– डा रामदयाल मुंडा –
कालाधन वापस लाओ, दागी लोगों को वोट मत दो, जैसे नारे सुने जा रहे हैं। सुनने में अच्छी बात लगती है। आने वाले समय के लिये यह अच्छा संकेत है। लेकिन अभी, इन लुभावने नारों से काम नहीं चलेगा। स्पष्ट वस्तुस्थिति सामने लाने की जरूरत है। सीधा दागी लोगों को चिन्हित करना होगा। क्योंकि अभी हमारा समाज इतना प्रबुद्ध नहीं हुआ है। सिविल सोसायटी में भी प्रचार करने की जरूरत हो रही है।
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डा मुंडा |


अमेरिका यूरोप में सिविल सोसायटी के पास जाकर कहां जरूरत पडती है प्रचार करने की? मतदाता टीवी, इंटरनेट के जरिये दिनचर्या में अपडेट रहता है। वहां भी चुनावों में एक से एक दागदार उम्मीदवार होते हैं। लेकिन मतदाता जागरूक है इसलिये वह न्यूनतम घातक उम्मीदवार को चुनता है। इसी तरह से वहां क्वालिटी लीडरशिप बेहतर तौर पर उभरती है। यही कारण है कि हमारे यहां की तुलना में वहां बेहतर लोग चुनकर संसदों में जाते हैं। अमेरिका को ही लीजिए। सत्ता में डेमोक्रैट आये या रिपब्लिकन, देश की दशा-दिशा में कोई बडा उलटफेर नहीं होता। पूर्व निर्दिष्ट रास्ते पर चलते हाथी की तरह, वह देश भी तय दिशा और स्थिर गति से चलता रहता है। यह संभावना हमारे यहां भी है।


यहां भी, मिडिल क्लास से ही प्रबुद्ध समाज निकलेगा। परंतु अभी तो मिडिल क्लास ही पूरी तरह आकार नहीं ले पाया है। आदिवासी समाज में जो मिडिल क्लास है, वह संपन्न जरूर है लेकिन उसमें से अभी प्रबुद्ध वर्ग नहीं निकल पाया है। जिस दिन सचमुच ही उसे प्रबुद्ध बना पायेंगे उस दिन प्रचार की जरूरत नहीं होगी। भ्रष्ट लोग खुद ब खुद चिन्हित होकर औंधे मुंह गिरेंगे।
दरअसल, हमलोगों की आइडियोलॉजी स्टैब्ल नहीं हो पा रही है। याद कीजिए, अलग राज्य आंदोलन के वख्त कितनी बडी-बडी बातें करते थे लोग। जैसे ही सत्ता हाथ में आयी, व्यवहार बदल गया। इसका मतलब है कि हमारी विचारधारा में स्थिरता नहीं है। हमारे नेताओं को एहसास नहीं हो रहा है कि पचास साल कैचअप (की भरपाई) करने की जिम्मेवारी उनके कंधों पर है। वह केवल अपना घर-द्वार, खजाना देखेंगे तो हम कैसे वह मुकाम हासिल करेंगे? ऐसे लोग जब अगली कतार में आ जायें तो लक्ष्य कैसे पूरा हो? वही कुछ लोग हाल के दिनों में मंत्री बने। अब चुनाव के वख्त दावा करते हैं कि हमने बहुत एफिसिएन्सी के साथ इतने साल पूरे किये। ऐसे में, वोटर जागरूक हो तभी उन चेहरों पर से मुखौटे हटेंगे।
भ्रष्टाचार को समझना और भ्रष्टाचारियों को पहचान लेना ही पर्याप्त नहीं है। यही वख्त है कि हम आचरण में उसे प्रयोग करें, पूरे विवेक के साथ उन नामों को खारिज करें। लेकिन, आज क्या होता है चुनावों में। एक ईमानदार उम्मीदवार मतदाताओं के सामने यथार्थपूर्ण बेहतर भविष्य का खाका खींचता है, उसे अपने साथ जोडता है। उसके आगे बढते ही एक भ्रष्ट उम्मीदवार पैसे लुटाते हुए पीछे हो लेता है। ईमानदार उम्मीदवार ने मतदाता के जेहन में जो कुछ भी उकेरा था उसे पोंछ डालता है। इसका स्पष्ट मतलब है कि मतदाताओं के आचरण में भी स्थिरता नहीं है। इन आदर्शों के प्रति वह कटिबद्ध नहीं है। क्षणिक लाभ उन्हें पथभ्रष्ट कर देती है। और, देश समाज के भविष्य निर्धारण का यह महत्वपूर्ण अवसर महज मौज-मस्ती का त्योहार बन जाता है। इस पर नियंत्रण हो, मतदाता में जागृति आये, तभी सही में डेमोक्रैसी खडी होगी।
राजनीति के बारे में मेरा नजरिया है, कि इससे सीधा हमारा पेट नहीं चलता। इसलिये चुनाव के अवसर पर हमें निडर होकर अपने अधिकार का प्रयोग करना चाहिए। थोडे सख्त लहजे में कहें तो जरूरत है एक किलिंग इंस्टिंक्ट की। क्योंकि, बिना किलिंग इंस्टिंक्ट के न खेल जीता जा सकता है न राजनीति। महाभारत के रणक्षेत्र में अर्जुन का रथ संभाल रहे कृष्ण ने भी कहा था- युद्ध जीतना है तो सामने खडे दुश्मन को मारते चलो। रिश्ते पहचानने में समय मत गवांओ। क्योंकि यह धर्मयुद्ध है, विजय मिले या स्वर्ग, दोनों में ही मोक्ष है। ठीक इसी तरह, पीढियों के भविष्य के लिये यह राजनीति अवसर एक धर्मयुद्ध की तरह है, भाई-बंधु गोतिया पहचानने का अवसर नहीं। मतदाता में चाहिए बस वही किलिंग इंस्टिंक्ट।
(डा मुंडा जाने माने शिक्षाविद हैं। झारखंड अलग राज्य आंदोलन के अगुआ रहे हैं।)
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