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Ranchi, 25 October : पूरे उत्तर भारत के साथ-साथ झारखंड में भी महापर्व छठ कोने-कोने में धूमधाम से मनाया जाता है. रांची में छठ पूजा का कुछ विशेष ही महत्व है. यहां के नगड़ी गांव में छठव्रती अलग तरह से सूर्य की उपासना करते हैं. यहां न तो नदी है और न ही तालाब में अर्घ्य दिया जाता है. बल्कि एक चुए यानि सोते में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है.
सोते में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की है परंपरा


दरअसल, मान्यता है कि इसी चुए के पास द्रौपदी सूर्य की उपासना किया करती थी. द्रौपदी सूर्य को इसी चुए में अर्घ्य दिया करती थी. इस वजह से एक चुए यानि सोते में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा यहां हो गयी. ऐसा माना जाता है कि वनवास के दौरान पांडव झारखंड के इस इलाके में काफी दिनों तक ठहरे थे. यह भी मान्यता है कि एक बार जब पांडवों को प्यास लगी और दूर-दूर तक पानी नहीं मिल रहा था, तब द्रौपदी के कहने पर अर्जुन ने जमीन में तीर मारकार पानी निकाला था. सूर्य की पूजा की वजह से पांडवों पर हमेशा सूर्य का आर्शीवाद बना रहा. इसी मान्यता की वजह से आज भी यहां छठ काफी धूमधाम से मनाया जाता है.




कई और भी किवदंतियां नगड़ी से जुड़ी हैं
नगड़ी से थोड़ी दूर पर स्थित है हरही गांव. यहां मान्यता है कि यहां भीम का ससुराल था. भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच का जन्म भी यहीं हुआ था. एक दूसरी मान्यता है कि पूर्व में नगड़ी गांव का नाम एकचक्रा था. महाभारत में वर्णित एकचक्रा नगरी नाम ही अपभ्रंश होकर अब नगड़ी हो गया है.
दो नदियों का उद्गम स्थल है नगड़ी
नगड़ी इलाके का ऐतिहासिक महत्व है. नगड़ी दो नदियों का उद्गम स्थल भी है. स्वर्णरेखा नदी दक्षिणी छोटानागपुर के इसी पठारी भू-भाग से निकलती है. इसी गांव के एक छोर से दक्षिणी कोयल तो दूसरे छोर से स्वर्ण रेखा नदी का उद्गम स्थल है.