपा गया था. न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और उदय यू ललित की पीठ ने पीड़ित परिवार एसोसिएशन (EEVFAM) की याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ों में 1528 लोगों की हत्याएं की गयी हैं. बेंच ने पांच सीबीआई अफसरों की एक स्पेशल टीम बनाने का आदेश दिया था जो इन फर्जी मुठभेड़ों में की गई हत्याओं की जांच करती. 31 दिसम्बर 2017 तक जांच रिपोर्ट तैयार कर जनवरी 2018 के पहले हफ्ते में सबमिट करने को कहा था.
सवाल जो बरकरार हैं भारत के लोकतंत्र पर
कांस्टेबल सिंह के बयान ने भारत में पुलिस व्यवस्था और नागरिकों को जीने के अधिकार पर कई सवाल खड़े कर दिये हैं. हमारे झारखण्ड में भी कई फर्जी मुठभेड़ हुए हैं. हजारों लोग नक्सली होने नाम पर जेलों में बंद हैं. बढ़निया, बकोरिया जैसे फर्जी एनकाउंटर्स सत्ता, पुलिस और प्रशासन की नीयत और शक्ति के दुरुपयोग का खुलासा करते हैं. इन सब घटनाओं से हमारा लोकतंत्र तारतार होता है. देश के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी जिन पर है, वे ही नागरिकों की हत्या कर सत्ता का खौफ फैलाते हैं. इन सारे तथ्यों के बाद भारतीय लोकतंत्र का सिसकता स्वरुप उभरता है.
सीबीआई की एसआईटी मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ की जांच को लेकर गंभीर नहीं : सुप्रीम कोर्ट
उच्चतम न्यायालय ने 08 जनवरी को कहा कि उग्रवाद प्रभावित मणिपुर में सेना, असम राइफल्स और पुलिस द्वारा कथित फर्जी मुठभेड़ों में की गई न्यायेतर हत्याओं की जांच से संबंधित मामले को सीबीआई का विशेष जांच दल (एसआईटी) गंभीरता से नहीं ले रहा है. शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब उसे सूचित किया गया कि पिछले साल जुलाई में उसके आदेश के बावजूद मामले में एसआईटी ने कुल 92 मामलों में सिर्फ 11 प्राथमिकियां दर्ज की हैं. न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने कहा, ‘‘हमें ऐसा लगता है कि सीबीआई और एसआईटी मामले को उतनी गंभीरता से नहीं ले रही है, जितनी गंभीरता से उसे लिये जाने की जरूरत है.’’ पीठ ने एसआईटी जांच के प्रभारी सीबीआई के डीआईजी को 16 जनवरी को उसके समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया. पीठ ने इन मामलों की जांच में हुई प्रगति पर डीआईजी से एक स्थिति रिपोर्ट भी दाखिल करने को कहा.
शीर्ष अदालत ने मणिपुर में हुई न्यायेतर हत्याओं की जांच के लिये पिछले साल 14 जुलाई को सीबीआई के पांच अधिकारियों की सदस्यता वाली एसआईटी का गठन करने और प्राथमिकियां दर्ज करने का आदेश दिया था.