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Ranchi, 13 November : रांची शहर अब आये दिन होर्डिंग्स-बैनर्स से पटा ही रहता है. मौक- बेमौके तोरण द्वार भी मुख्य सडकों पर गड्ढे खोदकर बनाये जाते हैं. इसके लिए सडकों का अतिक्रमण खुलेआम किया जाता है. लोगों के आवागमन में हो रही असुविधाओं के प्रति कोई संवेदना नहीं दिखाई पड़ती है. रांची शहर को लगातार सरकारी पैसे से होर्डिंगों/बैनरों से पाटने को लेकर रघुवर सरकार चौतरफा आलोचना झेलती रही है. एक बार फिर वे इस बाबत विपक्ष के निशाने पर हैं.
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इस बार सरकारी लाइटिंग में ‘कमल के फूल’
नया विवाद राज्य स्थापना दिवस पर राजधानी को दुल्हन की तरह सजाने को लेकर है. 15 नवम्बर के जश्न पर फिर से होर्डिंग/बैनर से राजधानी को सजाई जा रही है. भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा है कि राज्य की रघुवर सरकार द्वारा स्थापना दिवस पर जो भी सजावट की जा रही हैं, उनमें सत्ताधारी पार्टी के चुनाव चिन्ह कमल को काफी प्रमुखता से दिखाया जा रहा है. इससे सत्ताधारी पार्टी का चुनाव चिन्ह के जरिये प्रचार किया जा रहा है. सरकारी पैसे का खुलकर दुरूपयोग हो रहा है. यदि झारखंड राज्य के प्रति रघुवर सरकार की जरा भी प्रतिबद्धता होती तो सत्ताधारी पार्टी अपने चुनाव चिन्ह के स्थान पर वीर शहीद पूज्य बिरसा मुंडा जी की तस्वीर होर्डिंगों/बैनरों में लगाये जाते. कमल के फूल को सरकारी सजावट में दिखाने से स्पष्ट होता है कि रघुवर सरकार तरह-तरह के बहाने से सरकारी पैसों का इस्तेमाल अपनी पार्टी के प्रचार के लिए कर रही है. यह जनता के पैसों का खुलेआम दुरुपयोग है. यह अनैतिक तो है ही साथ ही आम जनता के पैसों की जानबूझकर सत्ता द्वारा बर्बादी भी है.
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सरकारी पैसे से पार्टी का प्रचार
होर्डिंग्स-बैनर्स हर चौक-चौरहे और मुख्य सड़कों नजर आ रहे हैं. राजधानी के मोरहाबादी, हवाई अड्डे से लेकर राजभवन समेत अधिकांश सड़कें होर्डिंग/बैनर से पटे देखे जा सकते हैं. खासकर स्थापना दिवस को लेकर जो लाइटिंग की गई है, उसमें सत्ताधारी पार्टी के चुनाव-चिन्ह “कमल के फूल” को प्राथमिकता से उभरकर सामने आता देखा जा सकता है. कोई भी साधारण व्यक्ति आसानी से यह समझ सकता है कि इनका उद्देश्य पार्टी का प्रचार करना है. इतना ही नहीं, लाइट की सजावट भी जो की गयी है, उनमें भी सत्ताधारी पार्टी के चुनाव-चिन्ह “कमल के फूल” को इतनी प्राथमिकता दी गयी है कि देखने वालों को सबसे पहले कमल का फूल ही दिखता है.
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कई सरकारी समारोहों में यह भी देखने को मिलता है कि तम्बू – कनातों के कपड़ों का रंग भी सत्ताधारी पार्टी के झंडे के रंग केसरिया एवं हरा के समान ही होता है. ऐसा जानबूझकर करने से अपने आप सत्ताधारी पार्टी का प्रचार सरकारी पैसे से हो जाता है. इसकी समाज में तीखी प्रतिक्रिया भी हो रही है.