इस्लामाबाद : पेशावर स्थित स्कूल में आतंकवादी हमले और नरसंहार की घटना के पांच दिनों बाद भी यहां विद्यार्थी गहरे सदमे में हैं। आतंकवादी हमले में 140 से ज्यादा संख्या में बच्चे और शिक्षक मारे गए थे।
समाचार पत्र ‘डॉन’ में रविवार को प्रकाशित खबर के अनुसार, घटना से सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे हुए हैं। पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में हुए आतंकवादी हमले में बचाए गए बच्चों सहित शहर भर के बच्चों पर नृशंस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा है।
बच्चों के अभिभावक भी घटना के बाद सदमे में हैं।


‘डॉन’ के मुताबिक, आर्मी पब्लिक स्कूल के एक 14 वर्षीय छात्र अरसलान खान ने बताया, “मुझे सपने में काले जूते पहने और बंदूक लिए हुए लोग दिखाई देते हैं।”




घटना वाले दिन (16 दिसंबर) अरसलान गोलियों की आवाज सुनकर भागकर बाथरूम में छिप गया था।
‘डॉन’ के अनुसार, कई अभिभावकों का कहना है कि उनके बच्चे हमले की घटना के बाद से मानसिक आघात और अनिद्रा की समस्या से जूझ रहे हैं।
एक महिला शाजिया शहरयार ने ‘डॉन’ को बताया कि आर्मी पब्लिक स्कूल के ही इलाके में स्थित दूसरे स्कूल में कक्षा नौ में पढ़ने वाली उनकी बेटी घटना के बाद से स्कूल नहीं जाना चाहती, जबकि उसका स्कूल आर्मी पब्लिक स्कूल से काफी दूरी पर है।
शाजिया ने कहा, “वह अब भी डर से कांपती है। हम उसे अस्पताल ले जाना चाहते हैं, पर वह कहीं नहीं जाना चाहती।”
विशेषज्ञों की सलाह है कि बच्चों को अखबारों में प्रकाशित हमले की तस्वीरें और टीवी पर घटना से संबंधित खबरों को न देखने दिया जाए।
प्रख्यात मनोवैज्ञानिक तारीक सईद मुफ्ती ने भी आगाह किया है कि सदमे की वजह से बच्चे मानसिक आघात और अनिद्रा के शिकार हो सकते हैं।
मुफ्ती ने कहा, “ऐसा हो सकता है कि बड़ी उम्र के बच्चों को अंदर ही अंदर इस बात की ग्लानि हो कि हमले में वे क्यों नहीं मारे गए या घायल हुए। दूसरी तरफ उनमें बदले की भावना भी उपज सकती है।” आईएएनएस