Md. Asghar Khan
Ranchi, 25 October: झारखंड सुन्नी वक्फ बोर्ड बिना अध्यक्ष और अस्थायी सीईओ की दोहरी मार झेल रहा है. दूसरी दुर्दशा यह है कि इस संवैधानिक संस्था के पास न ही पर्याप्त कर्मचारी हैं और न ही पर्याप्त जगह. नतीजा वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा बढ़ता ही जा रहा है. वर्तमान में राज्य की अधिकतर वक्फ संपत्ति अतिक्रमण की जद में है या फिर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है.
अरबों की संपत्तियों पर अवैध कब्जा
झारखंड राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड की अकर्मण्यता के कारण सूबे की वक्फ (दान) जायदाद बरबादी की कागार पर है. जानकारी के मुताबिक इन संपत्तियों की मौजूदा कीमत अरबों रुपए की है. बोर्ड की अनदेखी की वजह से ढ़ेरों संपत्ति अवैध कब्जे में है. इसमें रांची, जमशेदपूर, पलामू, धनबाद, चतरा और हजारीबाग के संपत्ति मुख्य रूप से शामिल हैं.
151 निबंधित प्रॉपर्टी के केयरटेकर पर उठते रहे हैं सवाल
झारखंड सुन्नी वक्फ बोर्ड की कुल निबंधित प्रॉपर्टी 151 है. नौ ऐसी संपत्ति है जिसका रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाया है. निबंधित संपत्ति राज्य के विभिन्न जिलों में है जिसकी देखरेख मुतावल्ली (देखरेख करने वाला) या प्रबंधन समिति करती है. इनके जिम्मे संपत्तियों से प्राप्त राजस्व का सात प्रतिशत वक्फ बोर्ड को देना होता है. लेकिन सूत्रों की मानें तो ऐसा नहीं हो रहा है. कई मुतावल्लियों ने वक्फ अधिनियम 1995 और संशोधन 2013 के कानून का उल्लंघन कर दुकान या मकान को भाड़े पर लगाया है. वहीं वैसी वक्फ प्रॉपर्टी का जिनका संचालन प्रबंधन समिति या ट्रस्ट के द्वारा किया जा रहा है, उनके पदधारी वर्षों से बिना चुनाव कराए अवैध ढंग से बैठे हुए हैं.


सरकार भी है काबिज
यह आरोप है कि वक्फ की संपत्ति सरकार की जद में भी है. वक्फ बोर्ड के पूर्व सदस्य मो फैजी बताते हैं कि झारखंड में वक्फ की अरबों की संपत्तियों पर अवैध कब्जा हो चुका है. राज्य सरकार भी अवैध कब्जा कर बैठी हुई है. धनबाद रेलवे स्टेशन स्थित मजार शरीफ एवं अन्य वक्फ की जमीन रेलवे के अधीन है. रांची के कर्बाला चौक स्थित वक्फ संपत्ति पर पिछले कई सालों से सरकारी आजाद हाई स्कूल चल रहा है. चतरा में भी कई ऐसे मामले हैं. इनमें जमा मस्जिद की दुकानें, मुसाफिरखाना, तकिया मजार (हजारीबाग), कोला-कुसमा कब्रिस्तान (धनबाद), करीम सिटी कॉलेज (जमशेदपूर), चहुमहमा बजार की दुकान (डालटेनगंज) चुड़ी शाह मजार स्थित कब्रिस्तान (गिरिडीह) आदि शामिल हैं. रांची में अपर बाजर स्थित दुकान व जमीन, मेनरोड स्थित वक्फ संख्या 2287 पर अवैध ढंग से अतिक्रमण है. इनमें से अधिकतर मामला वक्फ बोर्ड के संज्ञान में है और इस बाबत नोटिस भी भेजी जा चुकी है.




बोर्ड के गठन के बाद से आज तक नहीं मिला स्थायी सीईओ
हलांकि झारखंड सुन्नी वक्फ बोर्ड का गठन 2008 में हुआ था. तब से लेकर आज तक बोर्ड में मुख्य कार्यपालक पदाधिकरी (सीईओ) प्रतिनियुक्ति (डेप्युटेशन) पर हैं. यहां के सीईओ को हमेशा अन्य विभागों का भी चार्ज मिलता रहा है. इस संदर्भ में दर्जनों बार दिल्ली सेंट्रल वक्फ कौंसिल के द्वारा मांगी स्टेटस रिपोर्ट में झारखंड सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से इन सारी समास्याओं से अवगत कराया जा चुका है. फिलहाल नईमुद्दीन खान सीईओ हैं जो राजभाषा विभाग समेत अन्य विभाग में अपनी सेवा दे रहे हैं. इससे पहले के सीईओ नेसार अहमद के जिम्मे अल्पसंख्यक आयोग का सचिव पद भी था. वहीं कल्याण विभाग में उपसचिव रहते हुए नुरुल होदा ने हज कमेटी और बोर्ड के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी की जिम्मेवारी निभाई. जबकि नियमानुसार फुल-टाइम वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी होना चाहिए.
