
Akshay Kumar Jha
Ranchi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 25 मई को धनबाद आना तय माना जा रहा है. इस दौरे में वो सिंदरी कारखाना, पतरातू पावर प्लांट और एम्स का शिलान्यास करेंगे. हालांकि इसे लेकर पीएमओ की तरफ से सरकार को औपचारिक चिट्ठी आनी बाकी है. लेकिन सूत्रों की माने तो यह तय है कि 25 मई को पीएम मोदी धनबाद आएंगे. बताया जा रहा है कि पीएम मोदी इन सभी परियाजनाओं का शिलान्यास तो करेंगे, लेकिन गोड्डा में बन रहे 1600 मेगावाट बिजली क्षमता वाली अडानी पावर प्लांट का शिलान्यास नहीं करेंगे. सरकारी सूत्रों की माने तो पीएम मोदी सरकारी परियोजनाओं का शिलान्यास करने आ रहे हैं, ऐसे में वो किसी प्राइवेट कंपनी के कारखाने का शिलान्यास कैसे कर सकते हैं. लेकिन जानकारों का मानना है कि इसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह है.
अगर करेंगे शिलान्यास तो पहुंचेगी पेरिस समझौता की भावना को ठेंस


झारखंड के गोड्डा में अगर अडानी पावर प्लांट से बिजली उत्पादन शुरू होता है, तो इसे एक तरह से पेरिस में हुए जलवायु समझौते को ठेंस पहुंचाना माना जाएगा. बताते चलें कि भारत ने दो अक्टूबर 2016 को ही इस समझौते को मंजूरी दी थी. गोड्डा के अडानी पावर प्लांट में कोयला ऑस्ट्रेलिया का जलना है और बिजली बांगलादेश को जानी है. ऐसे में भारत या कहें झारखंड के हिस्से में सिर्फ और सिर्फ प्रदूषण ही आएगा. कोयले से होने वाले बिजली उत्पादन में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा काफी ज्यादा होती है. अडानी की Final EIA & EMP की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के हिस्से में 70,17000 टन उड़ने वाली राख का हर साल उत्सर्जन होगा. जिसे गोड्डा के आस-पास के लोगों को ही भुगतना है. दूसरी तरफ पेरिस समझौते का उल्लंघन भारत अपने पड़ोसी देश बांगलादेश के लिए करेगा. जिसे जानकार एक बेहद ही बेतुका व्यापार करार दे रहे हैं.




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बाबूलाल ने भी पीएम को लिखी चिट्ठी कहा ताप विद्युत का निर्यात भारत बंद करे
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने 23 नवंबर 2017 को पीएम मोदी को खत लिखा. उन्होंने पीएम से गुजारिश के तौर पर कहा है कि वो भारत में बनने वाले ताप विद्युत के निर्यात पर रोक लगाएं. इसी संदर्भ में उन्होंने आगे लिखते हुए कहा कि गोड्डा में अडानी पावर लगाने से पेरिस समझौते के साथ न्याय नहीं होगा. कहाः अडानी पावर प्लांट लगने से ऑस्ट्रेलिया के कोयले का इस्तेमाल होगा और झारखंड के 36 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की सालाना खपत होगी. इतना पानी 20 लाख लोग 50 लीटर रोजाना के हिसाब से एक साल में खर्च कर सकते हैं. उन्होंने कहा, सबसे सस्ते विद्युत उत्पादन के स्रोत का इस्तेमाल अपने देश के विकास की जगह दूसरे देश के लिए कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पानी के इस्तेमाल के अलावा 200 एकड़ कृषि योग्य जमीन जाएगी. 70,17000 टन उड़ने वाली राख का सालाना उत्सर्जन होगा. 5000 से ज्यादा लोग विस्थापित होंगे. झारखंड के हिस्से में सिर्फ और सिर्फ प्रदूषण आएगा. उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि अगर यह प्लांट बांगलादेश में लगाया जाता है तो पेरिस समझौते का उल्लंघन करने से हमारा देश बचेगा, क्योंकि कार्बन उत्सर्जन अपने देश के खाते में नहीं आएगा. साथ ही 110 किमी ट्रांसमिशन लाइन भी नहीं लगानी पड़ेगी. इन सभी बातों को आधार बनाते हुए बाबूलाल मरांडी ने पीएम से ताप विद्युत के निर्यात पर रोक लगाने को कहा.
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क्यों जरूरी था पेरिस समझौता और क्या है समझौते में
दो अक्टूबर 2016 को भारत ने पेरिस में हुए जलवायु परिवर्तन से संबंधित समझौते को मंजूरी दी थी. इस समझौते के मुताबिक वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखना है. पेरिस समझौता देशों के वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्यिसय तक रखने की कोशिश करने के लिए कहता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर वैश्विक तापमान में 2 डिग्री से ज्यादा की बढ़ोतरी होती है तो विश्व के जलवायु में विनाशकारी परिवर्तन आ सकते हैं. जैसे- समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ना, बाढ़ आना, जमीन धंस जाना, अकाल और जंगलों में आग लग जाना. विश्व भर में औद्योगीकरण की रफ्तार बढ़ने के बाद ऐसे भी धरती का तापमान एक डिग्री करीब पहले ही बढ़ चुका है. समझौते के मुताबिक दुनिया के ऐसे देश जो करीब 55 फीसदी कार्बन उत्सर्जन करते हैं उन्हें इस समझौते में शामिल करना था. जिसमें से एक भारत भी है. भारत से पहले दुनिया के 61 देशों ने इस समझौते को मंजूरी दे दी थी. जो करीब 48 फीसदी कार्बन उत्सर्जन करते हैं. भारत से हरी झंडी मिलने के बाद यह आंकड़ा जरूरी सीमा के पास पहुंच गया. भारत अकेला दुनिया में सात फीसदी कार्बन उत्सर्जित करता है. ऐसे में आंकड़ा 55 फीसदी पहुंच गया. इतना ही नहीं चीन और अमेरिका के बाद भारत वो तीसरा देश है जो सबसे ज्यादा कार्बनडाइऑक्साइड गैस उत्सर्जित करता है. भारत में प्रति व्यक्ति सालाना करीब 2.5 टन कार्बन का उत्सर्जन करता है. अमेरिका का यह आंकड़ा 20 टन का है.
भारत ने समझौते के दौरान क्या वादा किया था
भारत ने कार्बन कम-से-कम उत्सर्जन के लिए जो योजना संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन को सौंपी है, उसके मुताबिक भारत बिजली का 40 फीसदी उत्पादन जीवाश्म ईंधन से करेगा. भारत ने भरोसा दिलाया है कि भविष्य में सौर उर्जा और पवन ऊर्जा की मदद से बिजली का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करेगा. लेकिन दूसरी तरफ भारत ने कोयला उत्पादन का अपना टारगेट पहले से दोगुना कर दिया है. जो सालाना एक अरब टन से भी ज्यादा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक कोयला ही कार्बन उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार है. यह वैश्विक पटल पर आने वाले दिनों में एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है.
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