
Daltongunj : मिट्टी की सोंधी खुशबू की बात कुछ और ही होती है. मिट्टी से बने बर्तन जहां इस्तेमाल में एकदम बेहतर होते हैं, वहीं इनसे किसी तरह के प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहता है. लेकिन तमाम जानकारियों के बाद भी आज मिट्टी से बने बर्तन को भूलकर लोग डिब्बाबंद, बोतलबंद पानी और फ्रिज पर निर्भर हो गये हैं. यहां कहना गलत नहीं होगा कि डिब्बा बंद पानी और फ्रिज के आगे देसी की चमक फीकी हो गयी है. मिट्टी की शीतलता के आगे मशीन की ठंडक लोगों को खूब भा रही है. नतीजा बीमारियों को आमंत्रण मिल रहा है.
कुम्हारों का व्यवसाय हो रहा प्रभावित
पलामू में गर्मी आते ही मिट्टी के घड़े की डिमांड बढ़ जाती है, मगर हाल के दिनों में बोतलबंद मिनरल और डिब्बाबंद पानी व फ्रिज का ज्यादातर लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे मिट्टी के घड़े बनाने वाला कुम्हार परिवारों के व्यवसाय पर खासा असर हुआ है. दिन रात मेहनत करके मिट्टी के घड़े का निर्माण किया जाता है. मगर पहले जिस तरह से इस व्यवसाय में मुनाफा होता था, अब इतना नहीं हो पाता है. इस पेशे से जुड़े परिवारों की मानें तो मेहनत तो है, महंगाई भी है, मगर अब उतना मुनाफा नहीं हो पाता. दरअसल, मिट्टी के बर्तन बनाने के व्यवसाय से पलामू में सैकड़ों परिवार जुड़े हैं. केवल चैनपुर प्रखंड के नेवरा गांव में ही सैकड़ों परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हैं. नेवरा के लोगों के लिए यह पुस्तैनी पेशा होने की वजह से पूरा परिवार इस कारोबार से जुड़ रहता है. लोग दूसरा रोजगार नहीं कर पाते हैं. यही कारण है कि कम पैसे में भी इस व्यवसाय को वे करते आ रहे हैं.






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हर जगह छाया डिब्बा बंद पानी
शहर हो या कस्बा या फिर गांव करीब-करीब सभी जगहों पर डिब्बा बंद पानी ने अपनी पहुंच बना ली है. नतीजा कई क्षेत्रों में जार के पानी का कारोबार भी तेजी से फलफूल रहा है. कुछ वर्ष पहले तक जिन घरों, कार्यालयों और प्रतिष्ठान में मिट्टी के घड़े का पानी लोग पीते थे, आज वहां धड़ल्ले से जार के पानी सेवन में लाया जा रहा है.
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सरकारी मदद की आस है कुम्हारों को
कुम्हार परिवारों का कहना है कि अगर कोई सरकारी मदद मिले तो इसी व्यवसाय में ज्यादा मुनाफा हो सकता है. मिट्टी के बर्तन के उपयोग से होने वाले फायदों को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाने की जरूरत है. इससे सकारात्मक नतीजे सामने आ सकते हैं. पर्सनालिटी खराब ना हो इसलिए अक्सर लोग मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल नहीं करते. इसके पीछे की एक मात्र वजह जानकारी का अभाव है. जिस दिन लोग बोतल और डिब्बाबंद पानी व फ्रिज के नुकसान को समझ जायेंगे, उस दिन से उनका इसपर से विश्वास उठा जायेगा. इसके लिए सरकार को ध्यान देने की जरूरत है. लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है.
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