पांच वर्ष का कार्यकाल, तीन साल बीत गए बिना अध्यक्ष
झारखंड सुन्नी वक्फ बोर्ड के प्रति सरकार की सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पांच वर्ष के कार्यकाल में तीन साल बिना अध्यक्ष के बीत गए. 2008 के बाद बोर्ड का पुनर्गठन वर्ष 2014 में हुआ था. लेकिन इन तीन सालों में अभी तक अध्यक्ष का चयन नहीं हो सका है. दरअसल 17 अक्टूबर 2014 में अध्यक्ष के लिए नोटिफिकेशन जारी हुआ था. लेकिन इसके तुरंत बाद विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई थी. आचार संहिता लागू हो जाने के कारण अध्यक्ष पद के चुनाव का मसला ठंडे बस्ते में जो गया तो वहीं रह गया. इधर, चुनाव में हार के बाद सरफराज अहमद और निजामुद्दीन विधायक नहीं रहे तो वक्फ की सदस्यता भी खत्म हो गई. वहीं नए विधायक आलमगीर आलम और इरफान अंसारी को अब तक सदस्य नहीं बनाया गया है, और न ही बार काउंसिल के किसी एक भी सदस्य को शामिल किया गया है.
दो कमरे में चल रहा बोर्ड, कर्मचारी भी गिने-चुने
वक्फ बोर्ड का कार्यालय ऑड्रे हाउस के दो कमरे में चल रहा है, जहां महज तीन कर्मचारी हैं. उन्हें भी समय से वेतन नहीं मिलता है. कर्मचारियों और संसाधन की कमी है. पिछले सीईओ ने कर्मचारियों की बहाली के लिए संबंधित विभाग को पत्र भी लिखा था. लेकिन यह पत्र भी सरकारी फाइलों में कहीं दबकर रह गया. इसके बाद पूर्व सीईओ ने यह स्वीकार किया था कि इन सब कमियों की वजह से कार्य प्रभावित हो रहा है.
मुस्लिम संस्थानों के साथ सरकार का दोहरा रवैया: एस अली
वक्फ बोर्ड को स्थायी सीईओ का न मिलना और इतने दिनों तक अध्यक्ष के नहीं चुने जाने को अल्पसंख्यक मामलों के जानकार एस अली सरकार का दोहरा रवैया मानते हैं. उनका कहना है कि मुस्लिम संस्थानों के साथ सरकार भेदभाव करती है. झारखंड अल्पसंख्यक आयोग छह माह तक अध्यक्ष और सदस्यों के बिना रहा. अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम में पिछले पांच सालों में दो अल्पसंख्यक मामलों के जानकार सदस्य का मनोनयन नहीं हो पाया है.
वक्फ न्यायाधिकरण में प्रावधान के तहत दो पीठासीन पदाधिकारी होने चाहिए, लेकिन एक ही पदाधिकारी नियुक्त किये गए. वक्फ संपत्ति के अवैध कब्जे पर अली कहते हैं कि वक्फ बोर्ड में स्थायी सीईओ और पूरे सदस्यों के नहीं रहने से कई काम प्रभावित हो रहे हैं. राज्य में अधिक्तर वक्फ संपत्तियों और वक्फ संस्थानों पर अवैध कब्जा है. वे आय-व्यय का हिसाब नहीं देते हैं. नियम-परिनियम को ताक पर रखकर वो गलत कार्य कर रहे हैं. साथ ही प्रबंधन समिति पर भी किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाती है.
कहां कितनी पॉर्पटी है
रांची-18, पलामू-11, हजारीबाग-29, पाकुड़-02, धनबाद-12, गढ़वा-05, गिरिडीह-06, बोकारो-04, सिंहभूम-04, चतरा-03, जमशेदपूर-18, गोड्डा-12, देवघर-02, लोहरदग्गा-10 और संथाल परगना 15.