रांची, 25 फरवरी | झारखण्ड के लातेहार जिले के बेतला राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या में लगातार कमी हो रही है। अधिकारी पूर्व में की गई गणना को वैज्ञानिक न मानते हुए इन आंकड़ों से हालांकि इत्तेफाक नहीं रखते।
वन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार वर्ष 2007 में यहां 17 बाघ थे, जबकि अब परियोजना के 40 प्रतिशत क्षेत्रों में विभिन्न तरीके से की गई गणनाओं में छह बाघ होने की पुष्टि हुई है, जिनमें एक बाघिन भी है।
यह क्षेत्र जैव विविधता के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से साल वन, मिश्रित पर्णपाती वन एवं बांस उपलब्ध हैं। वर्ष 1974 में व्याघ्र योजना के लिए चयनित नौ उद्यानों में बेतला का भी चयनित किया गया था। 1026 वर्ग किलोमीटर में फैली इस परियोजना में राष्ट्रीय उद्यान के लिए 226 वर्ग किलोमीटर भूमि है।
इस परियोजना के अंतर्गत बाघ सहित अन्य बड़े-छोटे सभी वन्य प्राणियों की सुरक्षा और संरक्षण के अतिरिक्त उनके आवास (वन और वनस्पति के संवर्धन) पर विशेष ध्यान दिया जाता है।


आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान समय में यहां बाघ, सांभर, हिरण, बंदर, लंगूर, चीतल, लियोर्ड स्लोथ बीयर सहित कई जानवर स्वच्छंद होकर विचरण करते हैं। यहां अब तक स्तनपायी की 47 प्रजातियों और पक्षियों की 174 प्रजातियों की पहचान हो चुकी है। इसके अतिरिक्त पौधों की 970 प्रजातियों, घास की 17 प्रजातियों एवं अन्य महत्वपूर्ण औषधीय पौधों की 56 प्रजातियों की पहचान की गई है।


बाघों की संख्या कम होने को लेकर वन विभाग प्रशासन भी चिंतित है। झारखण्ड के प्रधान वन संरक्षक ए.के. मल्होत्रा ने आईएएनएस को बताया कि वर्ष 2010 की गणना के अनुसार इस परियोजना में 10 बाघ थे। वह कहते हैं कि अभी भी बाघों की गणना का काम अत्याधुनिक तरीके चल रहा है, जिसमें तीन चरण का कार्य पूरा हो गया है, जबकि एक चरण का काम अभी जारी है।
परियोजना के निदेशक एस.ई.एच. काजमी ने बताया कि नई गणना के तहत बाघों के दस्त को लेकर उसके डीएनए टेस्ट के आधार पर गणना की जाती है, जिसके तहत बाघों की गणना में गलती कम होने की सम्भावना होती है।
वह कहते हैं कि अब तक इस परियोजना के 40 प्रतिशत क्षेत्रों में गणना की गई है जिसके आधार पर छह बाघों के मौजूद होने का पता चला है। इनमें एक मादा भी है। वह कहते हैं कि पेड़ में एक विशेष प्रकार का कैमरा लगाकर बाघों की तस्वीर ली जा रही है।
वन्यजीव गणना के मुताबिक इस परियोजना के तहत वर्ष 2003 में जहां 36 से 38 बाघ थे, वहीं 2002 में 38 से 40 बाघ होने का दावा किया गया था। इसी तरह वर्ष 2000 और 1999 में 37 से 46 बाघों के होने का वादा किया गया था। इन आंकड़ों पर मल्होत्रा कहते हैं कि पहले बाघों की गणना उनके पंजे के निशान को देखकर की जाती थी जिसमें गलती की पूरी गुंजाइश हुआ करती थी।
उल्लेखनीय है कि बेतला राष्ट्रीय उद्यान रांची-डालटनगंज मार्ग पर रांची से 156 किलामीटर की दूरी पर स्थित है।
– मनोज पाठक